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बढ़ती क्रूरता के विभिन्न आयाम और मानवीय पक्ष !!!भाग-२!!!

swarnvihaan
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एलोपैथिक दवाओ के निर्माण की प्रक्रिया इतनी बर्बर है ,कि देख सुन कर अपना अस्वास्थ्य भी संतोष प्रद लगे ! मानसिक उद्वेग ,और दैहिक क्रिया कलाप में रसायनों का भिन्न -भिन्न प्रभाव आदि जांचने के लिए असंख्य निर्दोष प्राणियों को यातना के विभिन्न स्तरों से गुजरना पड़ता है ! उन्हें इतनी निर्ममता से उत्पीडित किया जाता है ,कि मानव के अस्तित्व पर ही लज्जित होने का मन करने लगे ! ‘मनुष्य का स्वास्थ्य बहुमूल्य है ‘ इस नारे की दुहाई देकर इस संबध में प्रतिवाद का अवसर नही दिया जाता ! जनसामान्य को इस संबध में कोई  जानकारी या आंकड़ा उपलब्ध नही होता !क्योकि इन कुकृत्यों पर संचार माध्यमों की छाया भी नही पड़ने दी जाती !हमारे असाध्य रोंगों को दूर करने के लिए जो जान वर दधीचि की हड्डी जैसे गलाए गये है ,समस्त मानवता को उन मूक प्राणियों का ॠणी होना चाहिए !किन्तु मनुष्य ने सभ्यता की पहली सीढी पर पहला कदम रखते ही जो पहला पाठ पढ़ा है,वह अकृतज्ञता का ही था ! धिक्कार है ऐसे विकास पर ,जो निर्बलों के खून से सींचा जाये ,और लानत है उस सुख सम्पन्नता पर ,जो किसी से जीवन छीन कर ,उसकी सिसकियो पर , कराहों पर ,अपना अधिकार समझे ! ऐसी सुविधा से तो हम भूखे नंगे ,जंगली और असभ्य ही भले थे ,प्रगति शीलता की अंधी दौड़ ने तो हमें नर पिशाच ही बना डाला ! मधुमेह की एक मात्र दवा ‘इंसुलिन ‘है जिसे एक पौंड प्राप्त करने के लिए १० हजार सुअरों का वध करना पड़ता है ! क्या इसका विकल्प नही ढूंढा जा सकता है ?इस तरह मानवीय गरिमा को नीलाम करके हम भिखारी हो गये ! उधार ली हुई अनैतिक दृष्टि ही हमारी तथाकथित’ नैतिकता ‘ बन गई !

धर्म की आड़ में अपनी हिंसक छवि को छुपाने का प्रयास भी नया नहीं है ! जब क्रूरता में आनंद प्राप्त करने की प्रव्रत्ति (सैडिस्ट )स्वाद के लिए की जाने वाली हत्याओ में भी पीछा नही छोडती ,तो धर्म की दुहाई दी जाती है ! अपनी कमजोरियों को धर्म के परदे के पीछे छुपाने की मनुष्य की यह प्रव्रत्ति भी आदिम है !बध होते पशु की मर्म बेधी चीत्कारे किस स्वर्ग का दरवाजा खोलती है ?समझ नही आता ! मुस्लिम ईद बकरीद में जिस तरह विशाल पैमाने पर क़ुरबानी की आड़ में जीव हत्या करते है ,उसमे कौन सा धर्म छुपा है ?किस जन्नत में मासूम निरपराध जीवो का बध करने से इंसान पहुँचता है ?मुझे नही पता !विश्व का कोई भी धर्म हो ,यदि परपीड़न का रास्ता दिखाता है ,तो उसकी नीयत बहुतसाफ नही होगी !यह सुनिश्चित है !एक मात्र मानव धर्म ही वह धर्म है ,जिसकी धुरी सत्य,प्रेम ,करुणा ,परदु:ख कातरता ,और सहानुभूति है !और वही तर्क की कसौटी पर खरा भी उतरता है ! तथाकथित अहिंसा वादी हिंदू धर्म भी बलि के नाम पर नृशंस से नृशंस कृत्य करने में नही हिचकता !मनुष्य के भीतर बैठा हुआ आदिम शैतान अपनी रक्त पिपासा शांत करने के लिए सदियों से नये-नये बहाने ढूंढता रहा है ! बलि प्रथा भी इसी तरह के धार्मिक दुष्कृत्यों की एक कड़ी है जो इश्वर के नाम पर युगों से जारी है ! अब कानून बन जाने के कारण पहले की अपेक्षा इस दुष्कृत्य पर रोक तो लगी है ,पर चोरी छुपे और बंगाल में कई जगह तो अभी भी बलि प्रथा उसी घिनौने रूप में होती रहती है ! नेपाल एक हिन्दुराष्ट्र होते हुए भी बहुत क्रूरता से बलि प्रथा को स्वीकृत करता है ! नर पशुओ द्वारा होने वाला यह धार्मिक दुष्कृत्य धर्म से ही वितृष्णा उत्पन्न कर देता है ! बलि के समय मंदिर की दहलीजों और कसाई घरो के नारकीय दृश्यों से भरे आंगनो में अंतर और दूरी समाप्त हो जाती है ! निर्दोष के खून से सरा बोर हो उठी आस्था की चौखट देख कर आस्था के मस्तूल ही डूबने लगते है !ईश्वर कभी इतना अधर्मी और अन्यायी नही हो सकता ,जो अपने पुत्रों की हत्या से प्रसन्न होता हो !यह सब धर्म को बदनाम करने की ढकोसले बाजी है ,मूढ़ कुतर्को का वितंडा वाद है ! और है स्वाद से ऐंठती जीभ की पाशविक तृप्ति का बहाना ! हर विवेक शील मनुष्य को उस धर्म से बगावत कर देनी चाहिए ,जो रक्त पात की नीव पर खड़ा हो !नक्सलियों के ख़ूनी संगठनों व मुस्लिम आतंक वादी शिविरों द्वारा धर्म के नाम पर जो घृणित मुहिम चलाई जा रही है ,उसने कितनी नफरत और कितनी हिंसा फैलाई है ,कितने निर्दोष बेगुनाहो की जान ली है ,इसका कोई सही आंकड़ा उपलब्ध कभी नही हो पायेगा !

बलि प्रथा के पक्ष में प्राचीन कल से ही ,अश्व् मेध ,गो मेध ,नरमेध आदि पवित्र याज्ञिक क्रियाओ को आधार बनाया जाता रहा है !स्वार्थान्ध मूढ़ता के कारण ही अर्थ का अनर्थ हुआ है ! वाम मर्गियों ने अपनी चांडाल साधना को जन समर्थन की शक्ति दिलाने के उद्देश्य से यह भ्रमोत्पादन किया था ! इस षड यंत्र के लिए आर्य ग्रंथो में ,नाना प्रकार के असत्य अंश जोड़े गये ! और उनका मूल स्वरूप ही विकृत कर दिया गया !क्योंकि ‘स्वार्थी दोषो न पश्यति’ शतपथ ब्राम्हण में इन यज्ञों के स्पष्ट अर्थ दिए गये है !”राष्ट्र का अश्व मेध: /अन्नछहि गौ /अग्निर्वा अश्व आज्य मेध ” राजा न्याय में धर्म का पालन करे ! अग्नि में धी आदि का होम करना अश्व मेध ,अन्न, इन्द्रियों, किरण, पृथ्वी आदि को पवित्र रखना गोमेध ,और जब मनुष्य मृत्यु को प्राप्त हो ,तो उसके शरीर का विधि पूर्वक दाह करना नरमेध कहलाता है!

और फिर भारत की मंगलमयी चेतना जिसका मूला धार करुणा है ,वह प्राणी मात्र की कल्याण कामना ही कर सकती है !किसी का अहित तो उसकी स्थपना में ही वर्जित है-

मानो महांत युत मानो अर्थक मान उथ्त्नन्त्युक्त -मान उर्थिततम् ,

मानो वधी: वितरम मोत मातरं मान: प्रिया स्तन्वों रूद्र रीरिष:”

(यजु०/अ०१६/मं०१५/)

आदिम मनुष्य ने अपनी लुटेरा प्र वृत्ति की तुष्टि भीषण युद्ध का तांडव पृथ्वी पर किया है ,जो अभी तक न खत्म हुआ है और जब तक दुनिया में मनुष्य है ,न कभी खत्म होने की आशा ही है !महात्मा पैथा गोरस ने लिखा है कि’ ऐ मौत के आढे में उलझे हुए इन्सान ,अपनी तश्तरियो को मांस से सजाने के लिए जीवों की हत्या न कर !जो पशुओ की गर्दन पर छुरी चलवाता है ,उनका करुण क्रंदन सुनता है ,जो पाले हुए पशु पक्षियों की हत्या में मौज मनाता है ,उसे अत्यंत तुच्छ स्तर का व्यक्ति ही जानना चाहिए ! जो आज पशुओ का मांस खा सकता है ,वह किसी दिन मनुष्य का रक्त भी पी सकता है !

इस सम्भावना को असंभव नही माना जा सकता !’

मांसाहार प्राकृतिक दृष्टि से भी मनुष्य के अनुकूल नही है ! उसकी दैहिक संरचना प्र कृति ने विशुद्ध शाकाहारी बनाई है !नैसर्गिक मांसाहारी आँख बंद किये पैदा होते है ,जबकि मनुष्य आँख खोले ! मांसाहारी प्राणी के आगे क़ी तरफ के व नीचे की तरफ के दो -दो दांत नुकीले लम्बे होते है ,ताकि वह अपने शिकार को नोच -नोच कर खा सके ! जबकि मनुष्य के समतल दांत शाकाहार के लिए उपयुक्त है ! मांसाहारी की आंते छोटी होती है ,ताकि मांस आँतो में रुक कर सड़न न पैदा करे ! जबकि मनुष्य की आँते काफी लम्बी होतो है ! मांसाहारी के नाखून ,नुकीले, कड़े और पैने होते है !मनुष्य के नाखून कोमल व समान होते है ! मांसाहारी अँधेरे में देख सकता है ,जबकि मनुष्य केवल उजाले में !मांसाहरी की तरह मनुष्य अपने शिकार के नाख़ून बाल दांत आदि नही खा सकता ,चूंकि मांसाहार मानवीय प्रकृति के ही विरुद्ध है ,अत:नाना प्रकार के रोग मांस भक्षण से उत्पन्न होते है ! प्राकृतिक चिकित्सक जानकी शरण वर्मा लिखते है ,’मांस हानिकारक इसलिए है ,कि जानवर के शरीर के बहुत से टूटे-फूटे रेशे ,खून के विकार और जहरीले पदार्थ उसमे रह जाते है ! जिस समय जानवर मारे जाते है ,उस समय मरने के डर से उनके खून में जहर पैदा हो जाता है ,यूरोप और अमेरिका में मांसाहार का प्रचलन कम होता जा रहा है ,किन्तु विलायत की दम हिन्दुस्तान में वहाँ की छोडी हुयी चींजे भी बहुत दिनों तक जारी रहती है !डा०जसराम सिंह और सी० के० दास ने ग्वालियर सेन्ट्रल जेल के ४०० कैदियों के खान पान व्यवहार का अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाला ,कि मांसाहारी अधिक उग्र व हिसक होते है !

बढ़ती मांस खोरी के कारण आज गली -गली चौराहे-चौराहे कसाई खाने खुल गये है !,खुलते ही जा रहे है ! एशिया का सबसे बड़ा स्लाटर हॉउस ,अहिंसावादी बुद्ध के देश हिंदुस्तान में है ,और कांग्रेस के वरिष्ठ मंत्री, और बहुत बढ़-चढ़ कर बोलने वाले नेता कपिल सिब्बल की पत्नी का है ,जो उ०प्र० के साहिबाबाद में ही है ! बहुत शर्मनाक खेल जनता से छुप कर हमारी सरकारों ने खेला ! गोपालक कृष्ण के देश में सबसे अधिक गौओ की हत्या करके हमारा देश विदेशी मुद्रा कमाता है ! जहाँ गायों को माँ का दर्जा प्राप्त है ,हिन्दुओ की पूजा श्रदधा जिस गोवंश में है ,उसकी हत्या पर प्रति बंध का प्रस्ताब लाते ही सरकार गिराने की धमकी दी जाती है ,उस देश के दुर्भाग्य का क्या कहा जाये !

डा० हेग की पुस्तक “डाईट एंड फ़ूड”में उल्लेख है -‘शाकाहार से शक्ति उत्पन्न होती है ,और मांसाहार से उत्तेजना बढ़ती

है ! परिश्रम के अवसर पर मांसाहारी शीघ्र थक जाता है !और जिसे इसकी आदत पड़ जास्ती है वह शराब आदि उत्तेजक पदार्थो की आवश्यकता अनुभव करता है !यदि वह न मिले तो सिर दर्द ,उदासी स्नायु दुर्बलता आदि का शिकार हो जाता है ! ऐसे लोग निराशा ग्रस्त होकर आत्म हत्या ,करते है ! इंग्लैंड में मांस और शराब का प्रचार बहुत अधिक है ,इस लिए वहाँ आत्म हत्याएँ भी बहुत अधिक होती है ! यदि हठवादिता और मूर्खता भरी दलीलों को त्याग कर यथार्थवादी विवेकशीलता का , औचित्य के साथ परिचय दिया जाये , तटस्थ मानसिकता द्वारा ,वस्तु स्थिति का गंम्भीर विश्लेष्ण और विवेचन किया जाये ,तो शायद निरीह पशुओ के खून से कोई अपने हाथ न रँगे !

जिन घरों में छोटे जानवर काटे जाते है ,वहाँ के नृशंस वातावरण को देख क्र अबोध बच्चे सहम जाते है ! प्राणियों का मृत्यु पूर्व करुण क्रंदन उनमे भय ग्रस्त कुंठा और असुरक्षा की भावना को जन्म देता है ! उनका अविकसित अवचेतन मन

अपने अभि भावको को ,इस अमानवीय व्यवहार के लिए कभी क्षमाँ नही कर पाता होगा ! अमेरिका के एक प्रचारक श्री एंजिल ने कहा कि -‘वे गरीब और अनबोल प्राणियों के वकील है ,असलियत में मै आपको बतलाना चाहता हूँ ,कि जितना शीघ्र अपने बच्चो को मांस भोजन से विरत कर, उनमे जीव के प्रति दया और समस्त प्राणियों के प्रति सहानुभूति की भावना जगाने के लिए ,शिक्षण संस्थाओ में मांगलिक साहित्य का प्रचार किया जायेगा ,उतनी शीघ्र नाशकारी हिंसा भावना की जड़ कटेगी ! इतना ही नही,बल्कि सब प्रकार के अपराधों का मूल नष्ट हो जायेगा ! कुकृत्यों के बदले जेल में बंद करने से जहाँ एक अपराध को रोक जा सकता है ,वहाँ बच्चों को निरामिष भोजी एवं अहिंसक बना कर ,आगामी समाज से सारे दुष्ट कार्यो को हटाया जा सकता है !

भारत की खाद्यान्न समस्या के हल के लिए भारतीय अर्थशास्त्री और मांसाहारी मिल कर यह तर्क देते है कि ,जिस देश में प्रति वर्ष लाखो शिशु भूख से तड़प -तड़प कर प्राण दे देते हो ,वहाँ मांसाहार के प्रचलन से अन्न की कमी दूर हो जाएगी !यह तर्क संतुलित मानसिकता का परिचायक नह़ी है ! ईश्वर ने भारत की धरती को प्रचुर शाक अन्न से भरपूर कर रखा है ,यहाँ का अन्न दाता किसान इतना अन्न उगाता है, कि विदेशो में निर्यात करना पड़ता है ,और सरकार की उदासीनता और उचित संरक्षण के अभाव में लाखो टन अन्न सडको पर बर्बाद हो जाता है ,सड़ जाता है ! अखबारों में बरसात के आते ही गेहूँ सड़ने की खबरे आनी शुरू हो जाती है ! पर सरकारी कसाई खानों को चलाने के लिए इस तरह का दुष्प्रचार जरुरी है ! आखिर क्यों नही सरकार अन्न का उचित संरक्षण करती? क्यों नही समय रहते उसे गरीबों में मुफ्त बाँटा जाता ?नाना प्रकार के ऊल जलूल दिवस मनते है ,पर विश्व करुणा दिवस क्यों नही मनाया जाता ? आखिर कब हम धरती के और जीवो को भी जीने का अधिकार देंगे ?

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