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कृष्ण और कृष्ण भक्ति काव्य में संगीत !!आलोचना!!contest !!

swarnvihaan
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“मध्य युग में हिंदी के साधक कवियों ने ,जिस रस ऐश्वर्य का विकास किया ,उसमे असमान्य विशिष्टता है ,वह विशेषता यह है ,कि एक साथ कवि की रचना में उच्च कोटि की साधना और काव्यात्मक प्रतिभा का ,एक मिश्रित संयोग दिखाई पड़ता है !जो अन्यत्र दुर्लभ है !”(रवीन्द्र नाथ टैगोर )
डा० ग्रियसन ,बेवर ,कैनेडी आदि पाश्चात्य विचारको ने ,भक्ति काव्य की उत्पत्ति का अत्यंत भ्रामक मूल्याङ्कन किया है !उन्होंने इसकी प्रेरणा ईसाई धर्म में बताई !प्रो,०हैबेल आदि ने इसे मुस्लिम सत्ता के आक्रमण से हताश और निराश जनता की निराश्रित वाणी कहा ! लेकिन हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इन निर्मूल तथ्यों का खंडन करते हुए ,राधा कृष्ण के विकास का बड़ा संतुलित सर्वेक्षण किया -“कृष्ण का वर्तमान रूप नाना वैदिक ,अवैदिक ,आर्य अनार्य ,धारणाओ के मिश्रण से बना है, इस प्रकार शताब्दियों के उलट फेर के बाद प्रेम ज्ञान वात्सल्य ,दास्य ,आदि विविध भावो के मधुर आलंबन पूर्ण ब्रह्म श्री कृष्ण रचित हुए ! माधुरी के अतिरिक्त उद्रेक से प्रेम और भक्ति का प्याला ,लबालब भर गया !” इसी समय ब्रज भाषा का साहित्य बनना शुरू हुआ ,दिवेदीजी ने भक्ति के विकास का ,तत्व संधान करते हुए लिखा कि “बौद्ध मत का महायान सम्प्रदाय ,अंतिम दिनों में लोकमत के रूप में परिणित होकर हिन्दू धर्म में पूर्णत: घुल मिल गया !पूजा पद्धति का विकास इसी महायान मत के काल में होने लगा था !हिंदी भक्ति साहित्य में जिस प्रकार के अवतार वाद का वर्णन है ,उसका संकेत महायान मत में ही मिल जाता है !सिद्धोंऔर नाथ योगियों की कवितायें हिंदी संत साहित्य पूर्णत: संयुक्त है ! इस प्रकार संत मत का उद्भव मुसलमानों के आक्रमण के कारण नहीं ,बल्कि अपने भारतीय चिंतन के विकास का परिणाम है “



डा० रामचंद्र शुक्ल के अनुसार मध्य देश में भक्ति आन्दोलन का सूत्र पात, खास तौर से ब्रज भाषा मे प्रदेश में बल्लभाचार्य के आगमन के बाद माना जाता है !डा०धीरेन्द्र वर्मा ने लिखा है कि-‘सोलहवी शताब्दी के पहले भी कृष्ण काव्य लिखा गया था ,लेकिन वह सब का सब या तो संस्कृत में है जैसे जयदेव का गीत गोविन्द ,या अन्य प्रादेशिक भाषाओ में !जैसे मैथिल कोकिल कृत पदावली ,ब्रज भाषा में सोलहवी शताब्दी से पहले की लिखी गई रचनायें उपलब्ध नहीं है !’ भगवत पुराण कृष्ण काव्य का उपजीव्य ग्रन्थ माना जाता है !ईस्वी सन के पूर्व ही कृष्ण वासुदेव भगवान या परम दैवत के रूप में पूजित होने लगे थे !संस्कृत साहित्य में कई स्थानों पर कृष्ण के अवतार रूप की भी अभ्यर्थना की गई है !भागवत के अलावा हरिवंश पुराण ,नारद पञ्च रात्र ,आदि धार्मिक ग्रंथो में कृष्ण लीला का वर्णन आता है !भास कवियों ने कृष्ण के जीवन चरित्र को नाट्य वस्तु के रूप में ग्रहण किया है ! परवर्ती संस्कृत काव्यो’ शिशुपाल वध ‘आदि में कृष्ण के जीवन व कार्यो का वर्णन किया गया है !जयदेव का गीत गोविन्द तो कृष्ण भक्ति संगीत का अनुपम काव्य है ! संगीतज्ञ कवियों ने न केवल अपनी स्वर साधना से भाषा को परिष्कृत और मधुर अभि व्यंजित बनाया ,बल्कि अप्रतिम नाद सौन्दर्य से कविता को अधिक दीर्घायु भी बनाया , उन्होंने अपनी सम्पूर्ण प्रतिभा को श्री कृष्ण के चरणों में लुटा दिया! इसी कारण संगीतज्ञ कवियों के पद गेयता के लिए जितने लोकप्रिय हुए ,उतने ही उनमे निहित भक्ति के लिए भी ! इस सन्दर्भ में पं० जगन्नाथ का ‘उद्धव शतक ‘,और’रत्नाकर’, भी अपने छंद विधान के लिए प्रसिद्ध है !इसमें केवल घनाक्षरी और कवित्त नायक छंद प्रयुक्त किये गए है ! प्राचीन भारतीय गीति काव्यो में अधिकतर धार्मिक और भक्ति परक स्तुतियाँ प्राप्त होती है ,सामवेद की सूक्तियाँ गाई जाती थी !संस्कृत गीति काव्यो का पुनर्विकास जयदेव के गीति काव्यो में दिखाई पड़ता है ,ग्यारहवी शताब्दी में क्षेमन्द्र कवि का गीति काव्य उल्लेखनीय है! विद्या पति और बंगाल के चंडीदास गीति काव्य कला के सबसे उत्कृष्ट पंडित थे !मुग़ल काल में गीति काव्य प्राय: कृष्ण भक्त कवियों ने लिखे !इसमें प्रेम और भक्ति की धारा सुरक्षित है !लेकिन भक्ति रीति के साहित्य में गीति काव्य की शुद्ध प्रवृत्ति आभास नहीं मिलता !गीति काव्य अपनी आत्म परकता संवेग पूर्णता और कल्पना शीलता तथा गेयता के लिए विशिष्ट स्थान रखता है !कृष्ण काव्य के महान गायक महाकवि सूर दास महान संगीत कार थे !संगीतात्मकता को गीति काव्य का प्रमुख तत्व माना जाता है !सूर के पदों की गेयता और लालित्य अपनी चरम सीमा पर है !संगीतात्मकता की विपुलता और विविधता भी इनके सू र सागर में मिलती है !इन्होने शास्त्रीय व् और लोक गीत दोनों की रचना की है !इनकी संगीतात्मकता भारतीय संगीत शास्त्र से आबद्ध है !फलत:इन्होने अपने राग रागिनियों में किया है ! ब्रज भाषा की जननी शौरसेनी ,अपभ्रंश भाषा में भी कृष्ण सम्बन्धी काव्य लिखे गये! अपभ्रंश में पुष्प दन्त कवि का महाकाव्य अत्यंत महत्त्व पूर्ण है !कृष्ण भक्ति काव्य का वास्तविक रूप पिंगंल ब्रज भाषा में ,तेरहवी चौदहवी शती के आसपास ,निर्मित होने लगा था !’प्राकृत पैगलम’में प्रेम भक्ति का सुन्दर चित्रण है ! डा०शशि भूषण दास गुप्त ने कृष्ण काव्य विकास के सम्बन्ध में लिखा है-‘संस्कृत और प्राकृत वैष्णव कविताके बाद पहले पहल देश भाषा में ही राधा कृष्ण की प्रेम सम्बन्धी वैष्णव् पदावली पंद्रहवी शती के मैथिल कोकिल कवि विद्यापति और बंगला के कवि चंडी दास की रचनाओं में पाए जाते है !’ कृष्ण भक्ति काव्य का अगला विकास संत कवियों की रचनाओं में हुआ,जो निर्गुण मानी जाती है !सूर दास आदि अष्ट छाप के कवियों ने निर्गुण निराकार ब्रह्म वादी संतो क़ी बड़ी आलोचना की !हालांकि इन कवियों का (कबीर दास ,दादू दयाल आदि )सगुण मतवादी कृष्ण काव्य के निर्माण में सम्यक योगदान है ! कृष्ण भक्त कवियों में सूर दास प्रमुख है !नन्ददास ,विद्यापति नाम देव आदि कि भक्ति, विह्वलता व् पद रचना का पद लालित्य उनकी संगीतात्मकता ,साहित्य  क्षेत्र  की अमूल्य धरोहर है !मीरा रैदास तुलसी के ,समकालीन थे !इनके पदों में भक्ति व्याकुलता  चरम सीमा पर पंहुच गई है !मीरा का एक पद-


‘विरह भुअङ्ग म तन बसै ,मन्त्र न लगे कोय !

राम वियोगी न जियै , जिए  ता बौरा होय !

इस पद में जीवन की मूल्य हीनता का महा मिलन के अभाव में वर्णन है !कृष्ण संगीत काव्य परम्परा में संगीतकार कवियों के नामों में सूरदास विद्यापति, बैजू बावरा ,और गोपाल नायक आदि का नाम द्रष्टव्य है ! विलावल ,कान्हरौ ,मारू ,घना क्षरी ,रामकी ,मलार ,परज ,सारंग ,सोरठ,देव गंधार ,गौरी ,गूजरी ,भैरव ,कल्याण ,जैतश्री ,,आदि नाना रागों के शास्त्रीय प्रयोग से ,सूर ने अपनी अभिव्यक्ति को ,सम्प्रेषण योग्य बना कर ,अपने अगाध संगीत ज्ञान का परिचय दिया है !सूर सागर कृष्ण संगीत काव्य परम्परा का सर्वोत्कृष्ट ग्रन्थ है ,डा०हजारी प्रसाद के शब्दों में -‘शिल्प में गीत काव्यात्मक मनोरागो का आश्रय ,ग्रहण करके महाकाव्यात्मक शिल्प का निर्माण हुआ है ताज महल ऐसा ही महाकाव्यात्मक शिल्प है !जिसका मूल मनोराग गीत काव्यात्मक या लिरि लिक है !सूर सागर भी इसी प्रकार का महाकाव्यात्मक शिल्प है !जिसका मनोंराग लिरिलिक या काव्यात्मक है ‘
इस तरह कृष्ण भक्त कवियों में संगीत का उत्कृष्ट रूप विद्यमान है ,जो आज तक के श्रव्य काव्यों का सर्वोत्कृष्ट रूप है !!

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