swarnvihaan
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जिंदगी तुझसे कभी
फुरसत में मिलना है मुझे…..
दर्द के उठते बगूलों से
निकलना है मुझे …
हर तरफ रेत के
उठते हुए बवंडर है..
बन के पानी किसी
चिनाब का बहना है मुझे…
आग है या तपिश है
नफरतों के शोलों की..
ओस की बूँद सा दिन रात
पिघलना है मुझे…..
खरीदी बेच डाली
रोज ये दुनिया तुमने..
यकीन कर लो मगर
कुछ नही कहना है मुझे…
कभी तो चैन कही
ख्वाब में ही मिल जाये..
दुआ करो की अब
हालात बदलना है मुझे…
रेंगते है मेरी रगों में
जो गुजरे लम्हें ..
ये वही ताज महल है
जहाँ रहना है मुझे….
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