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दीप एकाकी !! कविता !!

swarnvihaan
swarnvihaan
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दीप मुझे तुम सा जलना है !
बहुत कारँवा मिले राह में ,
फिर भी एकाकी चलना है !

———————–

अंतर मन की चाह अधूरी ,
नहीं तेल न बाती पूरी !
पाँव थके है ,दूर सवेरा ,
कठिन डगर है ,रैन अधूरी !
क्या कहना है ?क्या सुनना है ?
दीप मुझे तुम सा जलना है !

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साक्षी है ,यह तमस हमारा ,
हमने कोई समर न हारा !
बनती मिटती रेख धुएँ की ,
दुःख का करती है ,बंटवारा !
हर कीमत पर मुझे समय के ,
आँसू का हर कण चुनना है !
दीप मुझे तुम सा जलना है !

———————–
दर्प आँधियों का कुचलेगा ,
आने वाला कल बदलेगा !
मिट्टी में भी मिल जाएँ तो ,
एक नया अंकुर निकलेगा !
शूल बिछे हो यदि मीलों तक ,
मुझको तब भी चुप रहना है !
दीप मुझे तुम सा जलना है !!

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