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हाशिये !! कविता !!

swarnvihaan
swarnvihaan
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हाशिये !!
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हाशिये पर जिंदगी को ,जी लिया मैंने,
पीर होंठों से बही ,तो सी लिया मैंने !
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तितलियों के पंख जोड़े ख्वाब से उड़ते रहे,
एक अरसा नीम बेहोशी में ही चलते रहे !
बंद दरवाजों के खुल जाने की जिद में ,
धूप की चिन गारियों में ,खड़े जलते रहे !
केंचुली से झाँकते बाहर कई चेहरे मिले ,
दर्द हर तीखे ज़हर का पी लिया मैंने !
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झुरमुटों के जुगनुओं में कुछ भरम पलते रहे ,
हाँफते से रास्ते रफ़्तार को चुभते रहे !
दाग रिश्तों के जकड़ते जा रहे थे देह को ,
फासले की खिडकियों को रात भर तकते रहे !
साँप जैसी रेंगती परछाईयाँ अक्सर मिली,
उम्र की कुछ सिलवटों में सी लिया मैंने !
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ग़लतियों के आईने में अक्स दिखता ही नही ,
देर कर दी है बहुत उम्मीद कोई भी नही !
फलसफे चालाकियों के कुछ लिखे दीवार पर ,
हर कदम पर डूबता दिल आँख में बाकी नमी !
इस तबाही के तमाशे पर थे उनके दस्त खत ,
पांव के नीचे जिन्हें अपनी ज़मी भी दे दिया मैंने !!

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