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माँ !! कविता !!

swarnvihaan
swarnvihaan
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जब ठोकर लगती पांवो में,तब याद तुम्हारी आती है !

जब दुनिया छलती है मुझको ,माँ याद तुम्हारी आती है !!

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यह कड़ी धूप है जीवन की ,मै कब तक सब चुप चाप सहूँ ,

किसकी गोदी में छुप जाऊँ ,किससे सीने की घुटन कहूँ !

जब दिन भारी हो जाता है, तब याद तुम्हारी आती है ,

जब सारा जग सो जाता है , माँ याद तुम्हारी आती है !

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क्यों मुझे अकेला करके माँ ,तू इस दुनिया से चली गयी?

किससे पूँछू मै पता तेरा ? सब ओर ढूँढ कर हार गयी !

जी रह-रह कर घबराता है ,तब याद तुम्हारी आती है !

सपना जब कोई डराता है ,माँ याद तुम्हारी आती है !

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वह वक्षस्थल अब रहा नही ,जिस पर सर रख कर रोउँ मै!

स्पर्श तुम्हारा छूट गया , अब चैन से कैसे सोऊँ मै ?

मन को कोई तड़पाता है ,तब याद तुम्हारी आती है !

कोई जब मुझे रुलाता है ,तब याद तुम्हारी आती है ,

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जन्मों-जन्मों का नाता था ,यूँ मुझसे मुख न मोड़ो माँ,

बचपन में चलना सिखलाया ,अब ऊँगली को न छोडो माँ !

मन मुझ को जब भरमाता है , माँ याद तुम्हारी आती है ,

माँ कह कर कोई बुलाता है ,तब याद तुम्हारी आती है !!

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