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कामकाजी महिला !!एक विमर्श !!आलोचना !!contest!!

swarnvihaan
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भारतीय महिला का बाहरी कार्य क्षेत्र में पदार्पण करना (गाँवो में कृषि सम्बन्धी कार्य छोड़ कर ) समाज की दृष्टि में अभी कुछ दशक पहले तक वांछनीय नहीं था !लेकिन स्वतन्त्र भारत में शिक्षा के प्रसार द्वारा वैज्ञानिक सोंच ने उन्हें रुढियों को तोड़ कर आत्म निर्भर बन कर जीने की प्रेरणा दी !फिर कुछ पाश्चात्य प्रभाव ने भी महिलाओं को प्रबुद्ध आत्म चेतना के साथ -साथ विचारो की उन्मुक्तता सौपीं !इन कारणों में सबसे बढ कर दो कारण ऐसे है ,जिन्होंने वास्तविक अर्थो में,
भारतीय जमींन से जुड़ी ग्रामीण और शहरी सोच की दिशा ही बदल दी, और जिसके कारण स्त्री आर्थिक हैसियत में पुरुषो की समानांतर रेखा बन गई !पहला है -दहेज़ के लिए की जाने वाली क्रूरतम हत्याओं की अनवरत श्रृंखलाएं !और दूसरा कारण है -महँगाई की खतरे के निशान से ऊपर पहुँचती बेतहाशा बेलगाम वृद्धि !जिसने सभी वर्गों को प्रभावित किया !विशेष रूप से मध्य वर्ग की तो आर्थिक रीढ ही तोड़ दी !
मूल्यों की अनियमित व बेसाख्ता वॄद्धि ,साथ ही वेतन की असमान्य विषमता से राष्ट्रीय आर्थिक समीकरण की लडखडाहट साफ अनुभव की जा सकती है ! न्यूनतम वेतन आज १४० रूपये से लेकर अधिकतम ५०हजार प्रति माह तक है !दहेज़ के कारण होने वाली हत्याओं और नारी का विभिन्न स्तर पर (जिसमें जघन्य बलात्कार कांड का दिनों दिन बढता ग्राफ भी शामिल है )लगातार बढता शोषण ,भेद भाव व अपोषण ,कुपोषणो की समस्याओ ने ,महिलाओं में गंम्भीर व्याधियों ,अकाल मृत्यु ,व आत्म हत्याओं को आमंत्रण दे रखा है !इसी कारण उनकी औसत आयु का स्तर भी गिर रहा है!
आज जनसँख्या दर में १००० पुरुषो के अनुपात में ८३४ महिलाएँ ही रह जाती है !९० प्रतिशत पुरुष यह जान कर कि गर्भ में कन्या भ्रूण है ,उसे वही समाप्त करने का निर्णय लेने में तनिक भी नहीं हिचकते ! यदि यही स्थिति बनी रही ,तो एक दिन पुरुषो के बजाय महिलाओं को दहेज़ का ‘सामाजिक अधिकार ‘मिलने लगेगा !इन्ही राजनैतिक ,सामाजिक,पारिवारिक ,दुर्व्यवस्थाओ ने नारी को स्वावलंबी बनने का स्वप्न दिया है !जिसे आज साकार करके अपनी क्षमता व शक्ति से वह आत्मकल्याण करते हुए राष्ट्र व परिवार ,समाज के हित को भी समर्पित है !मूलत:परतंत्र आर्थिक जीवन ही सारी समस्याओं की जड़ है ,इसे आज की नारी अच्छी तरह समझ चुकी है !
महिलाओं की औसत सैलरी गाँवो में २०१और शहरो में ३६६रुपया प्रतिदिन है !जबकि शहरो के मुकाबले गाँवो में महि लायें अधिक सँख्या में कार्य रत है !गाँवो में ५१ प्रर्तिशत रोजगार महिलाओंको मनरेगा से मिलता है ! कामकाजी महिलाओं
में २० प्रतिशत संगठित क्षेत्र में ,और १८पर्तिशत पब्लिक सेक्टर में ,और २४ प्रतिशत प्राइवेट सेक्टर में काम करती है !
कुल मिला कर अब तो विकास शील भारत के ,निर्माण में महिलाओं की उर्जा शक्ति का ,इतना बड़ा भाग क्रिया शील है ,कि यदि इस शक्ति को ,घटा कर ,बचे भारत का कोई समीकरण हल करें,तो शून्य ही बच सकेगा !आज महिला वैज्ञानिक ,लेखक ,पत्रकार ,इंज़ी नियर ,वकील ,प्रोफ़ेसर ,व्यवसायी, फैशन डिजाइनर ,आर्किटेक्ट जैसे सम्म्मानित क्षेत्रों में हजारों की संख्या में है !यहाँ तक कि भारत की शीर्षस्थ प्रशासनिक सेवाएँ,आई.,ए.एस.व पी.सी.एस. में यह संख्या कम नही !राजनैतिक परिदृश्य में तो भारतीय महिलाओँ ने विश्व में अपना परचम लहराया है !और इतिहास में वे अपना स्थान सदैव के लिए आरक्षित कर चुकी है !
कहा जाता है कि महिलाओं के मस्तिष्कीय कोशो का विकास कुछ इस ढंगसे हुआ है ,कि वह भाषा ,साहित्य, कला,संगीत जैसे विषयों पर तो मूर्धन्य विद्वता प्राप्त कर सकती है ,किन्तु विज्ञान ,गणित ,और उच्च श्रेणी की टेक्नोलोजी उसकी समझ से परे है ,किन्तु इन क्षेत्रों में भी महिलाओ की अच्छी संख्या ,और सफल उपस्थिति पुरुषो की इस गर्वोक्ति की निरर्थकता ही सिद्ध करती है !वस्तुत: इस कथन का सार मात्र इतना ही था ,कि महिलायें प्रकृति से सृजन शील व्यक्तित्व के कारण अति संवेदन शील ,भावुक व मोहमयी होती है !इसी लिए उनका ह्रदय हमेशा उनके मस्तिष्क पर हावी हो जाता है !किन्तु यह उनका दोष नहीं अपितु गुण ही कहा जायेगा !क्योंकि इसी ममतालु ह्रदय की वत्सलता के कारण वे उच्च तम शिखर पर पहुँच कर भी ,अपनी शक्ति और सामर्थ्य का दुरूपयोग करने से बचती है !क्योंकि नारी सबसे पहले माँ है ,फिर और कुछ !
महिलाओं की योग्यता को हमारा समाज पुरुष प्रधान होने से सदैव कम ही आंकता है !कुछ शीर्षस्थ अपवादों को छोड़ दे ,तो महिलाओ की संख्या पुरुषो के मुकाबले सब कही बहुत कम है !केन्द्रीय मंत्रियो में ७८ मंत्री है जिसमे केवल १२ महिलायेंहै !सुप्रीम कोर्ट के २५ जजों में मात्र २ ही महिला जज है ! देश के है कोर्टो में ६१५जजो में कुल ५२महिला जज है ! लगभग ४०प्रतिशत महिलाओं को घर के आर्थिक वितरण और समायोजन में कोई सह भागिता नही है !और पूरे देश भर में ४६प्रतिशत महिलायें ऐसी है ,जिन्हें निर्णय लेने की आजादी नहीं है !महिलाओ की दशा के मामले में दुनिया भर में १८२ देशो में भारत १३६नम्बर पर है !इतनी विषमताओंके बावजूद स्त्री ने अपने पाँव अंगद की तरह कामकाजी दुनिया में टिका रखे है ,जिसे हटा पाना किसी भी पुरुष वादी सोंच के लिए असम्भव है !आज नारी अपने दम और अपनी योग्यताओं के बल पर ज़ीत रही है !और जीतती रहेगी !
महिलाएँ जब घरसे बाहर कार्य करती है ,तो उन्हें ६से१० घंटो तक बाहर रहना पड़ता है !इस अवधि में उनकी गृह्व्यवस्था ,व बच्चों का पालन पोषण शिक्षा- दीक्षा ,जो भारत में मात्र गृहणी के हिस्से का ही कार्य माना जाता है, बहुत प्रभावित होता है !काम से वापस आई महिला ,इतनी थकी, बोझिल ,और असहाय होती है कि तुरंत कोई भी अप्रिय स्थिति झेलना ,या घरेलू कार्य करना ,या असावधानियों के लिए उपालम्भ सुनना ,उससे संभव नहीं होता !ऐसी परिस्थिति में परिवार चाहे ,संयुक्त हो या एकल ,जहाँ सारी अपेक्षायें सिर्फ उसी से रखी जाती है ,तनाव बढता ही है !कभी -कभी यह तनाव कलह की उस सीमा तक चला जाता है ,जब संयुक्त परिवार ,विघटित होकर एकल में ,और एकल परिवार टूट कर सम्बन्ध विच्छेद की प्रक्रिया में बिखरने लगते है !ऐसी स्थिति में माँ बाप के बीच बढती दूरियाँ बच्चों के भविष्य को अधर में त्रिशंकु सा असहाय छोड़ देती है !
प्राय:परिवार में अपने परिश्रम के उपार्जन को महिला अपने ढंगसे खर्च भी नहीं कर सकती !कमाती वह है ,पर हिसाब पति के पास होता है !कमाने के अतिरिक्त घर की ,व पति बच्चों की ,सार संभाल भी उसे ही करनी पडती है !मामूली मामूली कठिनाइयों में उसे अवकाश के लिए बाध्य किया जाता है !ये सब घर की छोटी -छोटी बातें बहार उसके काम के स्तर को लगातार प्रभावित करती रहती है ,और इससे उसकी कार्य क्षमता भी घटती है !
बाहर निकलने पर पुरूष सह कर्मियों से ,परिचय व वार्तालाप भी बेहद सहज और स्वाभाविक है !किन्तु स्वस्थ मानसिकता का पति भी प्राय: ऐसे मौको पर सामान्य नहीं रह पाता !और बीमार मानसिकता के लोग तो बिना किसी तथ्य या दूरदर्शिता के ,ही अपनी पत्नी के चरित्र हनन पर उतर आते है !और जब घर के लोग ही इज्जत चौराहे पर नीलाम करने की साजिश में लगे हो ,तो बाहरी व्यक्ति की व्यंगोक्तियो का प्रतिकार ही कौन करेगा ? ऐसी घटनाएँ भारत में ही ज्यादा होती है ,क्योंकि यहाँ छोटे शहरों या कस्बो में ,महिला का बाहर नौकरी करना अभी भी किसी अजूबे से कम नहीं है !इन सतही सोचो के साथ ,महिलायें प्राय: सामंजस्य नहीं बिठा पाती ,और कुंठा ,अवसाद का अनजाने ही शिकार होने लगती है ,इसी तरह की मनोवैज्ञानिक समस्याओं के कारण जब उसकी कार्य क्षमता पर ग्रहण लगता है ,तो यही समाज, यही परिवार ,और सहकर्मी ,आदि उसे निकम्मा ,कामचोर ,और अपने औरत होने का फायदा उठाने वाली ,कह कर उसे और भी गहरी उलझनों में फंसा देता है !इस तरह का फतवा जारी करने से पहले कोई भी उसके स्तर पर उसकी समस्या को सहानुभूति पूर्वक समझना भी नही चाहता !
महिलाओं के साथ आर्थिक भेदभाव विशेषत: कृषि मजदूरी के क्षेत्र में या निजी क्षेत्र में सर्वाधिक होता है !यह समस्या महिला कर्मी की सार्व भौमिक समस्या बन चुकी है ! भले ही वह पुरुषो से अधिक लगन व परिश्रम से कार्य करे ,लेकिन सुविधा वादी होने का उन्हें पक्षपात पूर्ण तर्क देकर ,सदा उत्पीड़ित किया जाता है !कृषि कार्यो में महिलाओं की हिस्से दारी बहुत प्राचीन है!भारत के लगभग १० करोड़ खेतिहर मजदूरो ४८प्रतिशत महिलायेँही है !इतना अधिक प्रतिशत होने के बावजूद चूंकि महिला अपने हितो और अधिकारों के प्रति ,खुद निश्चेष्ट ,उदासीन ,उपेक्षा पूर्ण रवैया अपनाती है ,अत:श्रम कानून या अन्य दूसरे प्रयास ,महिला संगठनों के नारे,उतने प्रभाव शाली सिद्ध नहीं हो पाते !यह भी एक खुला हुआ तथ्य है ,कि आर्थिक स्तर के अतिरिक्त ,शारीरिक स्तर पर भी महिलाओं का बहुत क्रूर शोषण होता है !ब्लैक मेलिंग ,धमकी लालच या कोई अन्य मज़बूरी उन्हें स्वयं भी कभी कभी ऐसे केसों में आगे बढने के लिये बाध्य कर देती है !लेकिन तब भी केवल गुनहगार उन्हें ही माना जाता है !पुरुष फिर अपने सत्ता धीश होने का फायदा उठाते हुए साफ बच निकलता है! कुछ केन्द्रीय व प्रशासनिक सेवाओंको छोड़ कर ,उन्हें प्रसव अवकाश तक नही मिलता ,या फिर भुखमरी उन्हें शीघ्र काम पर वापस आने के लिए बाध्य कर देती है !सेवा प्रतिष्ठानों में उनके स्वास्थ्य की देख रेख ,जाँच के लिए ,प्राथमिक स्तर पर भी सुविधा सुलभ नहीं होती ! फलस्वरूप पैसा ,व इलाज के अभाव में महिला श्रमिक घुट -घुट कर मरने को विवश रहती है !
महिलाओं की सबसे अच्छी स्थिति इस समय रूस में है जहाँ ९० प्रतिशत महिलायें कार्य करती है !अथवा अध्ययन ,अनुशीलन की सुविधाओं से युक्त है !कुछ नौकरियाँ विशेषत:एयर होस्टेस,रिशेप्सनिस्ट,सीक्रेटरी आदि महिला अभ्यर्थियों के लिए ही विशेष होने के कारण पर्याप्त विवाद का विषय रही !निजी क्षेत्र की नौकरियाँतो पूर्णत: मैनेजमेंट कमेटी के आधीन होती है !उनकी मनमानियों की छूट के साथ औरत का औरत होना ही इन सेवाओं में उनकी पदोन्नति ,पदावनति की सीढी बन जाता है !उनकी मजबूरियों का यहाँ पूरा फायदा उठाया जाता है ,महिलायें भी कभी कभी अपने अनुत्तर दायित्य पूर्ण रवैये ,और लापरवाही भरे आचरण से विवाद का विषय बन कर लोंगो को ऊँगली उठाने का मौका देती है !
विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं में महिला की आकर्षण शक्ति का दुरूपयोग होता है ,जैसे क्रिकेट में चीयर्स गर्ल ! इसी भांति माडलिंग के क्षेत्र में स्वयं युवतियाँ अर्ध अनावृत देह यष्टि के माध्यम से बाजारू वस्तु बनकर ,नेत्र दर्शन समारोह में अपने शरीर की ,नुमाइश करके समस्त नारी जाति का सिर लज्जा से झुका देती है !यही कारण है कि अश्लील विज्ञापन बाजी थमने का नाम नही ले रही !स्त्री का विचार ,व्यक्तित्व संपन्न होना,फूहड़ प्रदर्शन के स्थान पर शालीनता के साथ स्वयं को प्रस्तुत करना ,उन्हें प्रोन्नति की नई राह पर ले जायेगा !ये उन्हें कब समझ आएगा?
नौकरी पेशा महिलाओं के पतियों को अपना दृष्टिकोण उदार बनाना पड़ेगा ,रुदिवादिता व्यंग ,असहयोग केवल भविष्य को अंधे कुंए में ढकेल सकता है ,रोड़े अटकाने की अपेक्षा आत्मालोचन करे ! सहधर्मिणी का सहयोग करे !और भारतीय पति की परम्परागत इमेज को तोड़ कर नई परिस्थितियों में स्वयं को संदर्भित करे !

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