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खौफ ###कविता !!!contest !!”

swarnvihaan
swarnvihaan
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यह परिंदों का शहर ,सुनसान अब आता नजर !
ठूंठ बनती टहनियाँ, सब टूटते है पात झर झर !
पत्थरो से सर्द चेहरे ,घूमते इस्पात के दिल ,
क्या भरोसा आदमी का, खौफ में डूबा है मंजर !!
चन्दनो के वृक्ष से ,खुशबू चुराते लोग देखे ,
जब बची धरती नहीं तो आसमां और क्या समंदर !
हम न जाने काल के ,किस खंड में गुम चल रहे है ,
आस पर जिनके टिके, अब है उन्ही हाथो में खंजर !!
क्या बनाया क्या बिगाड़ा, कुछ नहीं आता नजर ,
रफ़्तार के सैलाब में रिश्ते ,भटकते दर ब दर !!
हम गुजरते है नहीं ,बस रौंदते अपने खुरों से ,
जीभ हो या फिर हवस हो, हर कही है नग्न बर्बर !!
जब अलावो में जली है ,लकडियाँ ताजे वनों की ,
शाख से लिपटी हवाएँ कांपती उस रात थर थर !!
ठंड में ठिठुरी हुई ,कोई भिखारिन मर गई कल ,
भूख से … , रोता रहा, बच्चा कही फुटपाथ पर !!!

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