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गोवध निषेध की प्रासंगिकता ..!

swarnvihaan
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वैसे तो भारतीय आध्यात्म और जीवन दर्शन की आधार शिला ही अहिंसा ,पर दुःख कातरता है ,पर अपने वैज्ञानिक आर्थिक सामाजिक, और मानवीय आधार के कारण जन चेतना में गाय और गंगा सदैव सम्मानित और संरक्षित होते रहे !नैतिक शुचिता की प्रती क गाय और गंगा आज भी भारत की अस्मिता की पहचान है ! अमृत ह्य्व्यम दिव्यं क्ष्ररन्ति च वहन्ति च , अमॄता यत नं चैता:सर्व लोके नमस्कृता!! (महाभारत अ०५/श्लोक३०) (गौवे विकार रहित है ,दिव्य अमृतधारण करती है ,और दुहने पर अमॄतही देती है ,वे अमॄत का आधार है, वे सम्पूर्ण लोक द्वारा नमस्कार करने योग्य है ) गाय को विशेष रूप से यहाँ जननी के समान वन्दनीय पूजनीय माना गया है वेदों और पुराणों में भी गाय को अदिति और अध्न्या कहा गयाहै,जिसका अर्थ होता है –
ना काटने योग्य ना मारने योग्य! “माता रुद्राणां दुहिता वसुनां स्वसा हित्या नाम मृतस्य नाभि: ! प्रनु वोचं चिकिम तुषे , जनाय मा गाय ना गाय दितिम वधिष्ट !!” (ॠग्वेद ८/१/१५) (गाय रुद्रो की माता है ,वसुओ की पुत्री अदिति पुत्रो की बहिन् , और धृत रूप अमॄत का खजाना है ,प्रति एक विचार शील पुरुष को मैंने यही समझा कर कहा है ,कि निरपराध एवं अवध्य गौवो का वध न करे !) गाय इसी वैदिक महत्त्व को प्रतिपादित करते हुए गाँधी जी ने फरवरी१९४२में कहा था “गाय की रक्षा करो ,सबकी रक्षा अपने आप हो जाएगी ,ऋषि विज्ञानं की कुंजी खोल गए है ,हमें उसे बढाना चाहिए ,बर्बाद नहीं करना चाहिए !” देश क्र लगभग सभी महापुरुषों ने चाहे वह दया नन्द सरस्वती हो ,गाँधी तिलक मालवीय हो , जे पी हो या लाल बहादुर शास्त्री हो ,सबने गोवध का सक्रिय व पूर्ण विरोध किया !गाय की मर्मान्तक पीड़ा को शास्त्री जी ने इन शब्दों में व्यत्त किया -“मुझे लेलो चाहो तो मेरे प्राण भी लेलो पर गाय को छोड़ दो उसने आपके एक भी बालक को धक्का नहीं पहुँचाया है ! ” भारत में गो रक्षा के लिए प्राण विसर्जन करने की गौरव शाली व सुदीर्घ परम्परारही है !जिसमे महत्त्व पूर्ण अगली कड़ी भूदान यज्ञके प्रणेता संत विनोबा भावे का दधीचि उत्सर्ग है ! लेकिन तब भी राजनैतिक व्यामोह के दुष्चक्र में फंसे राज नेताओ की आँख नहीं खुली ,सन् १९५७ में स्वतंत्रता संग्राम के मशाल की प्रथम ज्वाला जिस क्रांत कारी मंगल पांडे के हाथो जली ,उसकी मूल प्रेरणा भी गोवध से उपजा आक्रोश ही था !मुगलों के इतिहास में भी ओरंग जेब को छोड़ कर किसीने भी गोवध नहीं करवाया ! हिन्दुओ की भावनाओ से जुड़े इस कोमल तंतुको इस्लाम की देवबंद शाखा ने भी अनुभव किया ,और एक स्वागत योग्य कदम उठाते हुए ,ईद के मुबारक अवसर पर गोकशी का निषेध करने वाला फ़तवा जारी किया , पूर्णत:गोवध निषेध के विरोध में केंद्र सरकार के प्रमुखतम दो ही तर्क है ,अल्प सख्य्कोंका तुष्टिकरण एवं गोमांस निर्यात द्वारा विदेशी मुद्रा अर्जन !भारत में वाम पंथी राज्य गोवध निषेध विधेयक पर सदैव बवंडर मचाते रहते है ! हिन्दुओ का प्रचंड बहुमत इस देश में होने के बाद भी उनकी ही भावनाओ पर सदा वज्रपात किया जाता है ऐसा क्यों ? वस्तुत:हिदू मुसलमान भारत में बरसों से मिलजुल कर रहते आये है ,अत:अल्प स ख्यँक तुष्टिकरण क़ी बात ही बेमानी है ! इसके पीछे घृणित राजनैतिक स्वार्थ और वोट बैक का लालच है और है कही न कही कट्टर पंथी तुष्टिकरण !
विदेशी मुद्रा गोमांस के निर्यात से जितनी अर्जित होगी उससे भी अधिक बचत गोपोषण परिवर्धन द्वारा अपने ही देश में हो सकती है !स्वामी राम देव ने गोमूत्र से जटिल बीमारियों का सफल इलाज खोजा है और लगातार उसकी मांग बढती जा रही है ,जो गायों के जीवित रहने से ही संभव है !भारत आज भी बेहद गरीब और कृषिप्रधान देश है !आज भी देश की कुल भूमि का पचास प्रतिशत हिस्सा खेती में प्रयुक्त होता है !जो गाय बैल पर अधिकांशत:आज भी आश्रित है भूतपूर्व प्रधान मंत्री लालबहादुर शास्त्री ने १९६५ में हैदराबाद के अपने भाषण में इसी तथ्य को उद्घाटित किया था!” देश में लाखो एकड. भूमि ऐसी है जहाँ ट्रेक्टरों का प्रयोग ही नहीं हो सकता !अमेरिका में ट्रेक्टरो से खेती हो सकती है क्योंकि वहाँ एक किसान के पास चौदह एकड़ भूमि का औसत है !इसी दशा में भारत में खेती के लिए लम्बे अरसे तक बैलो पर निर्भर रहना पड़ेगा!”इसके अतिरिक्त पचास प्रतिशत ग्रामीण परिवहन ,कस्बाई परिवहन भी बैलो पर निर्भर करता है ,घरेलू ईधन के लिए भी साठ प्रतिशत ग्रामीण परिवेश आज तक गोबर के उपले वा लकड़ी का ही उपयोग करता है !हमारे देश में लग भग चालीस करोड़ एकड. भूमि पर खेती होती है एक विकासशील देश के लिए इतनी भूमि पर वैज्ञानिक कृषि उपकरण उपलब्ध कराना वैसे भी संभव नहीं है !
प्रेम चंद के राष्ट्रीय उपन्यास गोदान में गाय पर सम्पूर्ण रूप से आधारित यही ग्राम्य चेतना ही मुखरित हुई है ! यहाँ जीवन और मृत्यु दोनों गाय के अभाव में असम्बद्ध और असम्पूर्ण हो उठते है !भारत में किसान और कृषि का प्रथम और अंतिम सहारा गाय और बैल ही है !इस गो संरक्षण की उपयोगिता समझ कर ही लाला लाजपत राय ने कहा था ,’गो रक्षा इस देश के नर नारियो का सबसे बड़ा कर्तव्य है !दूध घी पर ही भारत वासियों का जीवन निर्भर है ,जब से गाय बैल निष्ठुरता से मारे जाने लगे है, तबसे हमें चिंता सताने लगी है ,कि हमारे बच्चे कैसे जियेंगे !’ भारत में प्रतिवर्ष लाखो शिशु उचित पोषण के अभाव में काल के ग्रास बन जाते है ,गाय का दूध माँ के दूध के बाद शिशु के लिए सर्वोत्तम आहार माना जाता है क्योंकि यह हल्का सुपाच्य व अद्भुत प्रतिरोधक क्षमता युक्त होता है ,स्वामी दयानंद सरस्वती ने गाय की छ: पीढियों की गणना करके जो निष्कर्ष निकाला था ,उसके अनुसार छ:गायो की पूरी आयु का दूध वा छ:बैलो के श्रमसे उपार्जित अन्न राशि ४१०४४० व्यक्तियों के एक बार के भोजन के लिए पर्याप्त होगी !जबकि इनका वध करने पर प्राप्त मांस मात्र ४८० व्यक्तियों को ही तृप्त कर सकता है !हिन्दू विश्व परिषद् के मुख्य पत्र ने रुसी वैज्ञानिक श्रीशिरोविच के गाय के संबंध में अनुसन्धान को प्रकाशित किया था ! १-गाय के दूध में रेडियो विकिरण से सुरक्षाकी सर्वाधिक क्षमता है ! २-गावों में जिन घरो को गोबर से लीपा जाता है ,उनमे रेडियो विकिरण का प्रभाव नहीं होता !यदि छत को गोबर से लीप दिया जाये ,रेडियेशन का घुसना कठिन हो जायेगा ! ३-यदि गोघृत आग में जल कर धुँआ किया जाये (हिन्दू परंपरा से यज्ञ हवन) तो वायु में रेडियेशन का प्रभाव बहुत कम हो जायेगा ! ४-श्रीशिरोविच ने बताया कि रूस में गाय के पंचगव्य (दूध घी दही गोबर गोमूत्र)पर हुआ हैजो अनेक चर्म रोगों को जीवन पर्यन्त ठीक कर देता है ! अनेको वैद्य जिनमे रामदेव भी है इसका प्रयोग सफलता पूर्वक कर रहे है विदेशो मे गाय की नस्ल सुधारने के सम्बन्ध में अनेको प्रयोग हुए है ,उनके लिए विशेष प्रोटीन युक्त चारे का निर्माण किया जाता है ,स्वच्छ धूप युक्त हवा युक्त पशु शालाओ में रखा जाता है ! उचित और वैज्ञानिक तरीके से देख भाल होती है जिसका परिणाम दूध में कई गुना अधिक वृद्धि के रूप में मिलता है यदि भारत में भी गोपाष्टमी जैसे अवसरों पर गाय की कोरी पूजा न करके उचित संरक्षण,पौष्टिक भोजन दिया जाये तो यथेष्ट लाभ प्राप्त करके हम अपने भारत के बच्चो को कुपोषण अल्प पोषण से बचा सकते है! हमारे देश में वाम मोर्चा शासित प्रदेशो के अलावा लगभग सभी राज्यों में गोवध निषेध लागू है !फिर भी गोवध क़ी घटनाएँ आये दिन प्रकाश में आती रहती है ,विशेष वर्ग के त्योहारों पर तो ट्रको में डालो में भर भर कर गो वंश को हत्या के लिए ले जाया जाता है ! बाम्बे मद्रास कलकत्ता जैसे महानगरों में तो आधुनिक सयंत्रो द्वारा बड़े पैमाने पर दिन रात गोहत्या होती है ! बाँगला देश के बार्डर पर थोड़े से पैसो की खातिर लोग गायों को सीमा पार पहुचाँते है !जहाँपहंचते ही उनको अलग अलग हिस्सों में काट दिया जाता है !सरकारी कसाई खानों में तो हजारो गाय बैल कुछ घंटो मेंही कट जाते है ,जरुरत पड़ने पर दूसरी पाली भी चलाई जाती है !विशेष रूप से निर्यात के उद्देश्य से खुले ये बूचड खाने अरब देशो में मांस वितरण हेतु बनाये गए है !इनके पीछे तेल की राजनीति कार्य करती है ,इस कार्य के लिए कई उद्योग पति भी सरकारी अनुमति प्राप्त करने के लिए प्रयत्न शील है !अमेरिका में गो सूप अत्यधिक पसंद किया जाता है ,उसके लिए भारत एक खुला बाजार है ! उनका यह द्रष्टिकोण भारत सरकार की गलत नीतियों और पर्याप्त जन जागरण के अभाव में विकसित हुआ है ! लुइस फ़िशर ने भारतीयों की इस कथनी और करनी के अंतर को भलीभांति समझ लिया था ,और परख लिया था गो पूजक और तथाकथित अहिन्सक इस देशमे गायों की इस विडम्बना पर उसने अपनी पुस्तक ‘गांधीजी ‘(पृष्ठ ,७८)में लिखा है -‘हिन्दू गाय की पूजा करते है और मुसलमान उसे खाते है ,गांधीजी अनुभव करते थे कि गो रक्षा का प्रयत्न ईश्वर की समस्त निर्वाक सृष्टि का प्रतीक है !गायो की गर्दन कसाई की छुरी के नीचे इसलिए आती है कि हिन्दू लोग उसे बेचते है ! विश्व के किसी भी भाग में पशुओ की वैसी दुर्दशा नहीं है जैसी भारत में !’ अल्पसंख्यको की गोवध जैसी अनुचित मांग को अस्वीकार करते हुए स्वराज्य आन्दोलन के ही दिनों में गांधीजी ने साफ़ कह दिया था कि ‘मै बेचारी गायो को इस तरह नहीं छोड़ सकता ,स्वराज्य के लिए गो रक्षा का आदर्श भी मुझसे नहीं छूटेगा !’ उमाभारती ने मध्य प्रदेश में कुछ समय पहले गोहत्या पर प्रतिबन्ध लगवा कर अपनी कथनी करनी की समानता को दिखा कर हिन्दू भावना को सम्मान दिया है !गोवध का समर्थन करने वाले वाम पंथियो वा कट्टर पंथियो से से पूछना चाहिए कि गो संरक्षण से होने वाले लाभ क्या उन्हें नहीं मिलेंगे ? क्या स्वाद से ऐठतीं जीभ और संकुचित स्वार्थो को भाषाई कलेवर में लपेट कर अपना मंतव्य सिद्ध करना ही एक मात्र मानव धर्म या राष्ट्र धर्म है..!

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