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मामूली स्त्री !!कविता !!

swarnvihaan
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उम्र भर ,

गीली लकड़ी की तरह

सुलगता रहा मन !

रोटियों की मानिंद हर रोज ,

आंच में सिंकता रहा तन-बदन !

लम्हा-लम्हा रेत सा ,

यूँ फिसलता रहा हाथ से !

पायदान-दर-पायदान !

दरकती दीवारों में यादो की राख ,

पैबंद भरती रही !

एक अरसा ,

खोजती रही वह

आसमान में अपना सूरज !

उम्र की लकीरों ने ,

जवानी की तस्वीर को ,

बुढापे की खूसट फ्रेम में ,

कब का तब्दील कर दिया !

और उसे पता ही नही लगा !

फ्राकों की

गुडियों की दुनिया ,

स्कूल की रंग बिरंगी पेंसिले ,

कापियाँ !

फुदकती गौरैया सी सहेलियाँ ,

सब दफन कर दी गयी ,

नेस्तनाबूद हो गयी !

मनहूस दालानो/अँधेरे भंडारघरों /और

जालों भरे रौशन दानो के ,

सिपहसालारो ने जब्त कर ली ,

हौंसलों की भी आजादियाँ !

पर उसे पता नही लगा ,

वह गूंथती आटा /सुखाती बाल /

कुनैन की तरह

रोज ही गटकती ,

लताड़े/उलाहने /

उदरस्थ करती बंदिशो की विभिन्न किस्में !

घर को समझती रही ,

पीर बाबा की मजार /और साँकलों को ,

मंदिर की घंटियाँ !

रोज टेकती माथा/जोड़ती हाथ/और सराहती भाग/

भरती माँग /ओढ़ती ओढ़नी /और ,

साधती साल भर ,

व्रत त्यौहार !

नाखुशी के लबादों को ,

सबके चेहरे से उतार कर,

परे धकेलने की उसकी,

बौनी नाकाम कोशिशें ,

थक हार कर,

खामोश होती गयी !

और उसे पता नही लगा !

जख्म सिलती/ हर शिकस्त का/

उधेड़ती इच्छाओं की बुनावटें /

बटोरती /रोकती/टोकती/

ढूँढती खुद

को रोज ही ,हर सुबह !

शाक भाजियों की छौक में ,

खौलती दाल की ,

खदबदाहट में !

वह तलाशती किसी कविता की तारतम्यता !

रूप/रस/ गंध के /स्वाद के स्पंदनों में .

बसी सहज गतियाँ/गीतिकाएँ !

बेसाख्ता ढ़ीठ उम्मीदों की ,

काँपती टांगों पर वह ,

खड़ी रही ,ताउम्र!

और कटी -फटी,

रेखाओं से भरे,

कमजोर हाथों से थामती रही,

जिम्मेदारियों के पहाड़ !

संतोष के नमक से,

जिंदगी भर खायी ,

बासी रोटियाँ !

और भूख प्यास का उसे पता ही नही लगा !

माथे की बढ़ती सिलवटों की ,

जकड़न के साथ ,

भोर से साँझ तक के घने अँधेरों में भी ,

काम के बोझ का सरकटा प्रेत ,

उसके कंधों पर सवार था !

जूनून की हद तक ,

जूनून का ज्वार था !

और अचानक एक दिन जब ,

संतान की संतानों ने भी ,

उसके जंग खाए अस्तित्व को

परिहास का एपिसोड बना दिया ,

बूढ़ी माँ कह कर ,

खिलखिलाहटों के बीच ही ,

घर के /सीलन भरे/अँधेरें कोने में ,

उसे रोप दिया ,

तब वह पहली बार ,

होश में आयी !

और उसे पता लगा कि ,

वह एक मामूली स्त्री थी/है/और रहेगी,

शायद ,

सदियों तक !!

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