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आमन्त्रण !!कविता !!

swarnvihaan
swarnvihaan
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बहुत मिली अनचाही राहें ,
अर्थ हीन लक्षमण रेखाएँ !
नीरव विस्तारों का अम्बर अब तो सिंदूरी करने दो !
मन का रीतापन भरने दो !!
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परवशता की सीमाओं में ,
पीड़ा को श्रंगार मिला है !
चाहा  था सन्दर्भ सुखों का ,
लेकिन उपसंहार मिला है !
तृष्णा के मरुथल में कब से ,
भटक रही ,गीतों की राहें ,
परम्परा से सदा न्याय को ,
यहाँ सिर्फ वनवास मिला है !
अभी अनकहे बैन मेरे है ,
सपनीले ये नयन भरे है!
जनम-जनम की अभी प्रतीक्षा ,प्यासी है पावस झरने दो !
सुधियों  की पुरवा बहने दो !!

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जिसमे आहत ह्रदय हुआ ,
वह संकल्पों की राहन लेना ,
जिसकी हो विषमयी तपस्या ,
उस चन्दन की छाँह न लेना !
संदेहों में पले प्रणय की ,
बहुत हो चुकी अग्नि परीक्षा !
जो शीशे का ताज महल हो ,
ऐसा अब विश्वास न देना !
जीवन छोटी सी छलना है ,
विरह कथा में मिलन कहाँ है?
थकी उसांसो की लहरों पर,नाम कोई अब तो लिखने दो !

बिखरी आशायें चुनने दो !!

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