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बाजार###कविता !!!

swarnvihaan
swarnvihaan
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धरती के टुकड़े बहुत हुए ,
अब मुठ्ठी भर आकाश बेच कर
अपनी गिरती साख बचाई लोगो ने !
कैसी कैसी दूकान सजाई लोगो ने !!
यहाँ हाट लगी है ,सपनो की
करुणा कौड़ी के भाव यहाँ बिक जाती है !
लज्जा निर्वासित गलियों से चौराहों तक
माँ क़ी ममता अब गिरवी राखी जाती है !
शब्दों का पांसा फेक रहे ,
गहरी चालो के सौदागर!
नानक कबीर ,और तुलसी की
भाषा लाचार द्रोपदी है !
कुछ कर्ज चुकाया ,भावुकता की बोली से ,
कितनी मुश्किल से बात बनाइ लोगो ने !
छल कपट झूठ और धोखे में
लिपटा कर प्रेम परसते है !
सीधे साधे निष्कपट ह्रदय को
बाजारों के लोग ‘गवाँरु’ कहते है !
जब पूछे कोई पता उसे यह बतलाना ,
हम सभ्य साक्षरों के जंगल में रहते है!
सब तौल रहे है देह नेह का मोल नहीं ,
इस धंधे में की खूब कमाई लोगो ने !
कैसी कैसी दूकान सजाई लोगो ने !!!

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