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नाम तुम्हारा !! कविता !!

swarnvihaan
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छन्दों के गुरुकुल में आकर ,
गीतों का दल खो जाता है !
भूला-भूला सा नाम तुम्हारा ,
अधरों तक रुक जाता है !
~~~~~~~~~~~
उन अमलतास के गुच्छों से ,
क्या अब भी रंग बरसते है ?
फुलवारी के फूलों में क्या ,
अब भी बतरस रस भरते है ?
तितली के पँखों पर वर्षा जल,
निर्भय हो सो जाता है !
भूला-भूला सा नाम तुम्हारा ,
अधरों तक रुक जाता है !
~~~~~~~~~~~
अनुबंधों से नव रस के ,
यह इंद्र धनुष किसने खींचा ?
ये लग्न पत्रिका मौसम की ,
मुट्ठी में ले करके भींचा !
पर्वत सी पीड़ा को लेकर ,
यमुना जल बहता जाता है !
भूला-भूला सा नाम तुम्हारा ,
अधरों तक रुक जाता है !
~~~~~~~~~~~
कौतुक था समय बिताने का ,
अंजुरी में साँझ बिछलती थी !
आपाधापी थी आने की,
पर जाने की भी जल्दी थी !
भुजपाशों में मलयानिल के ,
अब नव दल सिहरा जाता है !
भूला-भूला सा नाम तुम्हारा,
अधरों तक रुक जाता है !
~~~~~~~~~~~
बंशी तट था पनघट भी थे ,
यौवन के लदे-फंदे दिन थे !
चुनरी की सतरंगी गाँठे ,
मन के बौराये अनबन थे !
ब्रज की गलियों में राधा का ,
अब बिरही। मन रम जाता है !
भूला-भूला सा नाम तुम्हारा ,
अधरों तक रुक जाता है !!

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