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अनुबंध!!!कविता !!!

swarnvihaan
swarnvihaan
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जाने कैसे भूल गये तुम ,वो सारे    अनुबंध   हमारे !
मुझको अब तक याद आते है ,वो बासंती गीत तुम्हारे !
अलकों को मावस कहते थे ,
आनन को तुम शशि का दर्पण !
लहरों सी थी तन की भाषा ,
वेद ऋचाओं जैसा था मन !
साँसे महके जूही चम्पा ,चन्दन वन त्यौहार हमारे !
पर अब थके हुए से लम्हे ,अपनी -अपनी नियति से हारे !
मुझको अब तक याद आते है ,वो बासंती गीत तुम्हारे !
सन्ध्या छेड़े राग रागिनी ,
मध्यम सुर में कोयल बानी !
अब भी ठहरा समय वहीं पर ,
मछली से नयनों में पानी !
करवट लेती रात अभी पर,सुबह से रूठे उजियारे !
दिन जोगी मन सूना -सूना,कौन किसी की राह निहारे !
मुझको अब तक याद आते है ,वो बासंती गीत तुम्हारे !
मरुथल ब सा हुआ है भीतर ,
बाहर वर्षा जल है भारी !
खंडित प्रणय टीसता ऐसे ,
हरे पेड़ पर जैसे आरी !
विष पीकर भी रही बावरी ,मीरा पल -पल श्याम पुकारे !
वही बाँसुरी वही कन्हैया ,वो यमुना तट ,वही किनारे !

मुझको अब तक याद आते है ,वो बासंती गीत तुम्हारे !!

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