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प्यास का जंगल !!!contest!!कविता !!

swarnvihaan
swarnvihaan
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फिर ढली शाम उम्र हो जैसे ,
फिर मेरा घर जला गया कोई !
पूंछते हम रहे बयारों से ,
कहाँ मुझसे हुई खता कोई !
अब न दीवार है न दरवाजे ,
जल गए हाथ दोनों चौखट के !
एक ठहरी सी स्याह ख़ामोशी ,
कहीँ निशान भी बाकी रहे न आहट के !
राख भी मेरे आशियाने की ,
आंधियों में उड़ा गया कोई !
उजड़ चुका है सिल सिला सारा ,
एक छोटा सा घर बसाने का !
चोट करने की जिनको आदत है ,
वो नहीं जानते है ,दर्द चोट खाने का !
छोड़ मुझको हवा की मर्जी पर ,
हादसे सा गुजर गया कोई !
अजनबी हम ही रहे है सबसे ,
या सभी हमसे अजनबी से रहे !
मेरे करीब तो हमेशा ही ,
वक्त के चेहरे अज दहे से रहे !
एक जंगल है प्यास का शायद ,
सिसक सिसक के रो रहा कोई !
सजाये ही मिली है ,मिलती है
मुझको हर बार ,दुआ करने पर !
न पहरेदार कोई है न कोई सरमाया ,
आँख भर आई होंठ सिलने पर !
तेरी यादों की कब्र गाहों में ,
मुझको जैसे सुला गया कोई !!

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