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वन्दे मातरम् !!कविता !!

swarnvihaan
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चंचल उज्ज्ज्वल फेनिल लहरें ,
झिल मिल -झिल मिल बल खाती है !
गर्जन – तर्जन करता सागर ,
वह मोती से नहलाती है !
नीले पानी पर नभ नीला ,
मलयानिल का उस पर पहरा !
सुबह ने झट से लगा दिया ,
माथे पर सिंदूरी सेहरा !
हरियाली हरती हर विपदा ,
दक्षिण से उत्तर पश्चिम तक !
बहते -गाते अविरल कल-कल,
नदियों के शीतल -शीतल तट !
सम्मोहित करते लहराते ,
कोसो तक रेतीले दर्पण !
जीता-जगता नर्तन करता ,
बिछ्ला जाता फिर भी जीवन !
कृष्णा की बंशी की ताने ,
हर घर में गीता बसी हुयी !
और रामचरित के दोहे सी ,
घट-घट में सीता रमी हुयी !
डूबा सूरज जल के भीतर ,
छायी लाली मीलों तट पर !
फिर कलश उठाये किरणों का ,
चल पड़ी साँझ अपने पथ पर !
स्वप्निल भारत ! स्वर्णिम भारत !
उजला कल था ! उजला कल है !
कुछ मैली गंगा अब यदि है ,
निर्मल कल था ! निर्मल कल है !!

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