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सहचरी !!कविता !!contest !!

swarnvihaan
swarnvihaan
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प्रेम की प्रदक्षिणा,  सी हो प्रिये !
स्वस्ति का ,प्रशस्ति पत्र हो प्रिये !!
गीत का सौभाग्य, अधरों पर लिए ,
स्वर की, सुन्दर साधना सी हो प्रिये !!
है ,अखंडित ज्योति कुंडो से नयन दो ,
पान पत्ते सी हथेली ,सर्जना नव !
भाव अव गुन्ठित ,ह्दय की शेष शय्या ,
विष्णु कांता, लक्ष्मी सी हो प्रिये !!
शंख ध्वनि मंगल ,अनावृत कोष की ,
तुम स्वयं समिधा, बनी इस यज्ञकी !
ऐसी कृपा करुणा, बरसती मन्त्र की ,
अष्ट सिद्धि, नव निधि सी हो प्रिये !!
रूपसी तुम ,कुल वधू हो शील की ,
स्वयं सिद्धा, हस्त गत उपलब्धियों की !
कल्याण की ,शुभ की सुलक्षण व्यंजना ,
एकलव्य की, गुरु दक्षिणा सी हो प्रिये !!

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