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बढ़ती क्रूरता के विभिन्न आयाम और मानवीय पक्ष!! भाग -1

swarnvihaan
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आज की  प्रति स्पर्धा वादी भौतिक संस्कृति को वैज्ञानिक मान्यता मिल जाने से ,मानवीय मूल्यों की शाश्वत परिभाषा अत्यंत विकृत और संवेदनात्मक प्रेषणी यता से रहित हो चुकी है !आणविक प्रगति के नाम पर जिस भयावह अंतरिक्ष युद्ध का षड यंत्र पृथ्वी को जीवन से शून्य करने का चल रहा है ,कौन जाने उसके प्रेरणात्मक सूत्र आत्म अभ्यर्थना की आकाँक्षा में उपजे अथवा आत्म हनन की असंतुलित मानसिकता में,किन्तु इतना सत्य है कि इस तथाकथित अति प्रगतिशीलता के दावे की पृष्ठभूमि में मात्र शुष्क पैशाचिक बुद्धिवाद का ही जय घोष है ! जिसका मूल्य मानव अनुभूतियों का ,कोमल भाव नाओं का लहू बहा कर ही चुकाया जा सकता है ,चुकाया जा रहा है !
आदिकाल से ही मनुष्य की श्रेष्ठता पशुत्व पर इसलिए प्रतिपादित की जाती रही है ,कि वह संवेदनात्मक क्षमता का धनी है और इस दैवीय वरदान का प्रयोग सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय करके मानवता को गौरवान्वित करता रहा है !उसकी भावुकता परदुख कातरता ने ही उसे अन्य जन्तुओ में उच्चतम घोषित किया है !उसकी देवोपम चारित्रिक संपदा ने ही उसे धरती पर वन्दनीय अभिनंदनीय बना दिया ! अन्यथा भाव के अभाव में तो वह पूंछ सींग विहीन नर पशु ही है !
कुछ शारीरिक बौद्धिक क्षमतायें तो पशुओ व् अन्य जीव जन्तुओ में मनुष्य से भी कई गुना अधिक विकसित अवस्था में पाई जाती है ! हाथी सिंह चीता और गैंडा इत्यादि नाना वन्य जंतु मनुष्य से अतीव बलशाली है ! इसी तरह दृष्टि में गिद्ध घ्राण शक्ति में कुत्ता ,चींटी ,तिल चिट्टे अधिक सामर्थ्य वान है !भागने में हिरन का कौशल अनुपमेय है ,तैराकी और गोताखोरी में जलचरो की प्रेरणा से ही जहाजो का तकनीकी विकास संभव हुआ है !विमानों के निर्माण में नभ चरों की कला दक्षता का अनुकरण अध्ययन करना पड़ा है ! गृह निर्माण कला की क्षमता में मकड़ी और बया (पक्षी विशेष )जैसे जीव धारियों से मनुष्य आज भी पराजित है ! शरीर संतुलन के साथ गति का सुन्दर समन्वय बन्दर-चिम्पाजी वर्ग में देखा जा सकता है ! बीसवी सदी के दिशा ज्ञान सम्बन्धी अत्याधुनिक उपकरण कबूतरो की स्वाभाविक प्रवीणता के समक्ष आज भी नत मस्तक है ! कुछ जन्तुओ में अतीन्द्रिय ज्ञान सम्बन्धी क्षमता प्राकृतिक होती है ! नियति का यह वरदान उन्हें ,उनकी वंश परम्परा संरक्षण के उद्देश्य से उन्हें मिला है ! चीटियाँ वर्षा का पूर्वाभास पाते ही ,अपना निवास अन्य कही निरापद स्थान पर ढूंढ लेती है ! चूहों को भूकंप का आभास हो जाता है ,और वह बिलों से निकल कर इधर उधर भागने लगते है ! बन्दर भूकंप की आशंका पहचानते ही ,अपनी चंचल गतिविधियाँ बंद कर चुपचाप बैठ जाता है !
यह उद्धरण सिद्ध करते है, कि मनुष्य की उन्नति के साथ ही अन्य प्राणियों का विकास भी प्राकृतिक मान्यता प्राप्त है !
उन्हें भी हमारी तरह जीवन का अधिकार मिला है !
वैज्ञानिक प्रयोगों और परीक्षणो से भी यह वास्तविकता भी एक सर्वविदित प्रमाणिक सत्य बन चुकी है ,कि सृष्टि की समस्त जीव श्रृंखला ,चाहे वह जड़ हो या चेतन ,परस्पर एक सुनिश्चित क्रम में आबद्ध है ! विकास क्रम को संतुलित और स्वस्थ रखने के लिए सभी वर्ग के प्राणियों का अनुपातिक समन्वय अनिवार्य है !मनुष्य भी इस व्यवस्था की कड़ी मात्र है !किसी भी जीव वंश का समूल विनाश अथवा लुप्त हो जाना,प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष स्तर पर गंभीर पर्यावरण असंतुलन को जन्म देता है ! जिसका सीधा और सर्वाधिक दुष्प्रभाव मनुष्य को ही भोगना पड़ता है ! भोग रहा है ! क्योकि समस्त भौतिक संपदा का एक मात्र स्वछन्द और निरंकुश कर्ता धर्ता और भोक्ता भी तो वही है ! नियामक प्रकृति अपनी व्यवस्था में किंचित मात्र भी अनावश्यक हस्त क्षेप सहन नही करती ! नाना दैवीय आपदाओं व् नैसर्गिक प्रकोपों से,वह हमारी मूढ़ और लालची प्र वृतियों पर अंकुश लगाती रहती है ! बनों की अनियंत्रित कटान से ,बाढ व् सूखे की समस्या विकराल रूप से भयावनी हो चुकी है ! दिनोदिन नंगे होते पहाड़ एक दिन ऐसी जल प्रलय मचायेंगे ,कि मनुष्य अपनी भूल का प्रायश्चित भी नही कर पायेगा ! केदार नाथ की जल प्रलय प्रकृति की एक कठोर चेतावनी है ! इसी भाँति चेतन जगत के भी अनेको प्राणियों का भी ,समूल विनाश हो चु का है ! वर्त मान अस्तित्व संकट हाथी ,मोर ,चीता , कछुआ
पर विशेष है ! बहु मूल्य गजदंत के निर्यात द्वारा विदेशी मुद्रा अर्जन ,और चीन जैसे देशो की अवैध शिकारियों को अनाप शनाप पैसे देकर इनकी हत्या करवाकर गजदंत हासिल करना मुख्य कारण है !आज बाघों के अभ्यारण्य ही उनकी जान के लिए भय  के अरण्य बन चुके है ! रक्षको को ही लालच देकर मिली भगत द्वारा खूब शिकार हो रहे है ,स्थानीय प्रशासन कानो में तेल डाल कर बैठा रहता है ! मोरों की हत्या मोर पंख के लिए इतने अधिक पैमाने पर हो चुकी है ,हो रही है ,कि यह राष्ट्रीय पक्षी दुर्लभ जन्तुओ की श्रेणी में शीघ्र ही अपना नाम लिखवा ले तो ,कोई आश्चर्य नही होगा ! यही हाल बेचारे कछुओ का भी है ,तस्करों के द्वारा बेहद क्रूरता से पकडे और बड़ी संख्या में मारे जाने के लिए बेचने की ,घटनायेँ आये दिन अखबारों में छपती रहती है ! कलकत्ता में ,सबसे अधिक मांग है ,वैसे तो बहुत सारे प्रतिष्ठित होटलों में इनके सूप बेचने की घटनाये आम है ! एक कछुआ लगभग १५०० में आसानी से बिकता है !इसका सूप होटलो में५०००-५२०० में बिकता है !एक कछुए से अमूनन पांच कप सूप मिल जाता है !अर्थात एक कछुए से २५००० की कमाई !तस्करों का कहना है कि इससे उम्र दराज लोगो को फायदा होता है और शारीरिक क्षमता बढती है ! ऐसी व्यर्थ की बकवास करने  वाला , हत्या में सबसे पारंगत देश चीन और थाईलैंड है ! वैसे तो लगभग सभी देशो में भीषण ज़ीव हत्याए होती है पर यह चीन विचित्र जीवो का भक्षण करने में बहुत अधिक बदनाम है !नदियों को जीवन देने वाले यह जीव अपने प्रोटीन मांस की वजह से अपनी जान गंवाते जा रहे है !किन्तु इस पैशाचिक लिप्सा पर अंकुश लगाये कौन ?अधिकारी और राजनेता की सुविधा वादी ,उत्कोच धर्मी संस्कृति इन असहाय जन्तुओ की पुकार सुन कर भी कान  बंद कर लेती है ! वन्य संपदा का यह निरंकुश दोहन उन्हें शीघ्रातिशीघ्र अकिंचन बना देगा !जंगलो को अराजक तत्वों की टकसाल बनने से रोक नही गया तो ,परिणाम सभी को भुगतने होंगे !
मनुष्य आज किस सीमा तक दुर्दांत दानव बन गया है इसका जीता जागता उदाहरण वैज्ञानिक प्रयोग शालाएँ है ! जहाँ विभिन्न परीक्षणों के नाम पर लाखों करोडों जीवों को तड़प तड़प कर मरने के लिए मजबूर कर दिया जाता है ! ब्रिटेन की यूनिवर्सिटीज में हर साल लाखों जीव जंतु रिसर्च के नाम पर मारे जा रहे है !मेडिकल साइंस या वेटेरनरी साइंस के लिए साल भर में करीब १३ लाख जीवों पर प्रयोग किया जाता है !जिससे उनकी मौत हो जाती है !इन जीवो में लाखों चूहे ,२.२६ लाख मछलियाँ ,५० हज़ार मेंढ़क ,४२५० पक्षी ,१२४ बन्दर,१० कुत्ते,६ एमू समेत कई जीव शामिल है !इन जीवो पर कई बार ऐसे प्रयोग किये जाते है ,जिससे इन्हें गंभीर शारीरिक और मानसिक समस्याओ का सामना करना पड़ता है !प्रसिद्ध जीव शास्त्री डा ०जे ०बी ०एस० डाल्टन ने उन मूक प्राणियों की पीड़ा से द्रवित होकर लिखा था -‘मनुष्य स्वपीडन का अनुभव करके पर पीडन का अनुभव करे तो उसे पता चले कि वह कितना बड़ा पाप प्रयोग शालाओं, में विज्ञान के नाम पर कर रहा है !लोगो को और विशेष रूप से भारतीयों को अहिंसा की पद्धति से विज्ञान का विकास करना चाहिए ! क्रूरता,हत्या ,और नृशंसता की पद्धति पर नही ,क्योंकि उससे मानवीय गुणों का अंत होता है !जिस दिन ये गुण नही रहेंगे ,उस दिन मानव स्वयं अपना शत्रु हो जायेगा !’
मेंढ़ क की जैविकीय संरचना मनुष्य के सामान होना उसके लिए बहुत घातक सिद्ध हुआ है ! लाखो मेडिकल कालेज में छात्रों की शिक्षा के लिए इस की हत्या एक अनिवार्य आवश्यकता बन चुकी है !आज की दया हीन सभ्यता ने मनुष्य को जितना बर्बर बना दिया है ,उतना ही उसकी नूतन पीढ़ी को आधुनिक और सुसंस्कृत बनाने हेतु इन मासूम प्राणियों को छट पटाते हुए अपना बलिदान देना पड़ता है !फिर भी हमारी अन्तश्चेतना स्पंदित नहीं होती ?क्या इस व्यवस्था का कोई विकल्प नही है !अभी नई खोज हुयी है डिजिटल पद्धति से पढ़ाने की ,पर वह कितने समय में कितनी जगहों पर कब लागू हो पायेगा ,कुछ कहा नही जा सकता ! वस्तुत: नीरस बुद्धिवाद की समर्थक ,आज की भौतिकता प्रधान मानसिकता ,इतनी जड़ हो चुकी है ,कि दया सहानुभूति प्रेम की इस दुनिया में जैसे अब कोई हिस्सेदारी बाकी नही ! कंप्यूटर युग ने मनुष्य को भी एक कंप्यूटर में बदल दिया है !ह्दय पढ़ने सुनने की वस्तु बन चुका है !अनुभूतियों भावनाओं ,आंसुओ से उसका रिश्ता ही तोड़ दिया गया ! मात्र तर्क शास्त्र की अनुचरी बनी हमारी आत्मा स्वार्थ की बेडी पहन कर बिकने को मजबूर है !
दैहिक सौन्दर्य की चेतना भी किस बर्बर पागलपन को जन्म देती है ,यह तथा कथित अभिजात्य सौन्दर्य सामग्री के निर्माण में देखा जा सकता है !शेम्पू का परीक्षण खरगोश की आँखों में शैम्पू डाल कर जब देखी जाती है ,तब कई बार खरगोश मर जाता है ! वह अँधा होकर तड़पता हुआ अपने प्राण दे देता है ! कोमल फर वाले पर्स और अन्य एसेसरीज की माँग आपुर्ति हेतु ,सम्बंधित जीवो को जीवित ही बेरहमी से छीला जाता है, क्योंकि मरे हुए जानवर की त्वचा और बाल उतने कोमल नही होते ! इसी तरह उत्तम और बहुमूल्य चमड़े के लिए ,अभागे पशुओ को उच्च तापमान की गर्म जलधारा में अद्यतन झुलसना पड़ता है ! इसी तरह कई अन्य प्रसाधनो के निर्माण की कथा भी अबोध प्राणियों के रक्त में डूबी है !चिकित्सा विश्व विद्यालयों में तो जानवर घर बनाना अनिवार्य होता है ,प्रयोग के बाद उन बेबस प्राणियों को मार दिया जाता है ! (शेष अगले भाग में)

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