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मीडिया की आजादी !!jagran juction forum!!

swarnvihaan
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अभी सुनंदा पुष्कर के केस ने मीडिया के उपयोग और दुरूपयोग पर एक बड़ा सा प्रश्न चिन्ह खड़ा किया है !उससे ही यह आकलन बड़ा सरल हो जाता है ,कि मीडिया अपने स्वतन्त्र अधिकारों का किसके पक्ष में ,और कितनी जिम्मेदारी से उपयोग करने में सक्षम है !स्वतंत्रता का मतलब स्वछंदता बिलकुल नही है !दृश्य मीडिया और उसके न्यूज चैनल तो अनर्गल बातों को ,बेकार की राजनैतिक बहसों को ,कमजोर मुद्दे या दिन भर की बोगस खबरों को लगातार दिखाने की क्षमता रखते ही है ,इसके अतिरिक्त शुष्क व्यवसायिकता के इस युग में सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार करने में भी कोई आपत्ति नही होनी चाहिए ,कि मीडिया द्वारा प्रस्तुत समाचारों की विश्वसनीयता एक सीमा तक ही होती है !हार्ड न्यूज को प्रमुखता देने का रिवाज जन मीडिया में तुल नात्मक रूप से कमजोर हुआ है !दुनिया के तमाम देशो में व्यावसायिकता पूरी तरह मीडिया पर हावी है ! खेल ,बिजनेस , राजनीति और फीचर कवरेज के प्रतिशत लगातार बढ रहे है ,और मुख्य समाचार लगातार बौने होते जा रहे है !
भारत के संविधान और उसकी धारा १९ देश के नागरिको और मीडिया को वाणी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देती है !पर इस स्वतंत्रता को स्वछंदता के रूप में मीडिया ने कैसे परिवर्तित किया है ,यह भी एक भ्रष्टाचार की अद्भुत मिसाल है ! मीडिया को लोक तंत्र का चौथा स्तम्भ कह कर प्रचारित करना ,भी एक तरह का षडयंत्र है !बेमानी है !पूरी दुनिया में ताकतवर सरकारे ,उद्योगपति मीडिया को अपना हथियार बना कर अपने महत्वाकांक्षाओ की पूर्ति करती है ! चाहे वह आर्थिक लिप्सा हो ,प्रभुसत्ता का भय हो ,या बाहुबलियों का ,पर मीडिया का दबाव में रह कर कार्य करना कोई नई खोज नही है !मीडिया और उसका कदाचार लगभग साथ ही साथ जन्मे है !और ऐसा हो भी क्यों न ! पूरा भारतीय समाज सत्ताधीशो से लेकर जनसमुदाय तक  आकंठ भ्रष्टाचार में डूबा हुआ जो है !सच कहने की कीमत जान देकर चुकानी पडती है !बहुत थोड़े लोग है ,जो अपने कर्तव्य को प्राणों से ऊपर रखते है !जो मीडिया के सरपरस्त है ,वही वास्तव में लाभ के उपभोक्ता भी है !व्यवसायी करण ,बाजारी करण ,विकट उपभोक्तावादी संस्कृति ,ये जो आज की दुनिया के नये तिकड़मी समीकरण है ,वे मीडिया की स्वतंत्रता का अपने हितो के लिए इस्तेमाल करना बखूबी जानते है !
लोकतंत्र की अपेक्षाओ को जन-जन तक ,और जन-जन की अपेक्षाओ को लोकतंत्र के पहरे दारो तक ,अबाधित रूप से पहुँचाना, मीडिया का धर्म और कर्तव्य दोनों है !जिन पाठको के बिना मीडिया का कोई अस्तित्व नही है ,वह उनके प्रति क्या पूर्ण रूप से अपने कर्तव्य का पालन कर रही है ? कि जो स्वतंत्रता उसे मिली है ,उसका जन गण के हित में ,व दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के हित में कार्य कर रही है ? विज्ञापन और समाचारों का अंतर आज के छद्म मी डिया ने बिल्कुल समाप्त कर दिया है !
अखबारों ,पत्रिकाओं ,इलेक्ट्रोनिक चैनलों ,सोशल मीडिया में वस्तुओं को इस तरह परिभाषित किया जाता है ,कि वे समाचार का ही हिस्सा लगने लगती है ! जिस देश की आधी से अधिक आबादी ,निरक्षर,या अल्प साक्षर या साक्षर हो ,वहाँ की भोली भाली जनता को ठगने की यह धूर्तता भरी कोशिश नहीं तो और क्या है ?क्या यहाँ मीडिया की स्वतंत्रता का शर्मनाक दुरूपयोग नहीं है ?दंगो का सच हो या सरकारों का ,मीडिया का जनता के साथ यह कपट व्यवहार चलता रहता है ! एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इण्डिया ,भारतीय प्रेस परिषद ,भी अपने अधिकारों और अध्यादेशो से मीडिया को दण्डित करे ऐसा भी नही हो सकता !वे केवल नैतिक मानदंडो का दबाव ,आचार संहिता का ,आदर्श संहिता का दबाव बना सकते है !लोकतंत्र का अहित तो अब भी हो रहा है !और अधिक स्वतंत्रता देने का मतलब और अधिक दुरूपयोग के सिवा कुछ नही !
चुनाव अदि के मौके इनकी मोटी कमाई के मौके होते है !सत्ता तंत्र का अनर्गल यश गान ,इनके भावी हित लाभ की भूमिका होती है ! जो परोक्ष रूप से पेड न्यूज का ही एक सरकारी संस्करण होता है !यलो पेज रिपोर्टिंग ,पेज थ्री का फोकस ,पेड न्यूज के ही विभिन्न अंग है !करोड़ो ,अरबो रुपये चुनाव के दौरान छद्म पत्रकारिता पर पानी की तरह बहाए जाते है !यह सारा ऑप्रे शन बहुत गुपचुप तरीके से संपन्न होता है !स्वतन्त्र और निरपेक्ष खबरों के बजाय संशोधित समाचार ही जनमानस तक पहुँचते है !संगठनों ,अधिशासको ,बाहुबलियों के सेंसर शिप के आगे जनता के प्रति मीडिया का उत्तर दायित्व ,एक ढकोसला बन कर रह जाता है !
मीडिया द्वारा जनता के दिमाग में छवियो का अंकन कितना सुदीर्घ और प्रभावी होता है ,यह मीडिया के चरित्र और उसकी बाजारी साख द्वारा निर्धारित होता है !भारतीय समाज सामान्यत: प्रिंट मीडिया और प्रकाशित सामग्री को अधिक विश्वसनीय मानता है !अभी भी सोशल मीडिया की खबरों को उतना सम्मानजनक स्थान नही प्राप्त है !जितना अधिमूल्यित अखबारों का है! प्रेस परिषदको चुनाव के दौरान अपने अधिकारों का विशेष प्रयोग करते हुए ,आवश्यक अंकुश और नियंत्रण रखना चाहिए ! पेड न्यूज पर लगाम लगाने का बहुत अंशो में यह एक कारगर तरीका हो सकता है !मीडिया का नियमन उतना ही जरुरी है ,जितनी उसकी स्वतंत्रता ! ‘अति सर्वत्र वर्जयते ‘!
मीडिया ने अपने स्वतन्त्रअधिकारों का प्रयोग जितना जनता की भलाई के लिए किया है उतना ही अपनी ,प्रसार संख्या बढाने और टी.आर पी.को मजबूत करने के लिए भी किया है !निहित स्वार्थो की पूर्ति के लिए आदर्श संहिता की उपेक्षा बहुत साधारण बात है !चीन किस सीमा तक घुसपैठ कर चुका  है ?करोडो बांगला देशी हर साल अवैध रूप से देश में घुस कर देश के जन संख्या विस्फोट में सहायक हो रहे है ? आये दिन प्रायोजित दंगो की पृष्ठभूमि में कौन है ?कितने आतंक वादी नेपाल की खुली सीमाओं से रोज ,हजारो नकली नोटों ,नशीले पदार्थो ,व् बड़ी मात्र में हथियारों को देश में कैसे ला रहे है ?हजारो बच्चो के साल में गायब हो जाने के पीछे कौन है ?कितने पेड़ हर रोज अवैध कटान में वन तस्करों के हाथो बलि चढ़ जाते है ?तमाम वन्य प्राणियों की नस्ले इन्ही वन्य तस्करों के कारण खत्म होती जा रही है,यह सब गंभीर मुद्दे न्यूज का महत्त्व पूर्ण हिस्सा कभी बन क्यों नही पाते ?
अखबारों के न्यूज रिपोर्टरों को एक्सक्लूसिव खबरे देने का बड़ा दबाव झेलना होता है !प्रसार संख्या बढाने की आपा धापी में सेक्स स्कैंडलो ,सेलिब्रिटीज के कारनामो ,को अगला स्थान दिया जाता है !यह सब सस्ते हथकंडे अपना कर मीडिया क्या अपनी ताकत का दुरूपयोग नहीं कर रही ?तमाम पेशे ऐसे है ,जिनमे आर्थिक लाभ गौण होता है ,उनमे मीडिया प्रमुख है !जो देश के लोकतंत्र के प्रति ,देश के प्रति ,देश की जनता के प्रति पूर्ण रूप से उत्तरदायी है !उनके हितो की अवहेलना करके सनसनी खेज खबरों को प्रमुखता देना ,लोकतंत्र के प्रति अपराध है !महा नगरीय  ओद्योगिक घरानो में तो ये प्रेस पूरी तरह उनके लिए मंच का कार्य कर रहे है ,सरकारे इनकी नीति गत प्रवंचनाओ का भर पूर लाभ उठाती है ! मीडिया जो भी दिखाती है ,जन मन उसे सत्य समझ कर अंगीकार कर लेता है !आखिर जन हित से जुड़े मुद्दे भी है उन्हें क्यों हाई लाइट नही किया जाता ?जंगल कटाई ,खेती किसानी की दुर्दशा ,नशे की युवा पीढी में खपत ,स्त्री बच्चों के यौन शोषण जैसे कुकर्म ,बाल श्रम ,बाल क्रूरता ,बेरोजगारी ,गरीबी अशिक्षा ,३०-४० रूपये में ज़ीवन व्यतीत करने वाला निम्न वर्ग ,मीडिया का कवरेज कब बनेगा ?फ़िल्मी दुनिया ,ग्लैमर,राजनीति की घंटो चलने वाली बोगस बहसे ,अपराध की दुनिया ,भद्दे सीरियल ,और चुनाव के मौसम में ,खेल के प्रसारण में समय की कोई सीमा नही होती !दूसरे समाचार उपेक्षित पड़े रहते है !
मीडिया में छाये निरे बाजारवाद का दुष्परिणाम तो केवल जनता या उपभोक्ता ही भुगतते है !पर जब मतदाता को बेवकूफ बनाने का खेल चुनावी रणनीति का हिस्सा बनता है ,तो जनता भ्रम का शिकार होती है ,और उसका निर्णय अर्थात मतदान प्रभावित होता है ! जिसके फलस्वरूप अराजक तत्व पदासीन होकर जनविरोधी कर्योको ,अपनी प्राथमिकता में सम्मलित करते है !संसद  ,विधानसभा में लात, घूंसे ,थप्पड़ ,चलाकर और अनेकानेक प्रकार की अभद्र ताओ का प्रदर्शन करके दुनिया के सामने ,दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का मजाक बनाते है !और देश का सर लज्जा से झुक जाता है !अंत में सवाल यही उठता है ,कि मीडिया को जितनी स्वतंत्रता मिली है ,क्या वह उसके भी लायक है ?

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