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मनुष्य की भौतिक उपलब्धियों और उन्नति के चरमोत्कर्ष के मध्य लगातार ,साथ -साथ चलती हुई एक वस्तु उसे विरासत में स्वत:प्राप्त हो रही है !वह है खतरनाक स्तर से बहुत आगे तक प्रदूषित जलवायु और विकृत धरती का भयावह स्वरूप !साफ स्वच्छ वायु मंडल ,हरी भरी धरती ,निर्मल जलधारा ,शुभ्र आकाश हमारे आने वाले कल के लिए गौरव शाली वसीयत थी !अभी भी इसको संजोना हमारा अधिकार और कर्तव्य दोनों ही है,यह वह अमूल्य धरोहर है ,जिसके कारण हम जीवित है ,और हमारा अस्तित्व कम से कम अब तक तो बचा ही है !लेकिन निकट भविष्य में विकास और विनाश की यह सह धर्मिता ,हमारे लिए अभूत पूर्व संकट का कारण बनने वाली है !बल्कि यह संकट हमारे दरवाजे तक आकर खड़ा हो गया है !,यह कहना अधिक युक्ति संगत है !
आजकल प्लास्टिक का चलन,उसका उपयोग हमारे आधुनिक रहन सहन की ,एक अनिवार्य शैली के रूप में उभरा है ,जिस प्रकार हमारी मूल भूत आवश्यकताएँ वस्त्र ,भोजन,और आवास चिकित्सा है ,उसी प्रकार हमने दैनिक कार्य पद्धति में प्लास्टिक के उपयोग को स्वीकार कर लिया है !अपने इसी सुविधा वादी दृष्टिकोण के कारण ही हम आज प्लास्टिक पॉलिथिन की घनघोर समस्या से आक्रांत है !प्लास्टिक या पॉलि थिन एक नष्ट न होने वाला पदार्थ है ,जिसको केवल जला कर ही एक सीमा तक नष्ट किया जा सकता है ,किन्तु जलने से भी गंभीर विकिरण होता है !इससे जो कार्बन मोनो ऑक्साइड गैस निकलती है ,वह अत्यंत जहरीली और प्राणघातक होती है !यह गैस वायु मंडल में फ़ैल कर ओजोन परतों को सीधे नुकसान पहुँचाती है !यह प्लास्टिक ,पॉलीथिन, डिस्पोजल ग्लास प्लेट आदि धरती में दबाने से हजारो साल तक नष्ट नहीं होते !और उसी स्थिति में पड़े रहते है ,इसके अतिरिक्त यदि इसी पॉलीथिन में गर्म या खट्टी वस्तुएँ रखी जायें ,तो तुरंत ही रासायनिक प्रक्रिया प्रारंम्भ हो जाती है ,जिसके कारण खाद्य वस्तुएँ न खाने योग्य हो जाती है !परन्तु हमारी अज्ञानता या सुविधावादी संस्कृति या लापरवाही हमें आँख बंद किये रहने पर मजबूर करती है !गाँवो देहातो व कल कारखानों में, मजदूर वर्ग रिक्शाचालको, या अन्य निम्न वर्ग ,निम्न मध्य वर्ग की रोजमर्रा की जिंदगी ,पॉलीथिन के पाउचोंमें चाय भर कर लाने ,ले जाने से ही शुरू होती है !वे बिलकुल नहीं जानते ,कि वे अपनी सेहत के लिए कितना बड़ा खतरा मोल ले रहे है!यदि यह कहा जाये ,कि प्लास्टिक या पॉलीथिन हमारी मानवता को विनाश के कगार पर खड़ा कर रही है ,तो बिलकुल भी अतिशयोक्ति नहीं होगी !
पॉलीथिन सीवर व नालियों में फंस कर भयंकर जल अवरोध ,रोग व बीमारी फैलाती है !गायेँ इस पोलिथिन को खाद्य वस्तुओं के साथ खाकर ,प्रतिदिन दर्द नाक मौत मरती है !वह मरने से पहले अत्यधिक तड़पती है ,और असहनीय दर्द झेलती है !पेट में जाकर ठोस आकर लेलेने वाली पॉलीथिन गायों के ऑपरेशन में ,गेंद की तरह या फुट बाल की तरह
कठोर बन कर जब बाहर निकलती है ,तो देखने वालो की आँखे भर आती है !लोग पॉलीथिन में खाद्य वस्तुएँ रख कर गांठ लगा कर सड़क पर फेंक देते है ,और भूखी गाएँ उन्हें खा लेती है ,फिर दर्दनाक मौत का इंतजारकरती है !
प्रवासी पक्षियों की मॄत्यु का बड़ा कारण भी नदी में फैला कचरा ,प्लास्टिक व् किनारे पर फंसे पॉलीथिन में खाद्य पदार्थ ही है !यही पॉलीथिन व् प्लास्टिक खेतो में दब कर उसकी उर्वरक शक्ति जो क्षीण करता है !बंजर जमीनों के नीचे बड़े पैमाने पर मिले पॉलीथिन इस बात का प्रमाण है ,कि हम अपने ही हाथों खुद को तबाह कर रहे है !
इसके अतिरिक्त समुन्द्र में फेंका जाने वाला असंख्य परमाणु कचरा ,समुन्द्री वनस्पतियों व ज़ीव जन्तुओं का जो विनाश कर रहा है,उसके ही परिणाम प्राय: समुंद्री लहरों पर ,मछलियों का मृत पाया जाना ,और नाना दुर्लभ प्रजातियों का विलुप्त होते जाना है !सुनामी जैसी भीषण आपदाओं का आना भी गंभीर पर्यावरण दोष की ओर संकेत करता है !
फ़्रांस के लोगो का मनपसंद भोजन मेंढक ,वहाँ के साधारण से साधारण स्थानो पर, हर वक्त मौजूद रहता है !क्योंकि सम्पूर्ण विश्व से फ़्रांस मेंढको का आयात करता है !मेंढको को भारी मात्रा में बाहर भेजने के कारण ,ही कुछ वर्षो पूर्व कोलकाता के देहात में फैले खेतो में ,मच्छरों व कीट पतंगो की भरमार हो गई ,जिसको काबू में करने के लिए बेतहाशा कीट नाशको का प्रयोग करना पड़ा! फलस्वरूप सारी धरती बंजर नाना प्रकार की खेतिहर समस्याओ से ग्रस्त हो गई !अंत में मेंढको के पुन: सरंक्षण का ही उपाय फिर अपनाना पड़ा !
तेजाबी बारिश ,कहीं सूखा ,कही बाढ ,कहीं भूस्खलन ,बढती बेतहाशा गर्मी ,पर्यावरण के भयानक असंतुलन की घंटी लगातार बजा रहे है ,लेकिन अंधाधुंध वनों का दोहन व प्राकृतिक संपदाओ को अपनी वसीयत समझने की भूल करने वाला मनुष्य, न जाने कौन सी विनाश कारी नींद में सो रहा है !
हिमालय पर लगभग ११,००० ग्लेशियर है ,जिनके कारण वह दुनिया की सबसे बड़ी पानी की मीनार कहलाता है ,इनमें से ज्यादातर ग्लेशियर पिघल रहे है !अनुमान है ,कि हिन्दुओ का प्रमुख गोमुख ग्लेशियर २०३५ तक पूरी तरह समाप्त हो जायेगा ! बाकी अन्य ग्लेशियर जो आगे पीछे अपना अस्तित्व खोने की, कगार पर पहुँचते जा रहे है !उनके कारण हर साल १०-१२ मीटर तक भूमि गत पानी का स्तर घटता ही जा रहा है !
प्रतिवर्ष खतरनाक गति से निरंतर सुरसा के मुख की तरह बढने वाली आबादी ,और दुगने चौगुने होते वाहनों के शोर ने सडको को हिला कर रख दिया है !ऊपर से प्रत्येक खाद्य पदार्थो में मिलावट वह भी रासायनिक वस्तुओ की ! पशु चर्बी ,निरमा ,कास्टिक सोडा,जैसी चीजे सभी मनुष्यों के सेहत के लिए गंम्भीर खतरा है !यह जानलेवा समीकरण महज घनघोर बाजारीकरण और क्रूर व्यावसायिकता की ही देन है !
कुल मिला कर धुंए से काले होते आकाश ,और जन-जन की दैनिक किल्लतो का ,धरती की बदहाली का कोई हल निकट भविष्य में बिना जन जागरण के ,और कठोर क़ानूनी शिकंजे के सामने आता नही दिख रहा! अब केवल आवश्यकता है , ठोस कदम की ,और एक विशाल जनान्दोलन की !जो महज पॉलीथिन ही नहीं, पूरे पर्यावरण की सुरक्षा के लिए उठ खड़ा हो !कपडे के थैले तो पॉलीथिन का एक श्रेष्ठ विकल्प है ही ,पर और भी उन्नत शोध की आवश्यकता है,अधिक विकल्पो की तलाश के लिए !जन जागरूकता का कोई भी छोटा -छोटा अभियान इस दिशा में एक बड़ा कदम बन सकता है –
शस्य श्यामला सुजला सुफला धरा बनाएँ ,
आओ बढ कर आज प्रकृति से हाथ मिलायें !
मैली गंगा यमुना क्या? अगली पीढी को हम देंगे ,
जहर भरे नभ को ,सूरज का घुटता सा सपना देंगे ?
सर्व नाश की लिखी कथा को चलो मिटाएँ ,
आने वाले कल को ,भय से मुक्त कराएँ !
आओ बढ कर ,आज प्रकृति से हाथ मिलाये !
बंजर होती धरती को, यदि रोक सको तो रोको ,
महानाश के अगले पल को ,टोक सको तो टोको !
तारे सूरज चाँद गवाही ,देगा यह आकाश दुआयेँ ,
हरे भरे खेतो की माटी,रोग शोक को दूर भगायेँ !
निकल न जाये,वक्त कंही यह बात सुनो ,
आसपास से विष की मोटी परत चुनो !
थोड़ी हरियाली थोड़ी सी छाँव जुटाएँ ,
शायद बच जाये यह धरती ,चलो अभी से वृक्ष लगायेँ !!
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