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जिन्दगी के फलसफे !!

swarnvihaan
swarnvihaan
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जिंदगी एक फलसफे में कैद थी ,
वरना इतनी मुफलिसी के दिन न थे !
मुश्किलों का हर सफ़र तन्हा रहा ,
खामोश लम्हे इस तरह लेकिन न थे !
एक अरसा नीद में चलते रहे ,
चाल बाजियों के हम में फन न थे !
रतजगो की चादरों पर है मुहर ,
ख़्वाब से बेजार यूँ तुम बिन न थे !
चाँद की छाया से सागर हिल गया ,
इतने धुले तो दूध से दामन न थे !
बेलागामी भावनाओं की रही ,
बेकली के इस तरह अनशन न थे !
कल फकीरों से दुआ भी मांग ली ,
इतने बुरे भी हौसलों के दिन न थे !
चैन के आगोश में बस रात थी ,
धूप के चिटके हुए दरपन न थे !
पाँव जख्मी हो गये घर में मगर ,
कांच के टूटे हुए बरतन न थे !
चाशनी में जो लपेटी थी गजल ,
लफ़्ज के कोई वहाँ बंधन न थे !!

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