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निज भाषा उन्नति अहै..सब उन्नति को मूल..!!

swarnvihaan
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” वैश्विक मंच पर भारत की बढ़ती साख ने ,कई देशों को हिंदी जानने, समझने को विवश कर दिया है , लिहाजा विदेश में हिंदी की महत्ता दिनों दिन बढ़ रही है !निसंदेह इससे हिंदी की समृद्धि का एहसास होता है ! भाषा की मजबूती ही चहुंमुखी विकास का मूल मन्त्र है !” ( दैनिक जागरण से साभार )
हिंदी भाषा इंडो यूरोपियन परिवार से सम्बन्ध रखती है, प्राचीन ब्राह्मी लिपि हिंदी लिपि देवनागरी की जननी है, दुनिया के करीब एक सौ तीस देशों के विश्वविद्यालयो में हिंदी पढाई जा रही है, ऐसी समर्थ भाषा हिंदी है, जो आज दुनिया की दूसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है, भारत के अलावा नेपाल, भूटान, सिंगापुर, पाकिस्तान, फिजी, न्यजीलैंड ,जर्मनी, अमेरिका, मॉरिशस, दक्षिण अफ्रीका,यमन,यूगांडा आदि देशो में भी बोली व पढ़ाई है ! संस्कृत से पाली फिर प्राकृत, अपभ्रंश व अवहट्ट से विकसित होती हुई, आज की हिंदी बनी है! गुरु गोरखनाथ ,मैथली के प्राचीन कवि विद्यापति ,आगे चल कर अमीर खुसरो, भारतेंदु हरिश्चंद्र ने इस भाषा के पूर्ण विकास में महत्वपूर्ण दान दिया !
14 सितम्बर 1949 को ,संविधान के अनुच्छेद 343 के प्रावधान के अनुसार देवनागरी लिपि के साथ, हिंदी भारत की राजभाषा बन गयी ! आज यह हमारी राष्ट्र भाषा बन कर लगभग अस्सी करोड़ जनता की आवाज बनी हुई है ! इसके अतिरिक्त कोई अन्य भाषा बोली इतने बड़े क्षेत्र में नहीं बोली जाती, हिंदी की अपनी कोई खास जमीन न होकर भी उत्तर भारत इसका वास्तविक निवास है ,इसी भाषा में प्रतिवर्ष सर्वाधिक फिल्मे बनती और प्रसारित होती है, मीडिया और सिने जगत हिंदी की रोटी खा रहा है, पर हिंदी के साथ दोयम दर्जे का व्यव्हार भी सबसे ज्यादा इसी क्षेत्र में होता है, खालिस देशी भाषा को विदेशी मानसिकता के लोगो ने मजाक बना कर रख दिया है, कभी आधी अंग्रेजी, आधी हिदी ,कभी हिंग्लिश, अग्रेजी मिलीजुली बना कर जनता को हिंदी परोसी जाती रही , ,सिनेमा में भी यही हो रहा है ,अखबारों में भी यही हो रहा है, ये वे लोग है, जो यह तय नहीं कर पाते ,कि उन्हें चाहिए क्या ? अंग्रेजी या हिंदी ! आखिर किसकी जिम्मेदारी है, इस भाषा के प्रति ? इस भाषा में इतनी शक्ति है ,कि वह दुनिया की किसी भी भाषा को ,या संवेग को ज्यों का त्यों लिख सकती है ,और फिर अपनी भाषा ही किसी देश की उन्नति का आधार हो सकती है, क्योंकि देश की पूरी प्रतिभा ,भाषा की दिक्कत के कारण देश की सामने नहीं आ पाती, जैसा कि आई ए एस के चयन में हो रहा है !सही लोग सामने नहीं आ पाते और उसका फायदा गलत लोगो को मिलता है, फिर देश का विकास गलत दिशा में होगा ही !
अब प्रश्न है ,हिंदी भाषा को मुख्य धारा में लाने का, जिस भाषा ने हमें आजादी दिलवाई, वह हमारी अवहेलना व सरकार की गलत नीतियों के कारण आज संकट में है, इस देश में अपनी मात्र भाषा का अपमान और उसे अपदस्थ करने का जैसा कुचक्र चलाया गया, वैसा अन्य किसी देश के इतिहास में ढूंढे नहीं मिलेगा, आज भाषाई तकनीकों ने हिंदी का काम और आसान कर दिया है ,ब्लागिंग,इंटर नेट,फेसबुक ने दूरिया कम की है ,हम अपनी कमजोरी का ठीकरा तकनीक के सर नहीं फोड़ सकते ,उसने हिंदी को बाजार का हिस्सा न तो बनाया है, न हिंदी बाजारू भाषा है ! अब हिन्दी प्रदेशों को और अधिक मेहनत करनी होगी ,इसके लिए विद्यालय की पढाई हिंदी में आवश्यक है, अग्रेजी के महत्व से इंकार नहीं ,पर उसे हिंदी की सहचरी बन कर साथ चलना है, उसकी मालकिन बन कर नहीं ! सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी तो प्राइमरी में पढाई ही नहीं जाती थीं पहले, और अभी भी सरकारी स्कूलों में हिंदी की भी बड़ी दुर्दशा है ! वहाँ का आँठवी पास बालक ठीक से हिंदी का एक वाक्य तक नहीं लिख पाता, इस तरह जीवन भर न तो वह हिंदी सीख पाता है न अंग्रेजी ! सरकारी कामकाज अधिकांश संख्या में हिंदी में कराया जाये, विशेष रूप से आम जनता से सम्बंधित, ताकि लोग परेशान भी न हो, और हिंदी का प्रसार प्रचार भी होता रहे ,लोगो को हिंदी भाती है, पर वे अपमानित होने के भय से अंग्रेजी के गुलाम बनने के लिए मजबूर है ,यही मानसिकता हटानी हैं !
अमीर खुसरो से लेकर भारतेंदु युग, महावीर युग तक ,जय शंकर से लेकर अज्ञेय,निराला तक ,उस दौर की हिंदी से लेकर ,आज तक की नाना विधाओ में, हिंदी का स्वरूप लगातार बदलता रहा है, संस्कृत इसकी जननी थी, उर्दू इसकी प्रथम सहचरी थी, संस्कृत शब्दों का बाहुल्य ,समय के साथ धीरे धीरे कम होता गया, आज की भाषा सहजता की ओर उन्मुख हिंदी भाषा है ,सरलता से समझ में आने वाली हिंदी में ही अधिकतम साहित्य रचना भी हो रही है ,विश्व पटल पर अग्रेंजी का बोलबाला है ,सुनिश्चित जीविकोपार्जन, उच्च स्तरीय रहन सहन आज की जान लेवा शैक्षिक प्रतिस्पर्धा की रीढ़ है, इसी कारण भारतीयता से भिन्न, खान पान और भिन्न जीवन शैली, भिन्न संस्कृतियों को आज हमारे जीवन में सहजता से प्रवेश मिला है ,परम्परा कही बहुत पीछे छूटती जा रही है ,और इसी के कारण आज बाहरी संस्कृतियों की अनेकों बुराइयाँ भी तीव्र गति से हिंदुस्तान में जड़ जमाती जा रही है ,ऐसे माहौल में हिंदी भी अपना पुराना कलेवर त्याग कर नए रंग रूप में निखर रही है, या समझिये आधुनिक होती जा रही है ,नए ज़माने से कदम ताल मिलाती हिंदी स्तुति योग्य है ,अपने बाहरी आवरण के लिए वह संदेह का विषय नहीं है, उर्दू ,संस्कृत, शब्दों की भरमार से भी हिंदी, हिंदी थी, हिंगलिश रूप धारण करके अग्रेजी शब्दों की बहुलता से भी वह रहेगी हिंदी ही ! परिवर्तन युग की माँग है, हम पीछे नहीं जा सकते, वाक्यांश हिंगलिश में ! लिपि रोमन होती जा रही, तब भी करोड़ करोड़ हिंदी वासियों की आत्मा हिंदी में बसती है, हिंदी को समाप्त करना हिंदुस्तान को समाप्त करने जैसा है ,हिंदी हमारी जान है ,हमारी पहचान है ,उसके मिटने से हम मिट जायेंगे , मुझे नहीं लगता, डरने की कोई भारी वजह है, अति उन्नत संचार माध्यमों और इंटरनेट के कारण एक मंच पर जुटता हुआ सारा विश्व ,मिनटों में संवाद संचार ! यह चमत्कार पहले कभी नहीं हुआ था, हमें आगे बढ़ना है ,दुनिया के सीने पर हिंदुस्तान के स्वर्णिम हस्ताक्षर अभी बाकी है, अभी मीलों सफ़र बाकी है, भाषा की आत्मा अमर रहे, उसका मौलिक स्वरूप बचा रहे ,ऊपरी आवरण बदलने से उसका अहित नहीं होगा, हिंदी चल रही है अपनी चाल ! उसे मुक्त बहने दे ,रोके नहीं, मचलने दे ,हमें केवल सजग रहना है ,प्रहरी बन कर उसके मान सम्मान की रक्षा करनी है, दिनों दिन हिंदी टेक्नो सेवियों की भी मुख्य भाषा बने, इसके लिए हिंदी लेखन हेतु टेक्नोलोजी उन्नत चाहिए, आज से भी ज्यादा ! मोबाइल लैपटॉप पर अभी भी क्योकि दुरूह है ,शुद्ध हिंदी लेखन ! हिंगलिश से घातक और भी है बहुत कुछ !
हिंदी भाषा को मुख्य धारा में लाने की जिम्मेदारी सबसे पहले उन नामचीन हिंदी के लेखकों, मनीषियों की है ,जिन्हें हिंदी ने नाम दिया, सम्मान दिया, जीवन भर की जीविका दी , जो हिंदी जगत के चमकते दमकते सितारे है ,समय आ गया है ,कि वे हिंदी माँ का कर्ज उतारे ,उसको समग्रता में विकसित कर ,गौरव शाली बना कर, वास्तविक राष्ट्र भाषा का दर्जा दिलाए ,इसके अतिरिक्त हिंदी संस्थान जैसी सरकारी संस्थाए ,हिंदी के सभी स्तरीय लेखकों का सम्यक भाव से मूल्यांकन करे ,उन सभी को एक मंच दे, मान और प्रोत्साहन दे ,विस्तृत योजना बद्ध तरीके से ,शासन प्रशासन द्वारा पुस्तकों की खरीद बिक्री की जाये, और उन्हें सात ताले में न बन्द करके उस ज्ञान का सम्यक् उपयोग किया जाये,इसके लिए जन सामान्य को उत्साहित करने हेतु ,विज्ञापन के लिए, मीडिया का उपयोग हो ,बस काम का तरीका ,चलताऊ न हो कर ,जुनूनी हो, हिंदी उन्नत भाषा है, उसके लिए बातें और सेमिनार या विभिन्न आयोजनों से अपनी पीठ ठोकने से काम नहीं होगा, ठोस कदम उठाने होंगे !
आज हिंदी की लापरवाही के कारण सिनेमा में हिंदी गालियों की भरमार है,यह हिंदी का घोर अपमान नहीं तो और क्या है ? वैसे तो अग्रेजीं ही उनकी प्रधान भाषा है ,पर गाली देने के लिए उन्हें हिंदी भाषा ही याद आती है ! जरुरत पड़ने पर अदालत में हिंदी के अपमान राष्ट्र भाषा के अपमान के विरुद्ध याचिका दायर की जानी चाहिए, ताकि हिंदी का अपमान करने वालो को सबक सिखाया जा सके, पर इस सबके लिए जुझारू तेवर चाहिए ,जिसका हमारे हिंदी जगत में सर्वथा अभाव है , हिंदी की आज ये दुर्दशा है, इसके लिए प्रशासन भी कम जिम्मेदार नहीं ,अथ अब सभी को मिल कर अपने पाप धोने चाहिए !
हिंदी लचकीली सहन शील भाषा है, राजनैतिक कुचक्रो और लेखकों के जमात का आपसी वैमनस्य सुदीर्घ काल से झेलती हुई, पयस्विनी गंगा की तरह यह आज भी अपना अस्तित्व बचाए हुए है ,इस पर इतने प्रहार हुए है, तब भी यह अजर अमर है, इसे सरस्वती का वरदहस्त जो प्राप्त है, साइबर क्रांति का यह दौर हिंदी आसानी से उसकी चुनौतियों का सामना भी कर लेगी,और उसी से स्वयं को समृद्ध भी कर लेगी ! हिंदी की दलाली करने वाले ही हिन्दी के असली दुश्मन है , ब्लागिंग,सोशल मीडिया, हिग्लिश ,अंग्रेजी उसके हथियार बन कर उसकी जंग को कामयाब बनायेगे ,यही वो औजार है, जो उसे नए हिंदुस्तान में नया सिंहासन दिलाएंगे ,यदि हिंदी प्रेमियों की पूरी की पूरी सेना, तन मन धन से उसके साथ जुड़ जाये ,तो संक्रमण का यह काल भी ,उसके लिए स्वर्ण काल बन जायेगा !
सरकारी हिंदी संस्थाओ का व अन्य सरकारी महकमों का जैसे बैंक आदि में हिंदी पखवारे में ,पंद्रह दिन तक राष्ट्र भाषा, राजभाषा के सरकारी सम्मान का ढकोसला खूब चलता है, हिन्दी के गणमान्य लेखक भी इस गंगा में ,मान अभिमान या सम्मान की डुबकी लगाते है ,निस्तेज और मौका परस्त लोगों से हिंदी जगत भरा हुआ है, निश्चय ही अग्रेजीं मजबूत भाषा है ,पर भारत में अग्रेंजियत ज्यादा मजबूत होने के कारण अग्रेंजी की ज्यादा महिमा है, अग्रेंजो ने विश्व भर में अग्रेंजी की पौध लगाई ,उनकी छल कपट भरी नीतियों ,और प्रचार ,प्रसार कारण ही अग्रेंजी हिंदुस्तान में और दूसरे देशों में इस तरह फल फूल रही है ,क्या इस तरह केवल हिंदी मास में,ये नौटँकी या भाषा प्रेम का दिखावा करके, हम हिंदी का तर्पण करना चाहते है ? हिंदी तो बेचारी आज हमारी सहायता की आस में जी रही है ,पर आगे हम अपने दायित्व को कितनी गंभीरता से लेते है ,इसी पर हिंदी का भविष्य टिका है, उसमे घुसी हुई गन्दी राजनीति को हम कैसे समाप्त करेंगे ? कब करेंगे ? विहंगम व्याकरण सामर्थ्य समग्र भाषा होते हुए क्यों आज हिंदी की ऐसी दशा है ? क्यों हम कोई ठोस कदम नहीं उठाते ?आज हिंदी का भविष्य विवाद या बहस का विषय क्यों बन गया ? हिंदी प्रदेश के बच्चे हाई स्कूल इंटर में हिदी विषय में असफल रह जाने के कारण अपना साल बर्बाद कर लेते है, टेक्निकल विकास और उच्च शिक्षा हिंदी में नहीं होने के कारण ,हमारी नौजवान पीढ़ी हिंदी से विमुख होती जा रही है ,कब हिंदी पखवारा हिंदी में विकास की बात करेगा ! बस इंतजार है, हिंदी के इस सबसे बड़े प्रदेश में उस तिलमिलाहट और जुनूनी बौखलाहट का , जो हिंदी के लगातार होते अपमान से एक दिन पैदा जरुर होगी , बस सच्चाई का एक करारा तमाचा सोये हुए इस हिंदी प्रदेश के, आत्मसम्मान को जगा देने के लिए पर्याप्त है ,पर तब तक कंही देर न हो जाये !
”विशुद्ध बाज़ार के दबाव के चलते कारोबार ,खेल ,विज्ञान से जुड़ी जानकारियो कों हिंदी में परोसने को विवश होना पड़ रहा है तेजी से बढ़ती हिंदी भाषा में बेवसाइट इसके उज्ज्वल भविष्य का संकेत है ,हिंदी अब प्रौद्योगिकी के रथ पर सवार होकर विश्व व्यापी बन रही है !उसे ईमेल,ई कामर्स ,ई बुक ,इंटर नेट ,एस एम एस ,एवम् वेब जगत में बड़ी सहजता से पाया जा सकता है !माइक्रोसॉफ्ट,गूगल,याहू, आई बी एम,तथा ओरेकल जैसी विश्व स्तरीय कंपनियाँ ,अत्यंत व्यापक बाजार ,और भारी मुनाफे को देखते हुए ,हिंदी प्रयोग को बढ़ावा दे रही है” !(दैनिक जागरण से साभार )
ब्लांगिग ,फेसबुक और अन्य तमाम तरह की सोशल मीडिया , जैसे ट्विटर आदि आज के समय में हिंदी प्रेमियों के लिए एक वरदान से कम नहीं, हिंदी सेवियों को अपनी बात , विचार आक्रोश , संवेदना बाँटने के लिए, एक ऐसे मंच की आवश्यकता थी, जो उन्हें बिना किसी रोक टोक के, सेंसर बाजी के प्रस्तुत कर सके ,वे किसी की दया के आश्रित न हो ,क्योंकि लेखन से प्रकाशन तक की व्यवस्था इतनी दुरूह दुष्कर खर्चीली और दोष पूर्ण है, कि जिन भुक्त भोगियों ने इसे पास से जाना है ,अनुभूत किया है, वह दिल दहलाने के लिए पर्याप्त है, हिंदी में ऐसे अनेक सिद्ध हस्त लेखको की एक नहीं ,अनेक हस्तियाँ अपनी सही पहचान को तरसती हुई हवन हो गई है, या तो हताश हो कर उन्होंने लिखना छोड़ दिया ,या किसी और माध्यम को चुन लिया, अभिव्यक्ति के सटीक माध्यम तो थे, पर सरल नहीं थे ,सहज नहीं थे ,फेसबुक और ब्लागिंग ऐसे घने कोहरे में उम्मीद की एक सुनहरी किरण बन कर आया,कुछ कहने की अब असहायता नहीं है ,निर्भरता किसी एक को अनुचित लाभ का अवसर ही नहीं देगी ,पर अंग्रेजी भाषा में कहने सुनने की ऐसी आफत अभी नहीं है ,अभी चिकलिट नाम से महानगरो में एक तेजी से फैलती नयी लेखन विधा है, अद्वेत काला , अनुजा चौहान ,राजा श्री, कविता दासवानी कुछ नाम है, जो अपनी पहचान को मोहताज नहीं है, अंग्रेजी के छोटे और सतही लेखक भी ठीक से सुने और पढ़े जाते है, पर हिंदी में ऐसा नहीं है यंहा गंभीर लेखन भी उपेक्षित और तिरस्कृत है, ऊपर से तुर्रा यह, कि कुछ अच्छा लिखा ही नहीं जा रहा है ,पढ़ने से पहले ही आत्म मुग्ध हिंदी के ठेके दारो का ऐलान आ जाता है ,बात कुछ लोगो को बुरी लगेगी पर क्या करे, सत्य कड़वा ही होता है ,तीस चालीस सालों तक हिंदी की सेवा करने वालो का कही नाम नहीं, वे हिंदी से रोजी रोटी भी नहीं चाहते, पर मान पहचान भी नहीं मिलता, ऐसे घने कुहासे में फेसबुक और ब्लागिंग एक करिश्मा बन कर आया है, ब्लागिंग ने तमाम अनाम हिंदी सेवियों को नाम दिया, पहचान दी ,फिर ब्लागिंग ,फेसबुक हिंदी के भविष्य के लिए खतरा कैसे हो सकती है ? वेंटी लेटर पर जाती हुई हिंदी को एक नयी साँस देने का काम ब्लागिंग और फेसबुक ने ने किया है ,यह सही है, कि विस्तृत और विशाल फलक प्रिंट मीडिया में ही सम्भव है ! लेखन के लिए परंपरागत प्रकाशन आवश्यक है, पर अभिव्यक्ति को अनेकों माध्यम चाहिए ,यहाँ ब्लागिंग ने अकल्पनीय कार्य किया है ब्लागिंग पर आरोप है, कि उसने हिंदी भाषा का मूल स्वरुप बदला है, तो परिवर्तन सर्व कालिक सत्य है, उससे कोई भाषा का अहित नहीं होना है ,रोमन लिपि भी आज की जरुरत बन गई है ,आखिर पैदा होते ही जो पीढ़ी अंग्रेजी की घुट्टी पीकर जवान हुई है, वह अपनी भाषा में संवाद कर रही है, ये क्या कम है ? इसी से सिद्ध होता है, कि हमारी हिंदी अभिव्यक्ति में कितनी सहज और सुलभ है, नेट ,फेसबुक और ब्लागिंग के माध्यम से ही वह अपनी अनिवार्यता सिद्ध कर रही है !

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