swarnvihaan
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कतरा -कतरा चाँद ढला ,
रस बूंद -बूंद बरसाता है !
रूप कुण्ड में खिले कुमु दिनी ,
मन भंवरा बन जाता है !
कलम बांसुरी सी बजती ,
तब कागज रंग मंच लगता !
परी लोक की स्याही लेकर ,
कोई अमर कथा कहता !
मेघदूत का कवि कभी जब ,
बादल राग सुनाता है !
नयन मूंद कर पंख बिना मन,
दूर कहीं उड़ जाता है !
लक्ष्य एक है ,शब्द बेध का ,
खिंचा बाण तरकश खाली !
संध्या ढलते ही किसलय दल ,
भर देते मदिरा प्याली !
मतवाली संगीत सभा में ,
पंछी दल जुट जाता है !
यह सम्मोहन सत्य काल का ,
वार न खाली जाता है !
नवरस के अनुबंधो से ,
ये इंद्र धनुष किसने खींचा?
लग्न पत्रिका मौसम की ,
मुठ्ठी में लेकर भींचा !
भुज पाशो में मलयानिल के ,
नवदल सिहरा जाता है !
भूला -भूला नाम तुम्हारा ,
अधरों तक रुक जाता है !!
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