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contest- हिंदी ब्लॉगिंग

swarnvihaan
swarnvihaan
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हिंदी ब्लागिंग आज के समय में हिंदी प्रेमियों के लिए एक वरदान से कम नहीं हिंदी सेवियों को अपनी बात , विचार आक्रोश , संवेदना बाटने के लिए एक ऐसे मंच की आवश्यकता थी जो उन्हें बिना किसी रोक टोक के सेंसर बाजी के प्रस्तुत कर सके वे किसी की दया के आश्रित न हो क्योकि लेखन से प्रकाशन तक की व्यवस्था इतनी दुरूह दुष्कर खर्चीली और दोष पूर्ण है कि जिन भुक्त भोगियो ने इसे पास से जाना है अनुभूत किया है वह दिल दहलाने के लिए पर्याप्त है हिंदी में ऐसे अनेक सिद्ध हस्त लेखको की एक नहीं अनेक हस्तिया अपनी सही पहचान को तरसती हुई हवन हो गई है या तो हताश हो कर उन्होंने लिखना छोड़ दिया या किसी और माध्यम को चुन लिया अभिव्यक्ति के सटीक माध्यम तो थे पर सरल नहीं थे सहज नहीं थे ब्लागिंग ऐसे घने कोहरे में उम्मीद की एक सुनहरी किरण बन कर आई कुछ कहने की अब असहायता नहीं है निर्भरता किसी एक को अनुचित लाभ का अवसर ही नहीं देगी लेकिन अंग्रेजी में कहने सुनने की ऐसी आफत अभी नहीं है अभी चिकलित नाम से महानगरो में एक तेजी से फैलती नयी लेखन विधा है अद्वेत काला , अनुजा चौहान राजा श्री कविता दासवानी कुछ नाम है जो अपनी पहचान को मोहताज नहीं है अंग्रेजी के छोटे और सतही लेखक भी ठीक से सुने और पढ़े जाते है पर हिंदी में ऐसा नहीं है यंहा गंभीर लेखन भी उपेछित और तिरस्कृत है ऊपर से तुर्रा यह कि कुछ अच्छा लिखा ही नहीं जा रहा है पढ़ने से पहले ही आत्म मुग्ध हिंदी के ठेके दारो का ऐलान आ जाता है बात कुछ लोगो को बुरी लगेगी पर क्या करे सत्य कड़ वा ही होता है तीस चालीस साल हिंदी की सेवा करने वालो का कही नाम नहीं वे हिंदी से रोजी रोटी भी नहीं चाहते पर मान पहचान भी नहीं मिलता ऐसे घने कुहासे में ब्लागिंग एक करिश्मा बन कर आई है ब्लागिंग ने ऐसे हिंदी सेवियों को नाम दिया पहचान दी फिर ब्लागिंग हिंदी के भविष्य के लिए खतरा कैसे हो सकती है ? वेंटी लेटर पर जाती हुई हिंदी को एक नयी साँस देने का काम ब्लागिंग ने किया है यह सही है कि विस्तृत और विशाल फलक लेखन के लिए परंपरागत प्रकाशन आवश्यक है पर अभिवक्ति को अनेको माध्यम चाहिए यहाँ ब्लोगिंग ने अकल्पनीय कार्य किया है ब्लागिंग पर आरोप है कि उसने हिंदी भाषा का मूल स्वरुप बदला है तो परिवर्तन सर्व कालिक सत्य है उससे कोई भाषा का अहित नहीं होना है रोमन लिपि भी आज की जरुरत बन गई है आखि र पैदा होते ही जो पीढ़ी अंग्रेजी की घुट्टी पीकर जवान हुई है वह अपनी भाषा में संवाद कर रही है ये क्या कम है ? इसी से सिद्ध होता है कि हमारी हिंदी अभिवक्ति में कितनी सहज और सुलभ है इस ब्लाग के माध्यम से ही वह अपनी अनिवार्यता सिद्ध कर रही है !!!

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