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गर्मी !!!कविता !!!

swarnvihaan
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दिन भट्ठी सा दहक रहा है ,

रातें जल कर राख़ हो गयी !

दरकी धरती माँ छाती ,

खुली शंभु की आँखे जैसे !

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सन-सन सन्नाटे का चाबुक ,

रोज धूप का चढ़ता पारा !

गर्म हवाओं के तांडव से ,

आतंकित है , दिन बेचारा !

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व्याकुल ताल तलैया ,पोखर ,

रही दिवस भर चिड़िया प्यासी !

मीन जली पानी के भीतर ,

नदी निर्जला हुयी उपासी !

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सूखे पत्ते झरते झर-झर ,

खाल तने की छील गयी है !

जेठ दुपहरी काल कूट सी ,

हरियाली सब लील गयी है !

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काटे कटती नही है रातें ,

चाँद लगे सूरज का भाई !

करवट लेती उमस और भी ,

ढीठ हो गयी यह पुरवाई !

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सूरज ज्वाला मुखी उगलता ,

पागल दौड़ रहा सडको पर !

मन सैलानी ढूंढ न पाया ,

इन जलते प्रश्नों के उत्तर !

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हवा बवंडर ,आँधी बन कर ,

उड़ा गयी उम्मीद के कतरे !

अखबारों में छपी थी कल भी ,

आगजनी की झुलसी खबरें !

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तीखी चुभती गर्मी आई ,

मगर  प्रशासन मौन पड़ा है !

बिजली पानी के विभाग पर,

राहु –  केतु  की  महादशा है !

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मौसम के दावानल ने तो ,

हद से बाहर की बेशर्मी !

तुम ए सी कूलर में बैठे ,

तुम क्या जानो ?क्या है गर्मी !!

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