swarnvihaan
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महिला दिवस 8 मार्च पर विशेष ..
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स्त्री..
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तुम पुरुष नही हो सकते
मेरे स्त्री हुए बिना…
उम्मीदों की छोर
उँगलियों से पकड़े .
धूप मिली थी..
मग़र कोहरे को जकड़े ..
तुम सूर्य नही हो सकते
मेरे उषा हुए बिना…
आँसू चुगली करते थे
तकलीफों की..
नही खरीदी दवा
कोई भी चोटों की..
तुम जीत नही हो सकते
मेरे हारे हुए बिना…
गर्म रेत पर चली
स्त्री सदियों से..
चुपचाप गुजरती रही
अँधेरी गलियों से..
तुम धूप नही हो सकते
मेरे छाया हुए बिना..
बातों बातों में काटे
वनवास कई..
सुबह न आयी फिर भी
जगी रात कई…
तुम दीप नही हो सकते
मेरे बाती बने बिना…
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