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नाग कुंडली !!कहानी !!contest !!

swarnvihaan
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अचानक पीतल का फूल दान तीखी झंकार के साथ मेज पर गिर गया ,उसी की कर्कश ध्वनि से मृणाल की तन्द्रा भी टूट गयी !उसने आकर खिड़की से बाहर देखा ….. हवा बहुत तेज चल रही थी ! बादल भी घिरे थे ! लगता था,आज रात बारिश जम कर होगी !खिड़कियों के पटों को आहिस्ता से बंद करके ,वह वापस कुर्सी पर बैठ गयी !उसने घड़ी की ओर देखा ,रात्रि के दो बजे थे !नन्हीं शानू बेड पर बेखबर सो रही थी !स्वप्न लोक के मधुर दृश्य ,माँ की उलझनों से अज्ञात उसके नटखट अधरों पर मुस्करा रहे थे !रह-रह कर बिजली की कर्ण भेदी ध्वनि से मृणाल को डर सा लगने लगा !बरसात की इस अँधेरी और तूफानी रात में,आज उसे पति की अनुपस्थिति बुरी तरह साल रही थी !ऑफिसियल विजिट पर आज सुबह अचानक ही उन्हें जाना पड़ गया था …बैचैनी और अनमनस्यकता की इस विचित्र स्थिति में ,मुठ्ठी में दबा हुआ पत्र ,उसने और कस कर भींच लिया ! उफ़ … शब्दों की टेढी-मेंढी काली लकीरें ,सांप के बच्चों की तरह हथेली में रेंगते हुए कुलबुला रही थी !घबरा कर उसने मुठ्ठी खोली ,तो हथेली पसीने से भीग चुकी थी !पत्र की तुड़ी -मुड़ी इबारत को वह दु बारा पढने के लिए ठीक करने लगी !
“मनु मेरा विवाह पन्द्रह जून को हो रहा है !तुम्हें निमंत्रित करने का साहस तो मुझमें नही है ,किन्तु तुम्हारी उपस्थिति से ही मुझे महसूस होगा ,कि मुझे क्षमा मिल गयी है …और तभी उस अपराध बोध से भी उबर सकूँगा ,जो मुझे सोते- जागते चैन नहीं लेने देता ! मै जानता हूँ ,तुम बहुत नाराज ह़ो ,लेकिन मेरी विवशता भी शायद तुम्ही समझ सकती थी “…हुहँ -पाखंडी कायर !मृणाल ने असीम तिरस्कार से पत्र की चिन्दी -चिन्दी करके ,खिड़की से बाहर हवा में फेंक दी !मानो इस तरह वह सूर्य के अस्तित्च की ही धज्जियाँ उड़ा रही हो ,परन्तु ओढी हुयी काल्पनिक सन्तुष्टि का यह बोध ,अधिक देर तक टिका नहीं ,और वह पुन: भावनाओं के प्रचंड झंझावात में फंस कर तिनके सी असहाय होने लगी !एक बहुत जानी -पहचानी तीखी पीड़ा ,जो समय के पर्तो में कही गहरे दफन होने लगी थी ,फिर बड़ी निर्दयता से मृणाल के मन को कचोट -कचोट कर मथने लगी ….नही सूर्य मै तुम्हें कभी क्षमा नही कर सकती !तुम उनमें से हो ,जो मोड़ आने पर रास्ता ही नहीं ,साथी भी बदल लिया करते है !विश्वास घाती ,कपटी ,घूर्त … जाने किन किन विशेषणों से मृणाल उसे कोसती ही जा रहीथी ,प्रेम की क्रूर अनुभूतियों का यह जहरवाद ,आखिर कब तक उसकी नसों से ,जीवनी शक्ति निचोड़ -निचोड़ कर उसे खोखला करता रहेगा  !संवेदना की चूर-चूर हो गयीं किरचें ,उसके मन को लहूलुहान किये दे रही थी !

धीरे -धीरे समृतियों की धुंध से निकल कर ,एक सुदर्शन चेहरा उसकी आँखों के समक्ष स्पष्ट होने लगा !कितना मोहक व्यक्तित्व था सूर्य का !सूर्य प्रभाकर का !लगता था ,उपनिषद काल का कोई ॠषि आधुनिक वेश भूषा में,सामने बैठ गया हो ,कानों तक पहुँचती ,आँखों की दो सुदीर्घ रेखायें,प्रशस्त मस्तक के नीचे ऐसे लहराती थी ,जैसे स्वच्छ आकाश तले प्रशांत महासागर ! चौड़े विशाल स्कन्ध ,मानों भरी पूरी देह में ,पुरुषोचित सौन्दर्य की परिभाषा सजीव हो उठी हो ! लेकिन इस हिप्टो निज्मी आवरण के पीछे ,कितना टेढा ह्रदय छुपा हुआ था ,इसे केवल मृणाल ही जान सकी थी ! उसे याद आने लगी ,सूर्य से वह अप्रत्याशित प्रथम भेंट !जब वह अपनी मौसी के यहाँ ,कानपुर होली पर गयी थी ,मौसी का परिवार छोटा था और आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत !मौसा जी का शहर में ही ,हस्त शिल्प की वस्तुओं का छोटा सा शोरुम था ,नितिन दा बैक मैनेजर थे ,भाभी थी ,और थी मृणाल की समवयस्क छोटी मौसेरी बहन शिवा !होली के दिन शिवा ने जिद करके उसे साड़ी पहना दी थी !
पहली बार पहनी गयी साड़ी के अटपटे बन्धनों अजीब सी उलझन महसूस करती हुई ,वह कमरे में खड़ी खिड़की के पार देख रही थी ,कि पीछे से किसी ने अचानक पकड़ कर ढेर सा अबीर गुलाल मल दिया ,सख्त मजबूत पकड़ से अचकचा कर मृणाल ने अपना चेहरा घुमाया ,लेकिन मृणाल के पीछे मुड़ कर देखते ही ,वह अजनबी स्वयं चौंक गया !उसके चेहरे की उड़ी हुयी रंगत ,और बड़ी -बड़ी आँखो में घबराहट ,अनजाने पन का संकोच ,एक साथ ही तैरते हुए ,उससे मूक क्षमा याचना सी करने लगे ,वह शीघ्रता से वापस जाने को मुड़ा ही था कि शिवा आ गई !
“सूर्य दा आप !यह मृणाल है ,मेरी मौसी की लड़की ,लेकिन मृणाल के पुते हुए चेहरे ,पर दृष्टि पड़ते ही ,वह खिलखिला कर हँस पड़ी !अरे ,आपने तो होली भी खेल ली !बड़े छुपे रुस्तम है ,मै बेकार ही …” शिवा का स्वभाव बेहद बिंदास था !उसकी शरारत भरी हँसी से लडकियों की तरह शर्म से लाल होता हुआ ,वह शिवा के रोकते -रोकते भी , तेजी से वापस चला गया था ! और मृणाल किसी अजनबी के स्पर्श से ,सर से पैर तक भीगी हुई ,मुग्धा नायिका की तरह ,अपनी ही अनुभूतियों की नूतनता से ,अनजानी ,स्तब्ध खड़ी रह गयी !शिवा फिर हँसने लगी -“तू तो ऐसे पत्थर की प्रतिमा सी जम गयी है ,जैसे सूर्य दा तुझ पर जादू की छड़ी घुमा गए हो !नितिन दा के दोस्त है ,भाभी से होली खेलने आये होंगे ,शायद धोखा हो गया “बीच -बीच में खनकती हँसी के साथ वह आनंदी लड़की कहती ही जा रही थी , “बड़े जीनियस स्कालर है , एम.एस.सी.के बाद केमेस्ट्री में पी.एच.डी. कर रहे है!साथ ही गीतकार भी बड़े अच्छे है ! है ना विरोध भास !लडकियों की कंपनी से तो सौ कोस दूर भागते है ,मेरे सूर्य दा ! …..अरे अब भी मूर्ख सी बिटर -बिटर ताके जा रही है !बोल ,पसंद हो तो बात कराऊँ !और शिवा इतना कह कर उसे झकझोर कर फिर मुक्त हँसी हँसने लगी !
उस साल मृणाल पर होली का रंग ऐसा चढा ,कि बाद की सारी होली बेरंग होकर रह गयी !
तब तक मृणाल इंट र कर चुकी थी ! गाँव में आगे की शिक्षा की कोई व्यवस्था न हो पाने के कारण ,उसे उसी साल कानपुर पढने के लिए ,मौसी के पास ही आना पड़ा था !सूर्य वहाँ प्राय:आता ही रहता था ,किन्तु मृणाल के आ जाने से यह उसका नियमित और अनिवार्य क्रम सा बन गया था !
धीरे -धीरे दोनों के बीच का अजनबी पन झिझक और संकोच दूर होता चला गया !दबी छुपी निगाहों का आकर्षण ,लुका -छिपी के खेल -खेल में ही दोनों के ह्रदय को प्रेम की मीठी चुभन का ,अहसास करने लगा था !पहले साथ बैठ कर आपस में एक शब्द भी न बोलते हुए ,दृष्टियों के मूक आदान प्रदान में ही,प्राय:मन के अनकहे भावो की सम्प्रेषणीयता मुखर हो उठती थी !
सूर्य गीतों के माध्यम से ,प्राय: अपनी धड़कने उसे ‘सौंह करे ,भौंहन हँसे ,दैन कहे नटि जाय ‘ वाली मुद्रा में सुना जाता ,और वह कुछ भी न कह पाने की विवशता में ,झुंझला कर रह जाती !सूर्य का वह ‘रजनीगंधा ‘गीत जो उसने मृणाल के लिए ही रचा था ,उसके कानो में अब तक यदा कदा गूंज उठता है ! मृणाल संगीत में स्नातक की पढाई कर रही थी !एकांत मे जब भी वह अभ्यास करते -करते आत्म विस्मृत होने लगती ,उसे लगता कि सूर्य पीछे खड़ा उसे मुग्ध भाव से निहार रहा है ! कई बार उसके मन की यह कल्पना अथवा पूर्वाभास साकार भी हो जाता !शायद उसका कुटिल प्रेमी ,टेली पैथी का भी विशेषज्ञ था ,या फिर उसकी ही दुर्निवार इच्छा शक्ति उसे वहाँ खींच लाती थी !यह रहस्य वह आज तक न समझ पाई !उनका प्रेम बहुत दिनों तक मुखर नही हुआ था ,दोनों की विचित्र जिद थी ,कोई भी पहले झुकना नही चाहता था !दोनों ही अपने भाव ,इंगितो ,लाक्षणिकता ,और नाना प्रकार के कूट व्यवहार द्वारा कह कर भी स्पष्टत: शब्दों की मुहर नहीं लगा रहे थे ! लेकिन यह हदबंदी सूर्य ने एक दिन स्वयं ही तोड़ डाली !जब एक दिन अचानक मृणाल बहुत बीमार पड़ गयी !दिन रात लग कर सूर्य तन्मयता से उसकी सेवा में जुटा रहा !उसके थोडा स्वस्थ होते ही मौका देख कर ,मन की सारी गिरह वह कब उसके सामने खोलता चला गया , शायद उसे स्वयं भी पता नहीं लगा !
उस दिन मृणाल को सूर्य की मुखर स्वीकृति ने कितना सुख दिया था ,उसे रेखांकित करना भी उसके लिए असंभव था !उन दोनों के प्रणय संबंधो का घर में सभी को धीरे -धीरे आभास हो गया था ,किन्तु आश्चर्य, किसी ने भी विरोध नहीं किया ! बल्कि प्रसन्नता ही जताई ! संभवत: इसका एक ही कारण था, उन दोनों की राह में कोई सामजिक अड़चन का न होना !उनकी जोड़ी आदर्श जोड़ी थी !सबको बहुत संतोष था ,घर बैठे अच्छे सुशील नेक लड़के का मिल जाना !परिहास में शिवा मृणाल को’ मृणाल प्रभाकर’ कह कर चिढाने भी लगी थी !तब सच मुच एक सपना ,मृणाल की आँखो में अंगड़ाई लेने लगा ,वह क्या जानती थी ,कि यह सपना ही एक दिन उसकी खुशियों पर कुंडली मार कर बैठ जायेगा !
मृणाल के परिवार में माँ पिता जी ,और एक छोटी बहन थी ,जो अभी छठी क्लास में पढ रही थी ! पिता किसी ऑफिस में हेड क्लर्क थे !बेहद साधारण परिवार था ,उधर सूर्य के पिता पुलिस विभाग में उच्चा धिकारी थे !सूर्य से बड़ी दो बहने थी !एक का विवाह हो चुका था ,दूसरी पैरो में आंशिक अपंगता का शिकार थी!सूर्य अपनी इस बहन को बहुत चाहता था ! बिना आगे -पीछे सोंचे समझे प्रेम रूपी पनघट की उस डगर पर ,मृणाल चल पड़ी थी ,जिसे लोग ‘आग का दरिया’ भी कहते है !उन दिनों वह उस व्यक्ति के इशारे पर अपने रक्त की आखिरी बूंद तक न्योछावर कर सकती थी !जो प्रेम को महज एक खिल वाड़ या तमाशे से अधिक नहीं समझता था !पर यह सच्चाई तो उसे बहुत बाद मे मालूम हुई , तब तक बहुत देर हो चुकी थी !
सूर्य जो एक मोहिनी विद्या आती थी ,बातों की !वह बातें इतनी मीठी-मीठी ,प्यारी -प्यारी ,और भोली भोली करता था ,कि सुन ने वाला चक्कर खा जाये ! उसकी निर्दोष दूधिया हँसी के पीछे उसके व्यक्तित्व का सबसे खतरनाक पहलू छुप सा जाता था ! सूर्य में एक साथ कई विशिष्टताएँ थी ,किन्तु जिस विशिष्टता ने मृणाल को पागल बनाया था ,वह थी ,उसके चरित्र की उज्ज्वलता ! निष्क लंकता ! निसंदेह उसके आचरण को दूध के धुले की संज्ञा दी जा सकती थी !और इस सच की गवाही ,उसकी झील सी साफ ,गहरी आँखे हर पल देती रहती थी !ह्दय की सारी हलचल उन शीशे की खिडकियों के पार बहुत स्पष्ट देखी जा सकती थी !उन दिनों मृणाल के अल्हड़ भावुक मन का एक ही सन्धान था -सूर्य को पा लेना !
एक साँझ जब घर के सभी लोग ,एक विवाह समारोह में गये हुए थे ,शिवा  रसोई में थी, ,और मृणाल परीक्षा की तैयारियों में व्यस्त !तो सूर्य आया ,उस दिन उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नही था ,उसको शीघ्र ही स्थानीय अनुसन्धान शाळा में नौकरी मिलने वाली थी !अभी चँद दिनों पहले जो इन्टर व्यू दिया था ,उसका परिणाम घोषित होते ही वह भागता चला आया ,मृणाल से मिलने !और उसे यह बताने, कि उसका सूर्य अब प्रोफ़ेसर बन गया है ! उस दिन सूर्य अतिशय भावुक जो उठा था !प्रेम में यूँ तो सौगंघ खाना ,वचन देना ,एक आम रिवाज है !पर सूर्य ने उस दिन जो सौगंध खाई ,वह सबसे निराली थी !उसने पूजा के जलते दीप को साक्षी मानते हुए ,मृणाल के हाथों को ,अपने हाथो में लेकर प्रतिज्ञा की कि वह केवल उससे ही विवाह करेगा !परिस्थितियाँ चाहे कितनी ही विपरीत क्यों न हो जाये !बस केवल दीदी की शादी हो जाये !और उन क्षणों को अपने ह्र्दय निकष पर एक स्वर्ण रेखा सा अंकित करके ,मृणाल ने भी अंतिम सांसो तक सिर्फ उसी की प्रतिक्षा करने का प्रतिवचन दिया ! मृणाल को अपने सूर्य पर अटल विश्वास था !तब वह नासमझ समझती थी कि ,उसके सूर्य को दुनियादारी की हवा कभी नहीं लग सकती !
धीरे -धीरे मृणाल ,अपनी शिक्षा समाप्त कर घर आ गयी !उधर सूर्य ने भी नौकरी शुरू कर दी ! मृणाल को घर में सभी ने उचित अनुचित समझाया !उसके लिए कई अच्छे -अच्छे रिश्ते भी ढूँढे गये ,किंतु मृणाल एक -एक कर सब ठुकराती चली गयी ,यह कह कर कि वह केवल सूर्य से विवाह करेगी !उधर सूर्य की बहन का विवाह अथक प्रयासों के बाद भी नहीं हो पा रहा था ,और सूर्य की एक ही रट थी, कि वह दीदी की शादी के बाद ही शादी करेगा ! सूर्य ने मृणाल के प्रति वचन बद्धता की बात अपने परिवार में किसी को नहीं बताई थी !मृणाल समझती रही कि दीदी के विवाह के बाद समय आने पर सूर्य सब संभाल लेगा ! यदि अड़चन आती है ,तो वह अपने स्वतन्त्र अधिकारों का उपयोग करेगा !मृणाल के लाख प्रयास के बाद भी ,सूर्य ने अपने घर और घरवालो के मंतव्य की या इस विवाह पर सही स्थिति की जानकारी
,उसे नही दी थी ! और मृणाल कोअंत में ,सूर्य के प्रति उसका यह अति विश्वास या अंध विश्वास ही ले डूबा !
मृणाल के घर पर सूर्य सदा भावी दामाद की हैसियत से आता जाता रहा !मृणाल की आयु धीरे-धीरे उस बिंदु पर पहुँचने लगी ,जहाँ समाज की उठती उंगलियाँ स्वत: प्रश्न करने लगती है !मध्य वर्ग अभी भी छोटी जगहों पर इतना आधुनिक नही हो पाया है ,कि कोई किसी से मतलब न रखे !जैसा कि बड़े शहरों का आम चलन है !घर वाले मृणाल की जिद के खतरों के प्रति बराबर आशंकित थे !लेकिन वह जादू ही क्या ? जो सर चढ़ कर न बोले !भावी ने षडयंत्र रचना प्रारंभ कर दिया था !होनी उसे बर्बाद करना चाहती थी और वह बर्बाद हो रही थी !सूर्य से लम्बे प्रणय संबंधो को लेकर ,उसे परिचितों और संबंधियों से कुछ हद तक लांक्षित भी होना पड़ा !
फिर आखिर वह चिर प्रतिक्षित दिन आ ही पहुँचा ! जब सूर्य को अग्नि परीक्षा देनी थी !दीदी का विवाह तमाम कोशिशों के बाद अंतत:हो गया !मृणाल ने समझा ,चाहने और पाने के बीच का अन्तराल समाप्त हुआ !सूर्य से अब विवाह करने में कोई अड़चन नही होगी !लेकिन अभी वह सीलन और घुटन भरी अन्धेरी गलियों से ,निकल कर उन्मुक्तता की एक साँस भी नहीं ले पायी थी ,कि औंधे मुँह गिर पड़ी !
उस मनहूस दिन सूर्य के आग्रह पर ही ,वह रिश्ता लेकर मृणाल के पिता ,उसके घर गए थे !किन्तु रिश्ते का दहेज़ रहित प्रस्ताव सुनते ही सूर्य का लालची बाप ,असीम घृणा और क्रोध से मृणाल के पिता पर उबल पड़ा -“तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ,इस घर में घुसने की !अपनी औकात देखी है ?पैसे नहीं है, तो लड़की की शादी की क्या जरुरत है? ढकेल दो उसे किसी कुँए या तालाब में !चले आते है एक से एक मुँह उठाये !भिखमंगे कही के ! और हाँ जाने से पहले एक बात और सुनते जाओ !इस धोखे में न रहना ,कि कोई तुम्हारी लड़की का हाथ बिन पैसे के थाम लेगा …..!”लेकिन मृणाल के पिता को होश ही कहाँ था ?वह खौलते लावे जैसे शब्दों को और नहीं सुन सके !बेटी की खुशियों के लिए लगभग गिड़गिडाते
हुए ,उन्होंने उस नर पिशाच के पांव तक पकड लिए ,पर उसने गहरे तिरस्कार के साथ अपना पाँव इस तरह झटक कर छुड़ा लिया ,मानों वे बेटी के बाप नहीं ,गन्दी नाली में रेंगने वाले कोई कीड़े हो !सूर्य जो पास ही खड़ा सब कुछ देख सुन रहा था !बड़ी हिम्मत बटोर कर ,मिमिआहट भरे शब्दों में ,कुछ कहना ही चाहा था ,कि पिता की पुलिसिया रौब की घुड़की से सहम कर दम दबाये बिल्ली की तरह ,परदे के पीछे जा कर खड़ा हो गया !
मृणाल के पिता बेहद अपमानित से ,जहर के कड़वे घूंट पीकर ,घर लौटे तो तीखे शब्दों की पीड़ा ने उन्हें फूट -फूट कर रोने पर मजबूर कर दिया !मृणाल पिता के साथ हुयी उस अमानवीय घटना से ,गहरे सदमे में स्तब्ध सी खड़ी की खड़ी रह गयी ! और थोड़ी ही देर में सूर्य के प्रति उसका क्रोध प्रचंड ज्वाला सा दह्क उठा !
दूसरे दिन लज्जित सा सूर्य ,पश्चाताप भरा चेहरा लिए ,अपराधी सा मृणाल से क्षमा मांगने घर आया ! “मनु मै तुम्हारा गुनह गार हूँ ,जो चाहो सजा देदो !पर पिता जी ने कसम खाई है ,कि यदि मै यह विवाह उनकी मर्जी के विरूद्ध करूँगा ,तो वे जहर खा कर अपनी जान दे देंगे !उन्होंने जो तुम्हारे पिता जी का अपमान किया ,उसके लिए मै बहुत शर्मिंदा हूँ !वे किसी को अपने आगे कुछ नहीं समझते !उनके विरूद्ध जाने की मुझमे हिम्मत नही है !उनकी अभद्रता के लिए चाहो तो मै तुम्हारे और तुम्हारे पिता जी के आगे पैर छूकर माफ़ी मांग सकता हूँ ……”मृणाल से सूर्य का यह पाखंड अब और सहन नही हुआ ! उसकी आँखे आवेश से जलने लगी -” और ढोंग रचाने की जरुरत नही है ! सूर्य ,तुम्हारी सारी कलई अब खुल चुकी है ! शादी के लिए पिता की आज्ञा जरुरी है ,और शादी का वचन देते समय नही पूछा था ?पिता से ! तब कहाँ लुप्त हो गयी थी ,यह अगाध पितृ भक्ति !हिम्मत नही थी, तो क्यों सारी उम्र इंत जार कराया ! और अब सज्ज्ज्नता का स्वांग भरने आये हो !इस घाव की तड़प तो तुम्हे उस दिन पता लगेगी ,जब तुम्हारी बहन या बेटी के साथ कोई इस तरह का फरेब करेगा !लौटा सकते हो ,मेरे जीवन के वो सबसे खूब सूरत साल ,जो मैंने तुम्हारे विश्वास के सहारे सपने देखते हुए गुजार दिए ! जहरीले नाग की तरह इतने सालों तक मेरे सुखो को डसने के बाद ,अब माफ़ी मांगते हो !माफ़ी तो तुम्हे इस जन्म तो क्या अगले सौ जन्मो में भी नहीं मिलेगी !”दुःख व आवेश से पागल मृणाल ने सूर्य के दोनों कंधे पकड कर झक झोर दिए !सूर्य उस भावुक बेवकूफ लड़की का यह चण्डी रूप देख कर स्तब्ध रह गया !
मन का गुबार निकलते ही मृणाल सिसक -सिसक कर रो पड़ी !लेकिन प्रेमिका को मात्र शीशे के शोकेस में रखी ,मोंम
की गुडिया समझने वाला ,उसका प्रेमी उस मर्मान्तक प्रलाप से रत्ती भर न पिघला !गूंगा तमाशाई बना सब कुछ ढहते -बिखरते ,स्वाहा होते देखता रहा !एक शब्द भी आश्वासन न दे सका !एक बार भी झुक कर उसके आँसू न पोंछ सका !
…..विश्वास घात की जहरीली छुरी ,मृणाल की पीठ में घोंप कर ,वह क्रूर बधिक जाने कब वहाँ से चला गया ,और अप्रत्याशित पीड़ा की टीस से बेहाल ,मृणाल बध की जा रही बकरी की तरह तड़पती -छट पटाती अपने ही लहू में नहाती रही !
मृणाल का इष्ट भ्रष्ट हो चुका था !उस खंडित स्वप्ना को अब अपना प्रेम अघोर पंथ की साधना सा घृणित और निष्फल जान पड़ने लगा !उसके पूजा के फू ल किसी गंदे नाले में बह चुके थे !सपने और सच का यह फासला ,काश उसका निर्णायक मन पहले ही समझ पाता ! भावुकता के पागलपन से उपजा अतिरिक्त विश्वास ही ,उसकी बर्बादी का कारण बन गया ! प्रेम की डगर पर आँख मूंद कर चलने की उसे बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ी !उसकी जिजीविषा पर जो एक मरघट सी जड़ भयावह शुन्यता पसर चुकी थी ,उससे उबरते हुए ,और अपने अस्तित्व के बिखरे टुकड़े समेट कर ,जीने योग्य बनाने में उसे लगभग पूरा साल लग गया !
मृणाल के पिता ने अथक प्रयासों के बाद ,आखिर उसके लिए एक उपयुक्त वर ढूँढ ही लिया था ! बड़ी मुश्किलों से वह विवाह के लिए सहमत हुयी !उसका पति पूर्व विवाहित था ,पत्नी विवाह के चार माह बाद ही किसी दुर्घटना का शिकार हो गयी थी !विवाह के समय तक भी मृणाल उस भावनात्मक आघात से पूरी तरह मुक्त नहीं हुयी थी !लेकिन समझदार पिता ने ,उसके विवेकी पति को ,विवाह पूर्व ही सारी स्थिति का पूर्ण स्पष्टी करण दिया था ! मृणाल को उदार पति का प्रेम ,विश्वास और सहारा मिला ,तो वह अतीत के दुखो से उबर कर ,धीरे -धीरे सामान्य होती चली गयी !अब लगभग उसके पुराने सारे घाव भर चुके थे ,कि विवाह का आमन्त्रण देकर ,सूर्य ने जैसे उसके जख्मों को फिर से हरा कर दिया !

दरवाजे पर दस्तक हुयी ,तो मृणाल को यथार्थ का बोध हुआ !बारिश बंद हो चुकी थी ,काँच की खिडकियों के बाहर सुबह का धुंधलका ,फैलने लगा था !शानू अभी तक बेखबर सो रही थी ,अनमनस्य कता की स्थिति में कुछ -कुछ संज्ञा शून्य सी उठकर ,मृणाल ने द्वार खोला,तो देखा कि बादलों को चीर कर ,आती सुनहरी धूप की नन्ही -नन्ही रश्मियाँ पति के पाँवो से खेल रही थी….! “क्या बात है मनु ..इतनी परेशान क्यों हो ? थकी सी क्यों लग रही हो ?क्या रात में सोई नहीं ?लगता है कोई बुरा सपना देखा है . ..! “पति की सहानुभूति मनु को अन्दर तक भिगो गयी !,”हाँ बहुत बुरा सपना देखा है !..”पसीने से भीगती ,काँपती सी मृणाल पति के वक्ष से लिपट कर सिसक पड़ी ! प्रत्युत्तर में प्रेम और विश्वास
से भरी दो मजबूत बाँहो ने उसे अपने घेरे में बाँध लिया !सुरक्षा और संरक्षा के एक अटूट घेरे में …..! उसी समय खिड़की के पार सुबह की धूप कुछ और चमकीली हो उठी !!

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