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दिन भट्ठी सा दहक रहा है ,
रातें जल कर राख़ हो गयी !
दरकी धरती माँ छाती ,
खुली शंभु की आँखे जैसे !
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सन-सन सन्नाटे का चाबुक ,
रोज धूप का चढ़ता पारा !
गर्म हवाओं के तांडव से ,
आतंकित है , दिन बेचारा !
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व्याकुल ताल तलैया ,पोखर ,
रही दिवस भर चिड़िया प्यासी !
मीन जली पानी के भीतर ,
नदी निर्जला हुयी उपासी !
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सूखे पत्ते झरते झर-झर ,
खाल तने की छील गयी है !
जेठ दुपहरी काल कूट सी ,
हरियाली सब लील गयी है !
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काटे कटती नही है रातें ,
चाँद लगे सूरज का भाई !
करवट लेती उमस और भी ,
ढीठ हो गयी यह पुरवाई !
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सूरज ज्वाला मुखी उगलता ,
पागल दौड़ रहा सडको पर !
मन सैलानी ढूंढ न पाया ,
इन जलते प्रश्नों के उत्तर !
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हवा बवंडर ,आँधी बन कर ,
उड़ा गयी उम्मीद के कतरे !
अखबारों में छपी थी कल भी ,
आगजनी की झुलसी खबरें !
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तीखी चुभती गर्मी आई ,
मगर प्रशासन मौन पड़ा है !
बिजली पानी के विभाग पर,
राहु – केतु की महादशा है !
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मौसम के दावानल ने तो ,
हद से बाहर की बेशर्मी !
तुम ए सी कूलर में बैठे ,
तुम क्या जानो ?क्या है गर्मी !!
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