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हाट -बाज़ार !!

swarnvihaan
swarnvihaan
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हाट और बाजार की
ये संकरी सी वीथियाँ !
जल रही इंसानियत
की खेतियाँ !
झूठ और पाखण्ड की संजीदगी !
मजहबी उन्माद की कुछ बानगी !
रक्त लथपथ
गीत की हर पंक्तियाँ !
स्वाद तीखा सा कसैला सत्य का ,
कत्ल युग के एक पूरे कथ्य का !
मोल कौड़ी बिक
रही है हस्तियाँ !
धर्म ईश्वर चुन दिए दीवार में ,
औलिया जीसस खड़े लाचार से !
आस्था की उड़
रही है धज्जियाँ !
प्रश्न भाषा जाति का रंग का नही ,
दब चुके है बर्फ में रिश्ते कही !
उठ गयी
संवेदना की अर्थियाँ !!

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