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लाचार न्याय और लचर न्याय व्यवस्था !!!!

swarnvihaan
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कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट का भू माफियाओ के भ्रष्ट तम आचार से त्रस्त होकर एक स्टेटमेंट आया था कि इस देश को भगवान् भी नहीं बचा सकता !किसी देश के घन घोर चारित्रिक पतन पर हताशा के यह वाक्य न्याय के सर्वोच्च शिखर द्वारा व्यक्त किये गए थे !यह स्थिति जितनी ही परम आश्चर्य का विषय है ,उतना ही परम सत्य भी है ! आज की परिस्थितियों में समस्त नैतिक मूल्यों का सन्निवेश केवल पूंजी की सत्ता में हो चुका है !कभी अर्थ धर्म काम से मोक्ष तक की अवधारणा को छूता जनमानस आज राजनैतिक पारिवारिक सामाजिक शैक्षिक व न्यायिक लग भग सभी स्तरों पर ,गंदे और घिनौने चेहरों के दांव पेंचो से भर गया है ! विशेष रूप से किसी भी देश की न्याय व्यवस्था वहाँ के नागरिको ,स्त्रियों ,कमजोर वर्ग बच्चो के लिए आशा की एक किरण होती है ! शोषक वर्ग ,शासक वर्ग के लिए लोक तंत्र में केवल न्याय का चाबुक ही उनके क्रूर अहंकारी दमनात्मक प्रवृति
को साधने में सक्षम होता है!लेकिन दिन ब दिन चरमराती इस न्यायिक प्रणाली को भ्रष्टता का ऐसा घुन लग चुका है ,जो इसकी जड़ो पर गंम्भीर घाव बन कर रह गया है ! दहेज विरोधी कानून ,बलात्कार निरोधी कानून ,व व्यापारी उत्पीडन का कारन बने १३८चेक अनादृत एक्ट !ये कुछ ऐसे एक्ट है जिनका जन सामान्य में जम कर दुरूपयोग हो रहा है !एक ऐसे ही उत्पीडित व्यापारी की सत्य घटना पूरा परिदृश्यस्पष्ट करने के लिए पर्याप्त है !
व्यापारिक जगत में आज भी अधिकांश व्यापार विश्वाश पर चल रहा है! व्यापारी एडवांस में चेक देता है और माल उठाता है ,ये सब रोज का व्यापारिक रवैया है भुक्त भोगी व्यापारी का दिया चेक शातिर व्यापारी ने षडयंत्र के अंतर्गत खो गया कह कर ,नगद भुगतान ले लिया और एक साल बाद खुद तिथि व अपना नाम लिख कर बैंक में बिना पूर्व सूचित किये लगाकर अनादृत करा दी ,लेकिन धोके का शिकार व्यापारी आशंकित था उसने पहले से ही बैंक में स्टाप पेमेंट लगा दिया था , लेकिन कुछ समय बाद उसे फर्म बंद करनी पड़ी क्योकि उसका काम ही बंद हो चुका था ! चेक अनादृत होने के बाद षड यंत्र कारी ने असली खेल शुरू किया ! पुलिस के मार्फ़त बैक मैनेजर पर दबाव डलवाकर चेक अनादृत के लिखित साक्ष्य इकठ्ठा किये,और बैंक मैनेजर ने भी दहशत में लापरवाही या विस्मृति में चेक पर पहले से लगा हुआ स्टाप पेमेंट देखा ही नहीं और षडयंत्र कारी जो चाहता था वह उसने लिख दिया ,यदि मैनेजर ठीक से बिना दबाव में आये अपना काम करता तो उत्पीडित दफा ४०६(अमानत में खयानत ) से बच जाता !फिर एक वर्ष बाद फर्म भी बंद हो गई थी ,क्योकि काम ही नहीं था! इसकी पूर्व सू चना भी डाक द्वारा दी, पर उत्पीड़क ने सबको अँधेरे में रखते हुए ४२०का भी केस अपने शिकार पर फ़ाइल् कर दिया, धमकी की झूठीधाराएँ ५०३ ,५१३ भी लगवा दी यानि एक चेक पर दो फर्जी केस केवल व्यक्तिगत दुश्मनी निकालने के लिए किये गये !फिर व्यापर मंडल के मासिक बैठक में डी जी पी महोदय को सरासर भ्रम में डालते हुए ,सत्य को पूरी तरह तोड़ मरोड़ कर इस तरह प्रस्तुत किया, कि वह सीधा सादा व्यापारी उनकी द्रष्टि में खूंख्वार अपराधी बन गया !
उस सम्मानित नागरिक को उसके घर से डी जी पी की क्राइम ब्रांच द्वारा रात 11बजे दो पुलिस जीप भर कर ,उस शातिर के कहने पर इस तरह उठवाया गया, मानो वह कोई खतरनाक आतंक वादी हो !उसके बाद जेल व बेल का ऐसा नंगा खेल शुरू हुआ जिसने मानवता की चमड़ी तक उधेड़ कर रख दी!
एडवांस में सामान्य रूप से दी गई वो चेक उस व्यापारी के जीवन की सबसे बड़ी भूल साबित हुई! तृतीय श्रेणी के ठेके के वकीलों द्वारा वह शातिर व्यापारी लगातार एड़ी से चोटी का जोर लगाते हुए ,बेधड़क जज साहब को भी अनदेखा करते हुए तिकड़म व बेशर्मी की सारी हदे पार कर गया ! पर बीस दिन बाद ही सही बिलकुल वहीं जहाँ ,घोर अन्धकार की सीमाएँ समाप्त हो जाती है ,सूरज की पहली किरण उस शिकार हुए व्यापारी के लिए व उसके परिवार के लिए उम्मीद की नई सुबह लेकर आई !इस केस में चौथे माननीय जज महोदय ने बेल के समय जो स्टेटमेंट लिखा वह समस्त व्यापरी वर्ग के लिए एक राहत भरी नजीर बन गया ! जज महोदय ने उत्पीड़क वकील मंडल व उत्पीड़क व्यापारी को बुरी तरह फटकारते हुयेबेल प्रतिलिपि में लिखा कि जो धारायेँ बनती ही नहीं थी वे कैसे लगाईं गई ?चेक अनादृत के एक साधारण केस पर दो दो केस कैसे दर्ज किये गये !वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक महोदय को यह लिखित निर्देश दिया कि वे ,अपने अधीनस्थ कर्म चारियों /अधिकारियो को कहे कि सिविल केसों में पुलिस अनावाश्यक रूप से हस्तक्षेप न करे यह भी लिखा कि आजकल प्राय: यह आम प्रवत्ति देखी जा रही है ,कि बिना विवेचना पूर्ण हुयेही पुलिस लोगो को जेल भेज रही है जो नागरिको के मान सम्मान को घोर आघात पहुँ चाता है ,ऐसे अवांछनीय कृत्यों सेपुलिस विभाग सर्वथा दूर रहे !चेक अनादृत होना पूरी तरह व्यापारिक मसला है इसे सहानुभूति पूर्वक हल करे !इस तरह के केस की आड़ में व्यक्तिगत विद्वेष नही निकल जाये ,इसका ध्यान रहे , झूठे केस दर्ज करने में पुलिस का सहारा लेना सर्वजनिक भर्त्सना का कार्य होना चाहिए! प्रकारांतर से यह घटना व्यापारी उत्पीडन की चरम कथा है !!!
पैसे व पावर का जो खेल हमारे समाज व राष्ट्र को कलंकित कर रहा है !जिसके कारण समय से न्याय नहीं हो पाता ! उसके मूल में व्यापारिक सामाजिक संस्थाँए भी कम जिम्मेदार नहीं ! जैसा की इस केस में व्यापार मंडल की भूमिका रही है,आज कोई भी व्यक्ति पैसा देकर किसी भी वर्जित क्षेत्र में जा सकता है ,अपराधी निर्दोष छूट सकता है व निर्दोष को दुर्दांत अपराधी सिद्ध किया जा सकता है !झूठ और सत्य के बीच एक बारीक़ सी सीमा रेखा तो आज भी है पर न्याय के सिंहासन पर द्रष्टि हीनता का जो आवरण पड़ा हुआ है वह कभी कभी ऐसी भ्रमात्मक स्थितियाँ पैदा करता है ,कि रस्सी को सांप और सांप को रस्सी बनते पल भर भी नहीं लगता !वर्णित केस के तथ्यों को देख कर बिलकुल ऐसा नही प्रतीत होता कि जैसे बैंक व डी जी पी महोदय ,व्यापार मंडल न्याय व्यवस्था ,सब उस शातिर व्यापारी के हाथो की कठपुतली है !वह जिसे चाहे जहाँ मोहरे की तरह इस्तेमाल करता रहा और सबकी सामान्य समझ तक गायब हो गई है ! घोर लापरवाही और अनदेखी की यह मिसालअनोखी है !आज लोगो के मुहँ में पैसा खून की तरह लग चुका है ! दुनिया के सबसे बड़े लोक तंत्र में न्याय पाना ही सबसे बड़ी दुरूह प्रक्रिया बन चुकी है !बेहद जटिल और खर्चीली ! पुलिस व वकीलों के संगठन आये दिन अपनी शक्ति और सामर्थ्य का दुरूपयोग करते रहते है !कम जोर डर रहा है ,और ताकत वर डरा रहा है ! तमाम विचलित कर देने वाली घटनायें तो कई बार प्रकाश में ही नहीं आ पाती !जो भाग्य हीन पुलिस और शातिर वकीलों के फंदे में पड़ते है वह व उसके परिवार वाले ही उस दर्द को समझ सकते है !
“मै सच कहूंगी और सहम जाउंगी !
वो झूठ बोलेगा और लाजवाब कर देगा !!!!!”

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