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तितली को मधुमक्खी बनना होगा !!! अस्मिता /औ रत की !!!

swarnvihaan
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नारी की भावनात्मक मानसिक स्तर पर पुरुषो से समकक्षता होते भी दैहिक स्तर पर उसकी असमर्थता एक ऐसी विसंगति जन्य संत्रास मयी यंत्रणा कोउत्पन्न करती है ,जिसकी पीड़ा से साक्षात्कार नारी का जन्म लेकर ही किया जा सकताहै !समाज और परिवार की जाने कितनी उचित अनुचित लक्षमण रेखाएँ उसकी इस केन्द्रीभूत विवशता का ही परिणाम है !परिवार की मान मर्यादा ,लोक प्रतिष्ठा जितनी नारी पर आश्रित होती है उतनी पुरुष पर नहीं ! उसके कमजोर क्षणो की चाही अनचाही भूले उसके आने वाले कल को जितना प्रभावित करती है वैसा दुष्परिणाम पुरुष के हिस्से में नहीं आता !पतानहीं प्रकृति ने ये सारा अन्याय नारी के साथ ही क्यों किया? उसका सबसे बड़ा दोष उसकी कोमल दैहिक संरचना बन गई! पुरुषो के आचरण की बगुलाभक्ति पुरुष प्रधान समाज की द्रष्टि में असंदिग्ध होती है ,लेकिन नारी के हिस्से में आता है ,मात्र प्रताड़ना लाक्षन और घोर अपमान !तब उस अंधे चक्रवात में विकल्प या तो रस्सी के फंदे पर टिकता है या फिर नरक तुल्य बजबजाती उन गलियों से होकर गुजरता है जहाँ जिस्म ही नहीं एक दिन जमीर भी बिकने को मजबूर हो जाता है ! नारी के इस नियति की क्रूर विडम्बना को ,जहरीली सच्चाई को नारी मुक्ति और विकास के सम्बन्ध में बड़ी बड़ी आंकड़े बाजी करने वाली संस्थाये या पत्रिकाये क्या अस्वीकार कर सकती है ?इसी कारण उनके साथ हवस का घिनौना खेल सदियों से खेल जा रहा है !क्रूरता केवल कमजोर के साथ ही की जा सकती है !यह आदम समस्या कभी नारियों को मनुष्यता के अधिकार दिलाएगी ,दोयम दर्जे की नागरिकता से छुटकारा दिलाएगी ,इसमें संदेह है ! क्योंकि वर्तमान सभ्यता का विक्षिप्त विकास जो वासना और हिंसा के मौलिक हथियारों को ,पैना और नुकीला बना कर अपनी दुकान चलाता हो ,वह नारी की आकर्षण का देह का ,व्यावसायिक शोषण ही कर सकता है !उसे वास्तविक समानता के स्तर पर नहीं लायेगा !
वस्तुत:चिंतन इस दिवालियेपन की जडे.समाज की उस वीभत्स व्यवस्था में ही कही गहरे जमी है जो पुत्री की अपेक्षा पुत्र को ,अधिक महत्त्व देती है !जीवन के प्रत्येक क्षेत्रमें प्रगति के प्रत्येक अवसरों में उसी की योग्यता को प्राथमिकता देती है ! परिवार में पुत्र के सर्वथा अनुचित आचरण की भी अभ्यर्थना की जाती है ,उसकी घ्रष्टताओ को भी उसके पौरुष का प्रतीक बना दिया जाता है ! उसकी हर उचित अनुचित हरकत को अनदेखा करने का परिणाम ये होता है कि वह स्वयं को जन्म जात श्रेष्ठ मानने लगता है !श्रेष्ठता की यह ग्रंथि उसके स्वछन्द आचरण में उत्तरोत्तर विकसित होती हुई ,व्यस्क होने पर नारी के प्रति अभद्र ,अश्लील व्यव्हार में परिणत हो जाती है ,जबकि नारी की स्थिति परिवार में इससे सर्वथा भिन्न होती है !वह प्रारंभ से ही नाना मर्यादाओ के ,वर्जनाओ के , दुष्कर व्यूह में घुट्टी पिसती रहती है ! हिंदुस्तानी मध्य समाज में शैशव से वार्धक्य तक पुरुष की छत्र छाया ही उसके लिए सम्मान से जीने का रक्षा कवच सिदध होता है ! जिस नारी की अग्नि परीक्षा का दायित्व मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने संभाला वह विकृत अर्थो के साथ आज भी उपस्थित है ! मनु की व्यवस्था से संचालित इस समाज में उसकी मांसलता को ही दैहिकता को ही विशेष रूप से प्रमुखता दी जाती है ! सामंती चिंतन से ग्रस्त हमारा मीडिया भी स्त्री को सजी धजी नायिका बना कर ,घरेलू साजिशो में लिप्त नीच मनो वृत्तियो से ग्रस्त दिखाता है !आखिर पुरुष प्रधान समाज में पुरुषो की ही तानाशाही पर अंकुश कौन लगाएगा ? इन बगुला भक्तो की पोल पट्टी खोलने का काम महिलाओ को ही करना होगा ! न्याय का यह महाभारत उन्हें अकेले ही जितना है!कोई कृष्ण या अर्जुन आकर उनके भाग्य की रेखाएँ बदलेगा ,इस भ्रम में उन्हें नहीं रहना चाहिए !अपनी अस्मिता की गौरव शाली पहचान के लिए महिलाओ को ,अद्भुत संकल्प शक्ति ,अदम्य साहस और स्रजनात्मक तेजस्विता के साथ संघर्ष शील होना है लगातार बिना डरे !बिना हारे !आत्म सम्मान बेच कर न जीने की सौगंध खानी है ! दान में मिले हर सुख को तिलांजलि देना होगा !देवी की उपाधि धारण कर स्वयं को धन्य सम झते हुए,समर्पण पंथ की आहुति बन जाने वाली मंश्चेतना से मुक्ति पानी होगी ! अपवादों को छोड़ कर लगभग सभी वर्गो में महिलाओ की स्थिति शोचनीय ही है !वे मात्र पुरुषो की जीवित संपत्ति और घर की दासी बन कर जीवन भर तिरस्कृत होने को बाध्य है ! इसके लिए उनकी कुछ कमजोरियाँ भी उत्तर दायी है , पुरुषो के प्रशसा के मीठे जहर से उनका मोह भंग जरुरी है !आडम्बर पूर्ण जीवन शैली पर आधारित पाश्चात्य नग्नता मूलक फैशन से भी हट कर उन्हें शालीन वस्त्रो को अपनाना चाहिए !अपने आकर्षण को विकृत ढंग से उभरने का कुत्सित चलन अंत में उन्हें ही ओछी द्रष्टि का शिकार बना देता है !महिलाये यदि अपने व्यक्तित्व का आधार तितली नहीं ,मधु मक्खी रक्खे, और स्वाभाविक लज्जा के माधुर्य को नारी सुलभ गरिमा को तीव्र बौद्धिक चारित्रिक, क्षमता द्वा रा निरंतर उर्ज्वास्वित रखे ,और उत्तरोत्तर आर्थिक स्वावलंबन की ओर अग्रसर रहे तो उन्हें हराना नामुमकिन होगा ! वे अपनी शक्ति पहचाने ,खुद को किसी के भी हाथो का खिलौना न बन ने दे ! वे दुर्गा काली , सरस्वती बने ,तेजस्वी बने ,आज कम से कम समय उनके साथ है कानून भी साथ है अब ना झुके ना डरे !!!

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