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तमस !!!कविता !!!contest!!

swarnvihaan
swarnvihaan
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काल खंडित ,शब्द दण्डित ,
ओ तमस यह रूप कैसा ?
श्रेय है ,तुझको जनन का ,
वीतरागी के मनन का ,
फिर बता यह मौन कैसा ?
इस धरा पर कौन ऐसा ?
क्यों भला चर्चा किरण की ,
धूप का पाखंड कैसा ?
ओ तमस यह रूप कैसा ?
रुधिर भर भर कर शिराएँ,
जब प्रथम स्पंद गाये ?
गर्भ का वह काल वैसा ,
गुप्त कारावास जैसा ?
हर शिविर तक राज्य ,
तो फिर पुण्य कैसा ,पाप कैसा ?
ओ तमस यह रूप कैसा ?
दे सका सूरज नहीं जो ,
वह दिया तूने सृजन को ,
तप चुका जो स्वर्ण जैसा ,
भाग्य वह पुरुषार्थ जैसा ,
फिर बचा क्या अर्थ गर्भित ?
शून्य से संलाप कैसा ?
ओ तमस यह रूप कैसा ?
वेदनाओं से रुदन तक ,
यातनाओं से मरण तक ,
जीतना क्यों हार जैसा ,
यह कपट व्यापार कैसा ?
जब प्रलय की संधियों में ,
अंत भी आरम्भ जैसा !
ओ तमस यह रूप कैसा ?
है धरा अविचल अभी तक ,
एक वीणा राग सप्तक ,
मुक्ति कैसी ?बंध कैसा ?
कर्म है ,परिणाम जैसा !
ध्रुव सदा गौरव तुम्हारा ,
क्षोभ और संताप कैसा ?
ओ तमस यह रूप कैसा ?

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