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बसंन्त!!!कविता!!!contest!!!

swarnvihaan
swarnvihaan
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नव दलों की ,
अगुवाई से फूला हुआ ,
बसंत !
द्रुमो की शाख पर ,
बैठा रहा दिन भर !
बौर बौराए रहे ,
अमराइ यों में,
सिर फिरी ,
कोयल कुहुकती ,
जीत का परचम लिए !
ताल सुर का रंग उत्सव ,
बाँध पाँवो ,
पैंजनी माधुरी की !
लौट आया ,
फिर शहर मधुमास अपने !
सर्द जकड़न ,
टूटते ही देह से !
दी चुनौती ,
आसमानों को ,
परिंदों के परों ने !
कोंपले आवाक् मौसम की
तपिश से !
छीन किसने चैन की ली,
बांसुरी !
झर रहे पत्ते ,
पुराने द्वार से चौबार तक !
आस की उम्मीद के ,
किस्से नये !
अल्प संख्यक आंकड़े है ,
अटकलों के !
तीर जबकि सब ,
निशाने पर लगे !
हर कली के ,
फूल से ,
संवाद तीखे हो गए !
यूँ महक कर ,
क्यूँ बिखरना है ,
जरुरी भोर तक ?

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