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हादसों का शहर , कविता !!!contest !!

swarnvihaan
swarnvihaan
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हादसों का सिलसिला न कम हुआ !
एक बातूनी शहर ,गुम सुम हुआ !!
ओढ़ करके स्याह चादर सो गई ,
कौन सा सडकों को ,जाने गम हुआ !
खौफ गुर्राता हवा के छोर पर ,
दिन निकलता ,असलहो के जोर पर !
छेड़ खानी ,अपहरण की सुर्खियाँ ,
अख़बार भी ,आतंक का परचम हुआ !!
क़त्ल की साजिश ,गवाही लापता ,
जबकि बहुत संगीन ,जुर्मो की दफा !!
थरथराती खिडकियाँ, वहशी इरादे ,
बेरहम सा आज का मौसम हुआ !!
भेद भावो की तेजाबी तख्तिया ,
छीलती है, चाकुओं सी तल्खियाँ ,
वख्त ही इस जख्म का मरहम हुआ !
स्थगित है ,चैन के सब फल सफे !
तहजीब की बोली लगी, कितने दफे ,
बस्तिया बसती दरिंदों की दिखी,
भीड़ में जो आदमी था, गुम हुआ !!!

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