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तुम्हारे लिए !!!कविता !!conest!!

swarnvihaan
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कतरा -कतरा चाँद ढला ,

रस बूंद -बूंद बरसाता है !

रूप कुण्ड में खिले कुमु दिनी ,

मन  भंवरा  बन जाता है !

कलम बांसुरी सी बजती ,

तब कागज रंग मंच लगता !

परी लोक की स्याही लेकर ,

कोई अमर कथा कहता !

मेघदूत का कवि कभी जब ,

बादल राग सुनाता है !

नयन मूंद कर पंख बिना मन,

दूर कहीं उड़ जाता है !

लक्ष्य एक है ,शब्द बेध का ,

खिंचा बाण तरकश खाली !

संध्या ढलते ही किसलय दल ,

भर देते मदिरा प्याली !

मतवाली संगीत सभा में ,

पंछी दल जुट जाता है !

यह सम्मोहन सत्य काल का ,

वार न खाली जाता है !

नवरस के अनुबंधो से ,

ये इंद्र धनुष किसने खींचा?

लग्न पत्रिका मौसम की ,

मुठ्ठी में लेकर भींचा !

भुज पाशो में मलयानिल के ,

नवदल सिहरा जाता है !

भूला -भूला नाम तुम्हारा ,

अधरों तक रुक जाता है !!

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