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आज देश की समस्त व्यवस्था ,चाहे वह राज नैतिक ,सामाजिक या आर्थिक हो ,अथवा किसी अन्य स्तर पर हो ,पूर्णत: पत नोन्मुखी और नेतृत्व विहीन हो चुकी है !अनास्था की विभीषिका ने हमारी मानसिक, आध्यात्मिक चेतन सत्ता को सर्वथा विकृत और निष्क्रिय कर दिया है !मनुष्य यांत्रिक सभ्यता का अँधानुकरण करने वाला ,कठ पुतला मात्र बन कर रह गया है !इस पंगु विकास का मूल्य हमने मानवीय अनुभूति और संवेदना को जड़ बना कर चुकाया है !विनाश के कगार पर खड़े हुए हम ,यदि अब भी अपनी शाश्वत परम्परा के पुनुरुद्धार का ,नैतिक मूल्यों की अक्षय धरोहर को वापस लौटाने का ,सत्साहस और कालंजयी प्रयास करे ,तो बहुत संभव है ,कि अपनी खोई हुई गरिमा और महिमा ,हमारी जननी ,हमारी जन्म भूमि फिर से प्राप्त कर ले! यह कैसी विडंबना है ?यह कैसी त्रासदी है ?कि जगद्गुरु आर्यावर्त की कर्मठ ,मनस्वी ,महान संताने ,आज असहाय और निराश्रित बनी अन्य देशो से दया की, ज्ञान की भीख मांग रही है !पग -पग पर दूसरो की कृपा कांक्षी है ! अकिंचन सी दूसरो की जूठन से अपने क्षत-विक्षत भिक्षापात्र को संपन्न करने की चेष्टा कर रही है ! निरंतर विदेशी आक्रमणों ने हमारे स्वतंत्र चिंतन की ओजस्विता हमसे छीन ली ! युगों -युगों की दासता ने ,हमारी मानसिकता को कुंठित और पददलित कर दिया !तभी हम आज भी हिंदी जैसी राष्ट्र भाषा के होते हुए,अंग्रेजी की गुलामी में जकड़े हुए है !क्योंकि हमें स्वयं पर ,स्वयं की भाषा पर,स्वयं की योग्यता और बौद्धिक क्षमता पर, भरोसा ही नही है !हमारा आत्म सम्मान बिक गया !लम्पट विलासिता के मायावी आकर्षण ने हमारी चित्त वृत्तियों को स्वार्थी संकुचित करके ,पूर्णत:आत्म केन्द्रित बना दिया !हम अकर्मण्य और परावलम्बी बन कर जीवित रहना चाहते है !चीन ,अमेरिका पर हम आर्थिक नीतियों ,आवश्यक वस्तुओं के लिए सदा निर्भर रहते है !बजबजाती हुई आबादी काहिल ,काम चोर बनती जा रही है ,गरीबी भूख मरी में ज़ीना सीख गई है ! कालेज से लेकर फुट पाथ तक नशे की संस्कृति फ़ैल चुकी है !सब्जियों ,फल और दूध से ज्यादा गौतम ,गाँधी के देश में मदिरा की खपत है !हमारी पीढी की पीढी रसातल में जाये तो जाये सरकार को क्या पड़ी है !वोट लेकर नोट बनाने का खेल दशको से जारी है !जवान होते बच्चे अपने माँ बाप को हिकारत से देखते है !उन्हें पिछडा हुया या दकियानूस करार कर दिया जाता है ! नंगे पन और समलैंगिकता की जोरदार वकालत कर ने वाली ये पथ भ्रष्ट पीढी क्या देश को कोई सार्थक दिशा देने के लायक है ?अपनी ही संस्कृति और भाषा से जिसे वितृष्णा हो ,वह उसी का भला कैसे कर सकती है ? वैयक्तिक से सामूहिक स्तर तक निरंतर बढते हुए ,इस नैतिक अवमूल्यन ने ,सामाजिक व्यवस्था को अपने राक्षसी पंजे में दबोच लिया है !और छट पटाती हुई भारतीयता की मंगलमयी चेतना मुक्ति की एक साँस के लिए पराधीन हो गई !जीवन विजड़ित और अर्थ हीन हो गया ! लोक परम्परा अंध विश्वास और निरक्षरता के दलदल में फंस कर ,अपना वास्तविक हितैषिणी स्वरूप ही गवाँ बैठी ! उसका स्वस्ति संपन्न अस्तित्व ही लगभग विलीन हो गया !वर्ण व्यवस्था की अवधारणा आज अपने विकृत अर्थो के साथ इतनी घिनौनी और जटिल बन चुकी है ,कि लोक कल्याण की दृष्टि इसका विनष्ट हो जाना ही सामयिक होगा !धर्म की सहकारी उदारता ,असहिष्णु ,और हिंसक उन्माद में बदल गई है !संप्रदाय वाद और अवतार वाद के पिशाच ने ,उसकी तेजस्विता को,समतावादी नीति को ,मानवतावादी रूप को इस सीमा तक,नष्ट भ्रष्ट कर दिया है ,कि धर्म आज अधर्म का पर्याय बन गया है !जीवन में धर्म की भागीदारी ने मानव को मानव के रक्त का प्यासा बना दिया ! ईश्वर को टुकडों में बाँट कर धार्मिक कठमुल्लाओं ने ,अपनी वंचक प्रवृत्ति और षड यंत्रो को उसके पावन रूप की आड़ में ,सफल बनाने का कुचक्र रच रखा है !इसीलिए मानवतावादी संधियों और समझौते के लिए सर्वत्र समर्पित ,भारतीय अन्तश्चेतना नाना आडम्बरों और संकीर्ण स्वार्थो की अनुगामिनी बनती गई !’विश्व बंधुत्व’और वसुधैव कुटुम्कम् की आदर्श वादिता ,मात्र नीति शास्त्रों के पृष्ठो की धरोहर बन चुकी है !उसे जीवन में ढालने का अभ्यास ही नही हो सका !मानव धर्म की उदार परिभाषा तो हम भूल गये,परन्तु व्यक्तिगत स्वार्थ धर्म की संकीर्णता और कुटिलता उसकी शिराओं में निरंतर प्र वाहित होती रही !व्यावहारिक जीवन में इसी दोहरे मानदंड को अपनाने की प्रवृत्ति बढती ही जा रही है ! तथा कथित ‘शांति और सुरक्षा ‘के नाम पर वैज्ञानिक प्रगति के दावो ने ,परमाणुविक अस्त्र शस्त्रो का विशाल संग्रह कर रखा है !जो कभी भी दुनिया का हिरोशिमा नागासाकी से कई गुना अधिक सर्व नाश कर सकती है ,बल्कि यह कहना अधिक उपयुक्त है ,कि सर्व नाश के सारे साधन जुट चुके है !इसी तरह औद्योगिक विकास के नाम पर जो आंकड़े उपलब्ध होते है ,वे विकास कम ,प्रदुषण की कहानी अधिक कहते है !नदियों का न्यूनतम जल स्तर ,उनका सूखते जाना,उनके पानी का खतरनाक स्तर तक जहरीला होना ,हमारी संजीवनी शक्ति का ही विनष्ट होना है !पर हम है ,कि कुछ भी नहीं सोचते ! कितने अंतर्विरोधो और प्रवंचनाओं से परिपूर्ण है हमारा जीवन !देश का बु द्धिजीवी वर्ग जो जन चेतना का मार्ग दर्शक मसीहा कहलाता है ,अपने कर्तव्यों से पलायन कर रहा है ,सुविधा ,विलासिता भोगी इस वर्ग का ।एक बड़ा हिस्सा ,जो देश के चिंतन को एक नूतन व् निश्चित दिशा दे सकता था , युग को परिवर्तन के मोड़ पर खड़ा कर सकता था ,वह बौद्धिक व्यायामों ,शब्द जालों ,और तर्क शास्त्रों के नये हथियार गढने में लग गया है !सत्ताधीशों के प्रत्येक क्रिया कलापों को स्तुत्य और वरेण्य बनाने का ठेका इसी वर्ग ने ले रखा है !क्योंकि इसकी सरकारी प्रतिष्ठा भाषा के इस कुत्सित व्यूह में ही सुरक्षित रह सकती है !प्रेस ,मीडिया आदि में पेड न्यूज का बढता चलन ,इनकी आदर्श वादी संहिता के लिए एक चुनौती है !जन तांत्रिक प्रणाली की सफलता का आधार ,जन समूह की जागरूक चेतना होती है ,और जब वही भ्रम ,अफवाहों की शिकार हो जाये ,तो व्यवस्था को हिटलर शाही होते कितनी देर लगेगी ?प्रेस को हर संकट कालीन स्थिति में अपनी अस्मिता और स्वतंत्रता को बचाए रखना चाहिए ,पर बात बात पर बिक जाने वाली ,मनोवृत्ति ,और नाना प्रकार की लिप्साएँ उनकी मार्ग अवरोधक बन जाती है !जनता के शासन में जनता को गुमराह करने का अधिकार किसी को भी नही है,पर नासमझ जनता गुमराह होती रही है ,हो रही है! देश की नौकर शाही व्यवस्था ,पूर्णत: उत्कोच धर्मी है !नैतिक चारित्रिक पतन में आपद मस्तक डूबी हुई, यह देश की सर्वोच्च कार्यप्रणाली अंग्रेजी भाषा ज्ञान ,और तथाकथित अभिजात्यीय दंभ में चूर ,भारत के सामान्य जन जीवन को क़ीट पतंगो से अधिक नही समझती !विकास और प्रगति की समस्त सम्भावनाएँ ,इसके आक्टोपसी पंजों में छट पटा कर दम तोड़ देती है !भ्रष्ट प्रशिक्षण शैली में पनपता ,राजनीति के कुचक्र में फंसा हमारा’ बहादुर पुलिस विभाग ‘अफसर और विधायको के मनसूबो को पूरा करना ही अपना परम धर्म समझता है !नौकरशाही के समस्त कुचक्रो में उसका कनिष्ठ सहयोगी यह पुलिस विभाग ,काया की छाया सा क्रूरता में नित नये ,कीर्तमान स्थापित करता जा रहा है ! जन अपेक्षाओ को इसने अपने दुष्कृत्यों से हमेशा निराश किया है !आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था के इन सजग पहरेदारो ने ,थाने की चार दिवारी को चम्बल की सीमा बना दिया है !जनमानस में आतंक का पर्याय और उसे प्रोत्साहन देने वाला यह विभाग ,पद के दुरुपयोग को अपना जन्म सिद्ध अधिकार मानता है ! देश की जर्जर शैक्षिक व्यवस्था ,भी मात्र लिपिक वर्ग का निर्माण करने में सक्षम है ! ज्ञानार्जन की बौद्धिक और आत्मिक उर्जस्विता प्रदान करने वाली मूल चेतना ,वर्तमान प्रणाली में लुप्त हो चुकी है !यह शिक्षा न जीविकोपार्जन का उद्देश्य ही पूर्ण रूप से पूरा कर पाती है ,और न चिंतन शक्ति के शाश्वत मूल्यों के उत्कर्ष में ,सहायता दे पाती है !भारतीय वांगमय के विशाल अक्षय कोष की अमूल्य ज्ञान संपदा से ,नवोदित पीढी सर्वथा वंचित है !अनभिज्ञ है !शिक्षा के क्षेत्र में बढते पाश्चात्य प्रभाव ने ,इस पीढी को ,उसकी धरती से,संस्कृति से ,गौरव से निर्वासित कर रखा है !हमारे देश के महिमा मंडित इतिहास की एक सुदीर्घ परम्परा रही है!विदेशियों के लगातार होते आक्रमण ने ,उनकी लुटेरा वृत्ति ने ,अपनी छद्म नीतियों की सफलता के लिए ,उसके निर्मल अध्याय में ,इतने प्रक्षिप्त अंश जोड़े कि उसका वास्तविक स्वरूप ही ,संदेह के कुहासे में अस्पष्ट रेखांकन सा निमग्न पडा रह गया !आज आवश्यकता है ,उस लुप्त प्राय विस्मृत मनीषा के दैवी आवाहन की ,सुषुप्त मनश्चेतना के जागरण की ,पुरातन ,अतुलित ज्ञान भंडार के विशुद्ध अवलोकन की ! अध्ययन की !तभी परिस्थितियों की विषमता ,और समस्याओ की जटिलता समाधान पा सकेगी …गुंडा राज्य की ,वसूली अपहरण की ,राजनीति की, वापसी क्या संकेत करती है ?यही अर्धविकसित और अविकसित ,चेतना उनके विकृत निर्णय ,हमारे आमजन की भाग्य रेखा बन जाते है !राजनैतिक उदासीनता की मूर्छना के साथ ,क्षुब्ध जन मानस अपने हित को,विश्वासों को लुटते देख रहा है !आज हमे उन सभी एकाधिकार वादी ताकतों के खिलाफ लोहा लेने के लिए कृत संकल्प होना होगा ,जो जीवन के अधिकार को ,उसकी सरल स्वाभाविक धारा को ,अवरुद्ध करने का प्रयास करेंगी !अनुचित हस्तक्षेप को किंचित मात्रभी न सहने की आदत डालनी होगी !हमारा सौभाग्य तभी लौट सकेगा ,जब हम अंधे ,गूँगे ,बहरे न रह कर ,सजग चेतन प्रबुद्ध नागरिक की भूमिका सम्पादित करेंगे ! अधिकारो के उपभोग का भी हम स्वामित्व तभी चाहे ,जब हमारी प्रखर शक्ति उसे ग्रहण कर पाने में सुयोग्य हो !पहले अपने कर्तव्यो का दृढता से निर्वहन करना हमे सीखना है !आज देश को फिर किसी गाँधी,गौतम और विवेकानंद की जरुरत है !आज देश फिर किसी बड़ी क्रांति की जमीन तैयार कर रहा है !सुलगता जन मानस ,निकट भविष्य में कोई नई संचेतना अवश्य गढेगा !विकास का ,विश्वास का !
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