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साक्षात्कार ###कविता!!!!

swarnvihaan
swarnvihaan
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उन्होंने पूछा !
डिग्री लेने के बाद से ,
अब तक के अंत राल में ,
आपने कुछ नया क्यों नहीं लिखा?
मैंने थोड़ा रुक कर कहा!
मेरे युवा अनुज का हो गया था
अकस्मात् देहांत !
और उसी समय ,
चिकित्सक की घातक लापरवाही ने!
कुछ ही दिन बाद,
निगल लिए मेरे अबोध नवजात के भी प्राण!
मर्माहत ,आवाक्,स्तब्ध ,
रह गया मेरा रोम रोम !
वेदना से व्याकुल मन में
कुहराम मचा था !
जीवन जैसे जड़ हो चला था !
और ह्रदय था रक्त सना!
वे चुप रहे कुछ देर ,
और फिर ,
गंम्भीर स्वरों बोले
जैसे अंधे कुंए में
कोई छिपकली अपनी
लिजलिजी देह टटोले !
वाह!
तुमने ऐसे सुअवसर को हाथ से
क्यों जाने दिया व्यर्थ !
ऐसे क्षण विप्लव के आते कहाँ है ?
बार बार!
जब कोई भी हो सकता है
साधारण कवि से महाकाव्य कार !
मै हतप्रभ !
,सहसा आवेशित हो उठी
वहाँ से,
सुन ना सकी क्या कहा
इसके आगे !
पर प्रभु को दिया अनंत धन्यवाद !
और पाया स्वयं को बेहद आश्वस्त ,
और इस तरह प्रगति की
बर्बर दौड़ से
मै थी अब बिलकुल मुक्त !
नितांत असफल और असमायिक !
चूँकि मै कर नही सकी
स्वजनों की मॄत्यु का
व्यवसायी करण और भुना नहीं सकी
दारुण संवेदना के वे सारे क्षण !
शायद
इसीलिए हो गई ,
स्पर्धा से बाहर !!!!

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