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फागुन !!! कविता !!!

swarnvihaan
swarnvihaan
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रंगों के इंद्र धनुष बिखरे,
मौसम ने जब ,खोली पलकें !
गीतों के फिर ,आँचल सँवरे ,
फागुन ने फिर, गूँथी अलकें !
*–*–*–*–*–*–*
बिंदिया से ,पायल तक गोरी ,
भीगी चूनर , भीगी चोली !
भीगा अम्बर ,भीगी धरती ,
बासंती हवा रचाती, जैसे रंगोली !
मधु कलश ,छलकते छंदों के ,
फूले पलाश ,  जैसे वन के !
*–*–*–*–*–*–*–*
राधा के अरुण कपोंलो से ,
मधुशाला का ,गठबंधन है !
मन की छोटी सी बस्ती का ,
कोना-कोना, वृन्दा वन है !
पनघट है ,यमुना का जल है ,
किस्से है रस के, केसर के !!

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