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सुनो मैं दीप हूँ ### कविता !!!contest !!!

swarnvihaan
swarnvihaan
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सुनो ,
मै दीप हूँ !
हर दिशा बेसुध
सवेरा सो रहा !
झाँकती नेपथ्य से है ,
जो प्रभा उजली धुली
तोड़ तन्द्रा के तिलिस्मी जाल को !
मैं उसी का एक नन्हा
जागरण हूँ!
स्याह होते शून्य का
अंतिम चरण हूँ !
सुनो
मैं दीप हूँ !
शेष जब तक बूंद भर भी चाह है !
दिख रही
जब तक कही भी राह है !
मैं अथक अविचल
तुम्हारे साथ हूँ!
सुनो ,
मैं दीप हूँ !
ध्वंस के सीने पर रख कर
पांव मैं,
धूप की संवेदना को बांचता हूँ !
रोकता हूँ,
रथ अकेले कालिमा का !
ओस पीकर जी रहा जो
वह सुनहरा फूल हूँ !
सुनो ,
मैं दीप हूँ !
जो कुटिल चट्टान के नीचे
दबी है !
उस सुकोमल दीप का
नव अंकुरण हूँ !
जल चुका है जो प्रलय की आग में !
मैं उसी की राख़ से
जन्मा हुआ
नवगीत हूँ !
सुनो ,
मैं,दीप हूँ !!!!

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