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कपिला !!!संस्मरण !!!contest !!!

swarnvihaan
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घर के दो हिस्सों को ,
जोड़ता था ,एक लम्बा सा गलियारा !
जहाँ छोटे छोटे बच्चो की छोटी सी टोली ,
खेलती, मचलती ,लड़ती ,झगड़ती थी ,
धूल भरी तपती दोपहरी में !
जेठ की !
गर्मी और लू की किसको परवाह थी ?
खूब धमाचौकड़ी मचती ,
गलियारे में !
जब थक जाते थे तीनो सहोदर ,
सो जाते सीधे या टेढे-मेंढे ,
उसी गलियारे की शीतल सी गोद में !
उसी समय कपिला को भी
जाना ही होता था ,
बाहर कुछ देर को !
चरने /विचरने /
पार करती गलियारा ,
बड़ी सावधानी से !
अपने खुरों को वह थोडा सिकोड़ कर /थोडा मरोड़ कर /
सोये और अधजगे बालको के बीच से /
धीमे से पार कर जाती गलियारा ,
कदम -कदम रखती ,
तुड़े मुड़े ,पांवो और हाथो को, ,अक्सर सम्हालती
रोज हर रोज वह ,
इसी तरह आती ,और जाती रही बरसों !
माँ की तरह उसकी भी ,
पनीली बड़ी आँखों में /ममता उतराती /
हर पल रहती थी गहरी सजगता !
चिंता ही दिखती थी ,
केवल सु रक्षा की ,एक चौकसी सी और तीखी सतर्कता !
उसकी देह भाषा में जगती सी ,बहती !
शाम ढले वापस वह आती ,
जब घर में !
माँ मनुहार भरा भोजन का थाल ले ,
कितने दुलार से उसको पुकारती !
कोमल हाथो का ,
पाकर स्पर्श वह होती निहाल पर ,
नहीं दिख लाती ,थोडा सा कनखियों से ,
करती थी मान सा !
जब माँ हाथो से अपने खिलाती उसे एक बार !
तब वह हर्षित हो ,
रोम रोम पुलकित हो ,
माँ के उन्ही हाथो को चाटती !
आँखों से बहती तब झर -झर कृतज्ञता !
वही कृतज्ञता जो दुर्लभ सी वस्तु है ,
इंसानी बस्तियों में !
शायद अलभ्य भी !
अब वह केवल पाई जाती –
अन्य जीव धारियों में !
पशु ,की प्रजातियों में !
कपिला जो गाय थी ,
माँ की अलबेली एक वही तो सहेली थी !
घंटो बतियाती थी माँ और कपिला !
मूक मौन संलाप /जाने किस दुनिया की कौन सी भाषा थी !
मन की अबूझी सी /अनजानी अनसुनी /
गोपनीय ज्ञान सी !
करती जुगाली जब कपिला तन्मयता से !
देती असीस जैसे कान को हिला हिला !
माँ उसे देख -देख धन्य मानती थी,
अपने उस भाग्य को !
सुबह शाम हाथों से सहलाती
पोंछती थी ,
सींगों को ,पीठ को,गले और पेट ,को !
वैसे ही जैसे-
वे अपनी संतान की देख रेख करती थी !
रोज शाम और सुबह,
उसके थनो से ,
माँ ही दूध दुहती !
फेनिल श्वेत ,दुग्ध धार !
पीतल की/कांसे की /फूल की /बटलोई !
ऊपर तक झाग से !
भर -भर नहाती जैसे,
स्वयं धवलता ही !
दूध जब पकता था ,चूल्हे की धीमी-धीमी ,
लकड़ी की आंच में !
गोरस गमकता था !
आँगन चौबार तक ,बनता था उससे रोज ही ,
दही,घी,मक्खन और छाछ !
मटको में भर -भर !
जब भी कभी कपिला जनती कोई बछड़ा,
कुछ अलग देख भाल करती तब माँ थी!
चने और मेवे को चोकर में सान कर !
बनता एक विचित्र पकवान
कपिला के लिए!
कपिला से तृप्त था पूरा परिवार ही !
और पूरे घर से कपिला,
संतृप्त थी !
पर तभी एक दिन ,
जलजला सा आया ,आफत सी टूट पड़ी ,
पूरे परिवार पर !
पिता जीको व्यापार में भारी नुकसान हुआ !
अब वे दिवालिया थे !
पैसे की तंगी ने जेठ की दुपहरी सा,
रूप वो दिखाया !
एक ही महीने में कर्ज की दलदल में
डूब गया सारा घर बार !
और फिर पिता जी को ,लेने पड़े हार कर ,
कुछ कठोर फैसले !
कपिला को भी पालने में अब वे
असमर्थ थे !
उसे बेचने को वे बहुत बेबस थे !
किसी अन्य व्यक्ति को !
याद है आज भी वह मनहूस साँझ !
जब कपिला का खरीदार आया !
घर के आँगन में !
पर कपिला ने जाने से कर दिया ,
बिलकुल इनकार !
थर थर था कांप रहा ,
तन उसका दूध सा !
सर को घुमा घुमा करती रही प्रतिकार !
सारा दिन भूखी और प्यासी ही रोती रही !
घोर प्रतिरोध था उसके ,
बर्ताव में !
माँ को जैसे सदमें का बोझ बहुतभारी था !
पर वे लाचार और कपिला सी ही बेबस थी !
कपिला की नियति ही
अब प्रतिकूल थी !
निष्ठुर वो खरीदार ,
उसके गले में डाल /जबरन मोटी रस्सी !
उसको घसीटते हुए उसी गलियारे से ,
हांकते,धकियाते ,
बाहर लाने की कोशिश में ,हो गया बेहाल !
लथपथ पसीने से ,
चंद पल रुक कर ,फिर वही क्रूरता भरी
कोशिश !
कपिला के खुरो से खुरच गई धरती !
उसी गलियारे की !
उसके रंभाने की टीस से दरक गई दीवारे!
पर न पसीजा किसी का कलेजा !
वो सारे बच्चे ,खड़े थे कतार में !
पकडे एक दूसरे का हाथ थर थराते हुए !
रोते रहे जार -जार !
माँ की हिचकियाँ भी बिलकुल बेअसर थी !
आज क्रूर नियति का तांडव अटल था !
आज माँ और कपिला में भेद मिट गया था !
दोनों की दीन दशा !
दोनों विलखती ,दोनों असहाय !
होने को तत्पर था ,
जानवर व् आदमी के रिश्ते का क्रूर अंत !
और फिर एक बार जाते जाते ,
कपिला की बड़ी बड़ी आँखे पनीली सी,
डूब गई आंसुओ में !
गंगा सी साफ और निश्छल सी आँखे !
अंतिम बार छूने को बढे माँ के हाथ जब ,
कपिला की देह पर !
देर हो गई बहुत ,
रस्सी की ऐ ठंन से खिंचती बिदकती !
रोती रंभाती ,
दूर होती लगातार हर क्षण कपिला !
मुड़ मुड़ कर देखती ,
पूंछती है सबसे !
दोष क्या है उसका ?
दोष क्या है उसका ?
शायद यही यक्षप्रश्न ,
बेजुबान पशुओं का ,पूरी मानवता से ,
बेरहम दुनिया से !
इन्सान और पशुओ के दरक रहे रिश्तों से !!!

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