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वर्षा ऋतु !!कविता !!

swarnvihaan
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नव वधू शस्य श्यामल धर6ती ,
अलकों-अलकों श्रंगार किये ,कोपल -कोपल फिर हरियाली !
क्षितिज के तरुण कपोलों पर ,
रह-रह कर के बादल घिरते ,
नद -निर्झर तालों के सपने ,
लहरों की पलकों पर तिरते !
आशीष व्योम बरसाता है,
खेतों -खेतों सोना संवरे , आंगन-आँगन फिर रुपाली !
जूही चम्पा के नयनों की ,
मुकलित -अलसित सी मादकता !
जीवन हँसता किसलय -किसलय ,
अधखुली -धुली सी सुन्दरता !
उपवन परिमल के मदिरालय ,
वन -वन जैसे त्यौहार मना , कलियाँ-कलियाँ, मधु की प्याली !
शीतल समीर की सुन्दरता ,
कंपती सी तन की परछाईं !
जगती है पुलक लताओं में ,
लहराती सुरभित अमराई !
सिंन्दूरी इन्द्रधनुष आशा ,
हाथों-हाथो मेंहदी रचती , अधरों -अधरों बसती लाली !
छन -छन जल बूंदो के नूपुर ,
सृष्टि के पाँवों में बंधते !
बाँसुरी मोहिनी की बजती ,
कजली गीतों के सुर सजते !
पीपल की हरी -भरी छाया ,
झूलों -झूलों चुनरी धानी ,आँचल -आंचल डाली-डाली !!

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