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गूँगी चीख !! कविता !!

swarnvihaan
swarnvihaan
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अचानक ,
सक्शन पम्प ने जब छुआ ,
माँ के पेट की भीतरी दीवारो कों !
अगूँठा चूसती ,
गुनगुनाती ,और शायद अंतिम बार ,
मुस्कराती गुड़िया ,
डर से सहमी ,सिमट गयी खुद में !
नागवार सी हलचल !
हल्के से कुनमुनाई ,
पर जल्दी ही दहशत से
एक सौ बीस से बढकर ,
दो सौ पर पहुँच गयी !उसके छोटे से दिल की धड़कन !
असीम दर्द से उबल पड़ी ,

मासूम की आँखे !

जब औजार ने उसकी
कमर का एक टुकड़ा काटा !
और फिर तेजी से
पाँवो को मुट्ठी बंधे हाथो को
काट काट कर ,
बाहर खींचने लगा !
दर्द से हर बार बेतरह बिल बिलाती
वह ,
बचने को घूम घूम गयी
पेट की दीवारों में !
नम रेशों के आसपास !
जो भरने लगा था
उसके ही खून से लबालब !
छटपटाती ,असहाय ,
होती पल पल, अंग हीन, छिन्न भिन्न ,
कतरा कतरा ,रक्त लथपथ !
डॉक्टर मनोयोग से झुका रहा ,
मॉनिटर पर !
व्यस्त ,अभ्यस्त हाथो का
देख रहा था कौशल
तकनीक का करिश्मा !
सब नियोजित सिलसिलेवार !
तभी तड़पते नन्हे से ज़ीव का मुँह खुला
शायद,
चीखने को बेसाख्ता अंतिम बार !
रक्त भरी पुतलियाँ घुमी चारो ओर
विस्फारित !
बस तभी नृशंस सड़सी ने ढूंढ लिया ,
उसका सिर !
पकड़ा, दबाया ,तोड़ तोड़ टुकड़ो में बाँट दिया !
उसके नन्हे वजूद को !
अपशिष्ट की भाँति फेक दिया कचरे में !
वह चीखना ही तो चाहती थी ,
कि दर्द दूर तक फ़ैल जाये
बहरे आसमान तक !
रोम रोम धरती का कांप उठे पीड़ा से !

पर वह चीख नही सकी !
गर्भ में ही कैद रह गयी
वो गूँगी चीख !

वो गूँगी चीख़ !!!

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