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युगांतर !! कविता !!

swarnvihaan
swarnvihaan
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तुम्हारे पाँवो के नीचे ,
जो जमीन है रक्त से सनी है !
तुम जिस हवा में साँस ले रहे हो ,
वह चीखों से भरी है !
हरे दरख्तो को काट कर,
ठूंठ बना दिया गया है !
इसीलिए परिन्दे अब घर नही बनाते !
गढ़े जा रहे है बिम्ब ,
जातियों के, मशीनी सभ्यताओं के !
व खोजी जा रही ,
समानांतर व्यवस्था !
प्रकृति और प्रकृति परस्तों के विरुद्ध
तय किये जा रहे
गम्भीर आरोप !
इतिहास करवट ले रहा है,
संगीन जुर्म के गुनहगार साफ बरी हो रहे है !
और निरपराधों को,कमजोरो को ,
सूली पर चढ़ाया जा रहा है !
ये अंधेर नगरी का चौपट राज नहीँ है !
नए कलेवर में दस्तक दे रहा ,
नयी उम्मीदों का लोक तंत्र है !
भूल पर पश्चाताप की परम्परा अब
खत्म हो रही है !
गलतियाँ हमारी मूल प्रवृत्ति है !
आदम और हव्वा की संतानो का मतलब ही है
गलतियाँ सिर्फ ग़लतियाँ !
आदमियत की शिनाख्त गुम हो गयी है !
हम उस दौर में है,
जहाँ तवारीखें आवाक/शब्द जड़/
और मनोवृत्तियाँ स्तब्ध हो जाती है !
दुर्घटनाओं का घटना खबर नही है ,
दुर्घटनाओं का न घटना ही
खबर है !
जनवादी अखबारों का
प्रलाप झूठा है !
जबकि उसकी स्याही लाल हो चुकी है ,
संगीन वारदातों ,खूनी धमाकों से !
युद्धों की लोमहर्षक पुनरावृत्ति !
अदृश्य / अघोषित /वापसी !
कुछ इस तरह से,
कि
लाशों ने कफन ओढ़ने से
इंकार कर दिया है !
भीषण लालसाओं / लोलुपताओं के दौर का
चक्रव्यूह अभेद्य है !
और अभिमन्यु !
वह तो खुद कब से निशाने पर है !!

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