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अनुताप !!कविता !!

swarnvihaan
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खंडहर सा बिखरा मन सारा ,
आखिर कब तक ढहना होगा !
भूलो को चुभते शूलो को ,आखिर कब तक सहना होगा ?
जन्मों -जन्मों के पापों की
डोलती व्याल सी छायाएँ !
सहमी सिसकी सी अधरों पर ,
कुछ कही -अनकही पीड़ाएँ !
पल-पल गहराते घावों को ,आखिर कब तक रिसना होगा ?
करुणा के पुलिनों पर कब तक ,बादल बन -बन रिसना होगा ?
कुचले विश्वासो की अर्थी ,
कन्धो के बोझ बढे जाते !
अधिँयारा बरस रहा नभ से ,
मरघट तक दीप बुझे जाते !
अभि शापों का यह गरल पिए ,आखिर कब तक मरना होगा ?
आहुति बन निठुर चिताओ की ,कब तक जीवित दहना होगा ?
फिर कौन सँवारेगा सपने ,
इन सूनी उजड़ी डालों के !
पंछी अब लौट न आयेंगे ,
थे केवल मीत उजालों के !
आँसू बन जीवन भारों को ,आखिर कब तक बहना होगा ?
डसती है , बातो की घातें ,कब तक यूँ चुप रहना होगा ?
जंगल -जंगल दावानल है ,
सागर-सागर खारा पानी !
हर साँस व्यथाओं की गाथा ,
राहें सब धुँधली अनजानी !
हिम शिखरों सा यह मौन लिए ,आखिर कब तक गलना होगा ?
रेती के नामो सा कब तक , बन-बन करके मिटना होगा ?

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