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मन की पुकार # कविता !!!contest !!!

swarnvihaan
swarnvihaan
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चले जो पग थके नहीं/*
*/ थके जो पग चले नहीं/*
*/पुकारती है आंधियाँ, पुकारता है झंझवात/*
*/ स्याहियों से लड़ रहा है ,रौशनी का जलप्रपात/*
*/ प्रलय भले ही मोड़ पर ,खड़ा हो राह रोक कर/*
*/ न रुक सके चरण कोई कुचल गए हजार सर/*
*/ सहस्त्र अग्नि पुंज में ढला दलित का अश्रुपात/*
*/ बढ़ रहा है चीरने को/*
*/ उँच नीच पक्षपात/*
*/ धरा के पुत्र मर रहे है, खेतियाँ सुलग रही/*
*/ है भुख मरी में बैल हल ,ख़ डी फसल धधक रही/*
*/ न अब सहेंगे रक्त पात ,काल का कराल घात/*
*/ अस्थियों को चूर कर ,चुका भले हो बज्रपात/*
*/क्यों न हम तने रहे/*
*/ क्यों झुके रुके रहे/*
*/ नसों नसों में है भंवर, उबल रहा है मौन ज्वर/*
*/ दमन का चक्र तोड़ कर, निकल रहा है नव प्रभात/*
*/ सुबह के नर्म स्वेद से/*
*/ मिटे निशा का सन्निपात/*

*/
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